राणा जी की कलम से
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जब से दिल्ली में शुरू बंदर बाँट हो गयी है
तभी से ‘आप’ के महारथियों में लाग डांट हो गयी है
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स्टिंग करने की जब से लग गयी है होड़ सी
अपनों से भी बोलने में मुहं में डाट हो गयी है
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जो दिखाते थे ज्यादा पढ़े लिखो को अलग के सपने
उन्ही के घर में कुर्सी के लिए मारकाट हो गयी है
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वायदे पुरे करने में दिखाते है संसाधनों की कमीं
मंत्री इतने कि मंत्री परिषद् धोबीघाट हो गयी है
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जिसके सहारे लगाते रहे नौटंकी में चार चाँद
बंगलौर में उस खांसी की काट हो गयी है
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जनता तो बहकाने के लिए मिलते है गले
कैसे जुड़ेगें दिल दोबारा मन में जो गाँठ हो गयी है
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अवधेश राणा
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