प्राथमिक शिक्षा देश के विकास से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है बिना शिक्षित किये आप किसी व्यक्ति से देश की प्रगति में सक्रिय सहयोग की अपेक्षा ही नहीं कर सकते हैं। अनपढ़ और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के वेहतर जीवन के लिए ही सरकार को टैक्स से प्राप्त धन का बड़ा हिस्सा खर्च करना होता है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी इन परिवारों की आगे आने बाली पीढ़ी को शिक्षित करते हुए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की है इसलिए सरकारी प्राथमिक स्कूलों के परिणाम पर राष्ट्र की प्रगति निर्भर करती है।
प्राथमिक शिक्षा के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति अन्य राज्यों से कोई भिन्न नही रही है। लेकिन इस प्रदेश में विगत 2 वर्षों से अचानक प्राथमिक शिक्षा में काफी कुछ सकारात्मक सुधार देखने को मिला है। प्रदेश के शिक्षा विभाग के मुखिया, कुछ सकारात्मक सोच बाले प्रयोगधर्मी शिक्षाअधिकारियों और युवा ऊर्जावान शिक्षकों के प्रयोगों से बेसिक शिक्षा के प्रति लोगों की परंपरागत नकारात्मक सोच और जड़ता के टूटने की शुरूआत हो चुकी है। वर्षों से सफेद रंग में पुते हरी पट्टी बाले प्राथमिक विद्यालयों और लाल पट्टी बाले पूर्व माध्यमिक विद्यालयों की दीवारों को अचानक रंग बिरंगा करवाकर अध्यापकों ने संदेश देना शुरू कर दिया है कि हम बंधन तोड़कर प्राथमिक शिक्षा के प्रति लोगों की सोच को बदलकर ही दम लेंगे। सैकड़ो विद्यालयों में अध्यापक स्वयं के खर्च द्वारा खरीदे गए प्रोजेक्टर और मल्टीमीडिया उपकरणों का प्रयोग कर बच्चों को स्मार्ट क्लास का सुखद अनुभव करा रहे हैं। प्रदेश के हजारों स्कूलों में अब बच्चे आई कार्ड और टाई बेल्ट के साथ नजर आने लगे हैं। सरकारी स्कूल के छात्र अंकुरम जैसे एन जी ओ के मंच पर कान्वेंट के छात्रों के साथ टक्कर लेकर जीतते नजर आ रहे हैं। हिंदी ओलंपियाड में राजधानी के छात्र प्रदेश की मेरिट में निजी विद्यालयों के छात्रों से ऊंची रैंक लाकर बेसिक के अध्यापकों के प्रयास और छात्रों की क्षमता को सावित कर रहे हैं।
सकारात्मकता की इस पहल में सबसे अधिक किसी का योगदान रहा है तो वह है सोशल मीडिया का।प्राइमरी का मास्टर के सूचना ब्रॉडकास्टिंग पोर्टल से अध्यापकों को जोड़ने से शुरू हुए अभियान और अध्यापक विमल कुमार द्वारा 2016 बनाये गए मिशन शिक्षण संवाद समूह ने उत्तर प्रदेश के अध्यापकों की सोच को बदलने में क्रांतिकारी काम किया है। 100 से अधिक व्हाट्सएप समूह और फेसबुक ग्रुप में जुड़े हजारों शिक्षक एक दूसरे से अपनी गतिविधियां साझा करके एक ऐसे शैक्षिक वातावरण का निर्माण करने में सफल होते दिख रहे हैं जिसने समग्र समाज को अपनी तरफ आकर्षित करते हुए उन्हें सरकारी अध्यापकों के कार्यो पर वाह कहने को मजबूर किया है। मुझे याद है कि 5 वर्ष पहले तक शायद ही किसी अखबार ने किसी प्राथमिक विद्यालय के कार्यो पर कोई स्टोरी को छापा हो पर अब लगभग सभी समाचार पत्रों में सप्ताह में एक दो बार प्राथमिक में हो रहे अच्छे कार्यों को प्रमुखता से छापा जा रहा है। अखबार देखने से पता चलता है कि किस तरह अध्यापकों ने निजी और सामुदायिक सहभागिता से कुछ स्कूलों के भौतिक परिवेश और शैक्षिक स्थिति को श्रेष्ठतम स्तर पर पँहुचा दिया। प्रदेश में कई विद्यालय तो ऐसी स्थिति में हैं जहां पर प्रवेश हेतु छात्रों की लाइन लगी है और संसाधन सीमित होने से प्रवेश बंद करने पड़े। कुछ अध्यापकों ने अपने प्रयासों से दो वर्षों में छात्र संख्या में 4 गुना तक इजाफा किया है।
सरकारी स्कूलों में अध्यापन उतना आसान नही है जितना दिखता है इन स्कूलों में 90 प्रतिशत से अधिक छात्र उस वर्ग से आते हैं जिनका पूरा परिवार मेहनत मजदूरी करके वमुश्किल अपना जीवन यापन करता है ऐसे में उन्हें स्कूल लाकर वर्ष पर्यन्त रोके रख पाना व्यवहारिक रूप से कठिन है परंतु उत्तर प्रदेश की युवा पीढ़ी के शिक्षक अब हारने को तैयार नहीं है। सोशल मीडिया ने पूरे प्रदेश के शिक्षकों के लिए पठन पाठन की बात के लिए एक मंच दिया और इस मंच की बातों ने उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा को एक नई उम्मीद। सितंबर 2016 में टीचर्स क्लब ने प्रदेश भर के ऐसे कुछ प्रयोगधर्मी शिक्षकों को एक मंच पर लाकर उनके अनुभव साझा करने का प्रथम प्रयास किया तो इन अध्यापकों के कार्यों की बात पूरे उत्तर प्रदेश में गूंज उठी। बेसिक शिक्षा और खुद की पहचान को बदलने की दौड़ में हजारों शिक्षक व्हाट्स एप्प पर शिक्षा के सबसे बड़े मंच मिशन शिक्षण संवाद से जुड़ते चले गए।
सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि शिक्षकों के इन प्रयासों को शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी लगातार देख रहें हैं और अच्छे प्रयोगों को अन्य विद्यालयों में लागू भी करवा रहे हैं। शायद प्रदेश में पहली बार ऐसा हो रहा है कि विभाग के सर्वोच्च अधिकारी स्वयं शिक्षा सुधार की प्रक्रिया में शिक्षकों के साथ सीधे शामिल होकर संवाद कर रहे हैं और अपने ट्विटर एकाउंट से अच्छे कार्यों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। हालांकि अभी यह इन प्रयासों में शामिल शिक्षकों और विद्यालयों की संख्या सीमित है पर जिस तरह से एक सामूहिक प्रयास शुरू हुआ है और शिक्षकों ने उसमे शामिल होने की रुचि दिखाई है उससे भविष्य में एक सकारात्मक सुधार की उम्मीद बनती दिखाई पड़ रही है पर अभी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी हैं कुछ अध्यापकों की संख्या को अधिकांश अध्यापकों की संख्या में परिवर्तित करना जरूरी है। शिक्षा के लिए अध्यापकों का शिक्षा अधिकारियों से लगातार शैक्षिक संवाद जरूरी है साथ ही विद्यालय स्तर की समस्याओं का त्वरित निदान भी अपेक्षित है। समाज के प्रबुद्ध नागिरिकों का भी इस मुहिम में साथ आना जरूरी है। फिर भी शुरुआत की प्रगति पर संतोष तो जताया ही जा सकता है।
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