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उनको देखे हुए ज़माने हो गए

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
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जिनकी झलक थी दिल का शुकुन
उनको देखे हुए ज़माने हो गए

जवानी गुजारी हशरत-ऐ-दीदार में
वो रास्ते भी अब तो अनजाने हो गए

जो था शरबत-ए- हुश्न पीने का
उस वक़्त हाथों में पैमाने हो गए

अवधेश राणा

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