जिनकी झलक थी दिल का शुकुन उनको देखे हुए ज़माने हो गए
जवानी गुजारी हशरत-ऐ-दीदार में वो रास्ते भी अब तो अनजाने हो गए
जो था शरबत-ए- हुश्न पीने का उस वक़्त हाथों में पैमाने हो गए
अवधेश राणा
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