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हम ही हैं आतंकवाद के जनक

सामाजिक मुद्दे
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फ़्रांस में हुए आतंकवादी हमले से पूरी दुनियाँ ग़मगीन है अमेरिका के राष्ट्रपति ने इसे मानवता पर हमला करार दिया है जगह जगह श्रद्धांजलि दी जा रही है हमलों के विरोध में कुछ लोग मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतरेंगे ,कुछ शोक सभाएं आयोजित की जायेगीं, पूरे विश्व में सभी राजनयिक ग़मगीन होकर अपना सन्देश प्रसारित करेंगे।यह क्रम आने वाले कुछ दिन तक अनवरत जारी रहेगा।धीरे धीरे लोग इस बात को भुलाने लगेंगे और कुछ दिन बात आतंकवाद का डर हमारे मन से बाहर निकल जायेगा ।क्या हमारी जिम्मेदारी यहीं तक है?क्या आतंकबाद से लड़ाई केवल श्रद्धांजलि और शोक सन्देश देने से संभव है?
कौन हैं ये आतंकवादी? कहाँ बनते हैं ये ?कौन बनाता है लोगों को आतंकवादी? शायद ही आपने कभी गंभीरता से इन प्रश्नों के उत्तर खोजे हों। अरे आतंकवादी तो हमारे बीच के ही इंसान हैं हम और आप जैसे ही हैं।हमारे बीच रहने बाला कोई भी व्यक्ति आतंकवादी या आतंवादी विचारधारा का हो सकता है ,वो आप हो सकते है, हम हो सकते है, हमारा कोई मित्र हो सकता है ,हमारा कोई अजीज रिश्तेदार हो सकता है।जब तक कोई सामान्य अपराधी किसी संगठन से जुड़कर किसी भयानक कृत्य को अंजाम नहीं देता है तब तक हम उसे गुंडा ,मवाली ,डकैत ,उग्रवादी और जाने क्या क्या कहते रहते हैं पर आतंकवादी नहीं कहते हैं।इस सन्दर्भ में मुझे बचपन की सुनी एक कहानी याद आती है जिसमे एक डकैत अपनी फाँसी से पहले अपनी माँ को मिलने की इच्छा करता है और उसको कुछ बताने के बहाने उसके कान दांतो से कुतर देता है और पूँछने पर सब को बताता है कि अगर उसकी माँ उसकी पहली पेन्सिल चोरी पर उसे कड़ी सजा दे देती तो आज वो इतना बड़ा डकैत ना बनता।ये कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस वक्त थी जब लिखी गयी होगी। फ़्रांस में ताज़ा आतंकवादी हमलों को भी इस कहानी से जोड़ा जा सकता है यहाँ वही छोटे गुनहगार आतंकवादी हो गए हैं और उस विगाड़ने बाली माँ की भूमिका में हमारा सिस्टम है जो उन आतंकवादी के गुनाह पर अंत तक पर्दा डालता रहता है।
आतंकबाद का जन्म हमेशा हमारे अपने पास पड़ोस से, हमारी आँखों के सामने होता है। आज के सभ्य समाज में जब किसी मोहल्ले में कोई मारपीट या छेड़छाड़ की घटना होती है तो लोग यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि इस घटना से उनका कोई लेना देना नहीं है। मारपीट करने बाला व्यक्ति धीरे धीरे बेलगाम होता रहता है और एक एक करके सबको अपना निशाना बनाता जाता है।कुछ वर्षो में ही वही साधारण व्यक्ति उस इलाके का डॉन बन जाता है, उसको राजनैतिक संरक्षण मिलने लगता है, स्थानीय चुनाव और राजनीति में उसका इस्तेमाल विरोधियों को डराने के लिए होने लगता है और धीरे धीरे उस व्यक्ति की हैसियत इतनी बड़ी हो जाती है कि प्रशासनिक अमला भी उसको सलाम ठोकने लगता है।आप कल्पना कीजिये कि अगर ऐसा व्यक्ति चुपचाप आतंकवादियों का स्लीपर सेल भी बन जाए तो क्या होगा? क्योंकि अपराधी व्यक्ति पैसे के लिए कही भी काम करने और बिकने को आसानी से तैयार हो सकता है। यह कोई मनगढ़ंत बात नहीं है बल्कि समाज की एक कटु सच्चाई है और इस सच्चाई को कई फिल्मकारों ने परदे पर उतारकर जनता को सचेत और जागरूक करने की नाकाम कोशिश भी की है पर जनता कभी भी इन छुटभैये गुनाहगारों के खिलाफ संगठित नहीं हो सकी और ना ही भविष्य में होती दिख रही हैं।
