- 17 Posts
- 18 Comments
लेकिन राजनीति परिपेक्ष में सफलता और असफलता दोनों अप्रत्याशित आयाम ले कर आती है। दो कार्यकर्ता आपस में विमर्श करते जा रहे थे – ‘सच पूछो तो जब से सरकार बनी है रात-दिन भूल कर जिस उम्मीदवार के लिए घर-घर जाकर वोट मांगे उसके पास हम सब साथियों की बात सुनने के लिए अब 15 मिनट भी नहीं है।’ दुसरे कार्यकर्ता ने रक्षात्मक जवाब दिया – ‘काम भी तो बड़ा है न दोस्त। भ्रष्टाचार से लड़ाई है -वक़्त कम है। एक एक मिनट कीमती है।’ लेकिन समस्या तब हो गई जब बिना किसी अपेक्षा के बच्चों पे प्यार लुटाने वाली माँ ने बाप की भूमिका में आने का एलान कर दिया -जैसे किसी वैसे ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया हो जिसके बारे में कार्यकर्ताओं ने कभी सोचा भी न था। और पिता की भूमिका में रहे लोगों ने दादा बन कर गंभीरता से अपना परिपक्व मंतव्य प्रकट करने की जगह दादागिरी से बच्चों को अनसुना करना शुरू करदिया।
कुछ ने परिवर्तन को नियति मान कर किनारा कर लिया और अब तक अबोध रह गए कुछ बच्चे अक्सर घबराकर एक दुसरे का चेहरा देखने लगजाते जब उनकी गणना में राजनीति के ये नए अप्रत्याशित आयाम फिट नहीं बैठते। कुछ कार्यकर्ता राजनीति के नये रंग देख को कर सहम जाते तो कुछ अपने घर को राजनीति के पुराने रंग में रंगता देख के लड़ जाते। शायद उन्हें इस बात का ठीक-ठीक अनदजा न था की उनकी क्रांति अब राजनीति के दरवाजे पर खड़ी है। जहाँ अपने सिधान्तो के लिए संघर्ष करना पड़ता है और राजनीति केवल साहसी व्यक्ति की ही पात्रता है। कोई जो उसी परिवेश से निकलता है जहाँ सब पड़े है आँखें मूंदे, अलसाये और उसमे कोई एक आवाज बुलंद करता है। एक पुकार मच जाती है। एक प्यास जग जाती है। यात्रा शुरू हो जाती है और सत्ता में विघ्न पड़ जाता है। दमन के प्रयास शुरू हो जाते है। पीड़ा होती है तो- तपस्या और बलिदान काम आते है। लेकिन ये पीड़ा निखारती है और दृढ़ता लाती है।
श्री कृष्ण ने कहा है- संदेह में मत पड़ो। अभिनय में मत फंसो। सत्य और सिधांत के लिए आवश्यक हो तो अपनों से भी संघर्ष करो। क्योकि ‘न्याय’ धर्म और धारणा दोनों से ज्यादा मूल्यवान है। इसलिए उठो और अपने परिवार की प्रतिष्ठा के साथ न्याय करो ताकि कल जब कभी कोई तुमसे न पूछे की ‘आप’ के माँ –बाप कौन है? तो कह सको- आन्दोलन !
राजनैतिक लेखक : अभिजीत सिन्हा
*********************************************************************************************
इस रचना का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। नाम, स्थान, भाव-भंगिमा अथवा चारित्रिक समानताये एक संयोग भर है। राजनैतिक और हास्य व्ययंग का उद्देश्य मनोरंजन और विनोद है। किसी भी राजनैतिक दल, समूह, जाति, व्यक्ति अथवा वर्ग का उपहास करना नहीं। यदि इस लेख से किसी की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावनाओ को ठेस पहुँचती है तो लेखक को इस गैर-इरादतन नुकसान का अफ़सोस है।
*********************************************************************************************
Oral Bites & Moral Heights में अभिजीत सिन्हा के अन्य हास्य-व्ययंग
केंद्र की ललिता पवार और नई बहू केजरीवाल
सियासतगर्दी से मत डरिये : एक्टिविस्ट बने रहिये नेताजी
गले में हड्डी और विधानसभा में कबड्डी
टोपी लगा लीजिये नेताजी
*********************************************************************************************
Read Comments