आई एस आई एस जैसे खूंखार संगठन का जन्म भी कुछ ऐसी ही प्रक्रिया से हुआ होगा।क्या इतना बड़ा संगठन केवल कुछ दिनों में ही खड़ा हो गया और उसने इतने लड़ाके भर्ती कर लिए , अत्याधुनिक हथियार और दुनियाँ भर की अकूत संपत्ति हाँसिल कर ली, शायद नहीं।इस संगठन को इस रूप में आने में एक लंबा समय लगा होगा और हकीकत यह भी है कि यह आई एस आई एस और इसके जैसे दूसरे आतंकबादी संगठन भी इसी लचर सिस्टम की देन हैं और इन्हें पालने पोसने और सक्षम बनाने में इसी सिस्टम का हाँथ है। भारत और दुनियाँ भर के फ़िल्मकार दशकों पहले ही अपनी फिल्मों के माध्यम से इन सब विषयों का गंभीर चित्रण कर समाज में प्रस्तुत कर चुके हैं पर हम लोगों ने कुछ देर के कथानक पर तालियां पीटने के सिवा कभी कुछ भी नहीं किया और भविष्य में भी हर गंभीर आतंकवादी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया केवल कुछ अल्फ़ाज़ में निंदा और कुछ दिन की चिंता तक ही सीमित है जबकि यह आतंकबाद हमारी आँखों के सामने ही फलफूलकर खड़ा होता जा रहा है।ऐसे में आतंकबाद के लिए सरकार को दोष देना जनता को शोभा नहीं देता है
अभी पिछले वर्ष अक्षय कुमार की फ़िल्म हॉलिडे आई थी जिसमे आतंकियों के स्लीपर सेल का फिल्माकंन बहुत ही संजीदगी से कर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गयी थी। भले ही यह फ़िल्म की कहानी का हिस्सा हो पर भारत में ऐसे हज़ारों स्लीपर सेल होने की सम्भावना से इनकार नहीं कर सकते हैं और भारत में कश्मीर की आतंकवादी घटनाओं में इनकी भूमिका के बारे में हर बार पुख्ता सबूत भी सामने आये हैं।ये स्लीपर सेल जब तक जनता से जुड़े लोग हैं तब तक ज्यादा खतरा नहीं है पर जब सिस्टम के खुफिया विभाग, रक्षा विभाग और अन्य विभागों में तैनात महत्वपूर्ण व्यक्ति चंद रुपयों और विलासिता भरी जिंदगी की चाह में आतंकवाद के स्लीपर सेल की तरह कार्य करनें लगें तो आतंकवाद को दुनियां में पैर पसारने से रोकना किसी के बस में नहीं होगा।अभी हाल में ही कुख्यात अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा राजन ने भारत आते ही मुम्बई पुलिस के एक दर्जन से अधिक पुलिस अफसर के स्लीपर सेल होने की जानकारी सीबीआई को दी है जो दाऊद के लिए कार्य करते थे।
आतंकबाद के लिए हम केवल पाकिस्तान जैसे देशों को जिम्मेदार ठहराकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं।क्या भारत में भारत के अंदर की घटनाओं में हर वर्ष जुड़ रहे नए स्लीपर सेल के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं क्या कश्मीर में लहराते आई एस आई एस के झंडे ,भारत में इस संगठन के पैर पसारने के स्पष्ट संकेत नहीं हैं? और अभी भी सब कुछ जानने के बाद चंद वोट बैंक के लालच में हम उन बगावती कश्मीरी युवाओं को फलने फूलने में अप्रत्यक्ष मदद नहीं कर रहे हैं ।क्या ये स्लीपर सेल भविष्य में आई एस आई एस के एजेंट नहीं बन सकते हैं? या सरकार जानबूझकर इन्हें नजरअंदाज कर रही है। शायद सरकार केवल घटनाएं होने और उन पर राजनैतिक हाय तौबा करना ही अपना फ़र्ज़ मान चुकी है ।हाल में ही भारत में एक आतंकवादी की फाँसी पर हज़ारों युवा इकट्ठे होते हैं और भारत सरकार उसे केवल एक सामान्य घटना मानती है। भारतीय मीडिया एक आतंकवादी को हीरो की तरह पेश करती है और सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर देती है तो आप यकीन मानिये कि कि भारत भी पाकिस्तान की तरह आतंकबाद को पोषण करने बाला देश बन चूका है।जिस देश में सैकड़ो लोगों की जान लेने बाली डकैत फूलनदेवी को अभयदान देकर चुनाव लड़ने की अनुमति मिलती हो,जिस देश में सैकड़ो खून करने बाले नक्सलियों को समर्पण करने पर 1 करोड़ रुपये और पुनर्वास का बादा किया जाता हो ,जिस देश में प्रदेश सरकारें स्थानीय उग्रवाद के आगे घुटने टेक देती हो,जिस देश में बाहरी लोग एक पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में उसके ही निर्वाचन क्षेत्र में सैकड़ो एकड़ जमीन कब्ज़ा कर पडोसी मुल्क का झंडा फहरा देते हों ,उस देश को आतंकबाद के खिलाफ बयान देने का कोई अधिकार नहीं है।
सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता और वोटों की राजनीति में भारत भी उसी तरह आतंकवाद का पोषक बन रहा है जिस तरह कभी पाकिस्तान बना था ।पाकिस्तान ने अपने पडोसी मुल्कों को परेशान करने के लिए आतंकबाद को फलने फूलने में मदद की और आज वही आतंकबाद उसको निगलने को तैयार है भारत भी उसी तर्ज़ पर आगे बढ़ रहा है यहाँ के नेता चंद वोट और कुर्सी पर बने रहने के लिए किसी भी विचारधारा और व्यक्ति का समर्थन करने को तैयार हैं।भारत के राजनेता और बुद्धजीवी एक आतंकवादी की फाँसी रोकने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं मोस्ट वांटेड आतंकवादी हाफिज सईद को हाफिज जी कहकर इज्जत नवाजते हैं। कश्मीर में हिज्बुल कमांडर के एनकाउंटर पर चौराहे जाम होते है और पाकिस्तान जिन्दावाद के नारे लगते हैं और सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में केवल आतंकवाद पर बात उठाकर अपनी पीठ थपथपाती नजर आती है।
भारत जैसी स्थिति लगभग सभी देशों की है सभी देश पडोसी के यहाँ आतंकबाद की घटनाओं पर गंभीर नजर नहीं आते। और अपने घर में भी आतंकबाद को फलने फूलने का पूरा अवसर मुहैया कराते हैं साथ ही आतंकबाद पर धर्म की राजनीति करने से बाज नहीं आते है ये देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आतंकबाद के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाने का झूठा वादा करते भी नजर आते हैं और जब विभिन्न देशों के यही दहशतगर्द इकट्ठा होकर आई एस आई एस जैसे किसी झंडे के नीचे आ जाते हैं तो फिर सभी देश इकट्ठा होकर इसके खिलाफ अभियान चलाने की बकालत करते नजर आते हैं। आखिर कौन सा खेल खेला जा रहा है आम जनता के साथ।क्यों पहले आतंकवाद के पोषक बनते है और बाद में उनके खिलाफ युद्ध की तैयारी करते हैं।सीरिया में रूस और अमेरिका आई एस आई एस के बहाने वहां के तेल के भंडार पर निगाह लगाते हैं और दुनियां को गुमराह करते हैं कि वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।फ़्रांस के हमले में जितने लोग मारे गए उतने लोग तो विश्व के कई छोटे देशों में प्रत्येक माह मारे जाते है।भारत में भी बॉर्डर पर प्रत्येक बर्ष पचासों सैनिक शहीद होते है और देश में सैकड़ो लोग अपनी जान गवांते है।पर पश्चमी देशों पर हमला लोगों को मानवता पर हमला नजर आता है और भारत पर हमला केवल सामान्य बात।
आई एस आई एस भी शुरुआती दिनों में कुछ ऐसे ही फली फूली होगी। किसी सिस्टम ने अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए इसको खड़ा किया होगा ।शायद ये वही पश्चमी देश हो सकते हैं जो आज फ़्रांस के हमले पर चिंतित हो रहे हैं। आज जब वही आई एस आई एस पूरी दुनियां पर इस्लाम का झंडा फहराने के लिए आतुर है तब दुनियां में दहशत का माहौल है।ताज्जुब की बात यह भी है कि जब किसी विकसित देश पर आतंकवाद का हमला होता है तो पूरी दुनियां इसके विरोध में खड़ी नजर आती है पर जब यही हमला किसी विकासशील देश पर होता है तब इन्ही विकसित देशों को कोई पीड़ा नहीं होती है। तो क्या इन संगठनो के फलने फूलने में इन विकसित देशो की सह नजर नहीं आती है।आज फ़्रांस हमलो के बाद पूरी दुनियां को धर्म युद्ध की सम्भावना नजर आने लगी पर मुम्बई हमलो में यह केवल दहशतगर्दी का मामला नजर आता था ।सच यह भी है कि आई एस आई एस जैसे संगठन को बढ़ाने में सारे देश भी बराबर के गुनहगार हैं और अगर शुरुआती दिनों में ही सभी देश मिलकर इस समस्या के सामने खड़े हो जाते तो आज इतना दहशत का माहौल ना होता।
जरुरत है की पूरे विश्व के देश एक साथ आतंकवाद के विरोध में एक दूसरे के साथ खड़े हों।सभी देशो में पनाह पा रहे आतंकवादियों को विना धर्म जाति और गुनाह की प्रकृति में अंतर किये बिना उनका खात्मा करें और इस बात का आश्वाशन दें कि भविष्य में किसी भी गुनहगार को पनाह नहीं देगें।प्रत्येक देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोरतम कानून लाये और ऐसे मामलों के निस्तारण में 6 माह से अधिक समय ना लगाये। आतंकवादियों के मामले में जातिगत और धर्मगत वोट बैंक की राजनीति बंद हो और ऐसी राजनीति करने बालों को भी उनकी श्रेणी में मानकर उनके खिलाफ भी कठोर दंड का कानून बनाया जाये।प्रत्येक देश सबसे पहले अपने देश से आतंकबाद और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का कार्य शुरू करे। अगर भविष्य की पीढ़ी को आतंक के खतरे से बचाना है तो इस समस्या का अंत तुरंत और आज से ही शुरू करना होगा।
-अवनीन्द्र सिंह जादौन
महामंत्री टीचर्स क्लब उत्तर प्रदेश
278 कृष्णापुरम कॉलोनी
इटावा

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