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हुकूमत की दुर्लभ राजनीति को खतरा

Oral Bites & Moral Heights
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अभिजीत सिन्हाWorld

    व्यक्तियों के ऊपर हुकूमत खतरे का सौदा है और महंगा भी है इसलिए जैसे-जैसे आदमी को इसका अहसास होता जाता है वैसे-वैसे वह व्यक्तियों से संबंध कम और वस्तुओं से संबंध बढ़ाए चला जाता है। इसलिए बड़े परिवार टूट गए देशों के संगठन टूट गए। क्योंकि बड़े परिवारों में बड़े व्यक्तियों ने हुकूमत करनी चाही। व्यक्तिगत प्रतिभाओं को विषमता मान कर कुचलना शुरू किया। लोगों ने कहा, इतना बड़ा परिवार नहीं चलेगा। व्यक्तिगत परिवार निर्मित हुए। पति-पत्नी, एक-दो बच्चे -पर्याप्त। लेकिन अब वे भी बिखर रहे हैं। वे भी बच नहीं सकते। क्योंकि पति और पत्नी के बीच भी संबंध बहुत जटिल हो गया है। कई मौको पर पति पत्नी को अपने व्यक्तिगत क्षेत्र में अतिक्रमण का आभास होता है और आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती रहती है आने वाले भविष्य में शादी भी बचेगी, या नहीं यह कहना बहुत मुश्किल है।

      अब आदमी भी आदमी की मल्कियत का जोखिम नहीं लेना चाहता उसकी जगह वस्तुओं का परिग्रह बढाता जा रहा है। एक आदमी चार मकान बना लेता है, आठ गाड़ियां रख लेता है, हजार रंग-ढंग के कपड़े पहन लेता है। चीजें इकट्ठी करता चला जाता है। चीजों पर मालकियत भी सुगम लगती है। कोई झगड़ा नहीं, कोई झंझट नहीं। चीजें जैसी हैं, वैसी रहती हैं। जो कहो, वैसा मानती हैं। लेकिन वस्तुओं का हम सिमित इस्तेमाल कर पाते है और उनका आकर्षण भी क्षणिक होता है जिस दिन नई कार खरीदी हो उस रात नींद नहीं आती जैसे अगली सुबह प्रेमिका से मिलना हो लेकिन ये आकर्षण जल्द समाप्त हो जाता है जबकि प्रेमिका ऐसे कई मौके दिखा सकती है। जबकि जीवित व्यक्तियों में अनंत सम्भावनाये होती है।

        कुल मिलाकर आदमियों पर हुकूमत इतना कठिन और जोखिम भरा काम है की इससे जुड़ा सबसे पुराना व्यवसाय राजनीति जो आज सबसे ज्यादा लोकप्रिय, महंगा और प्रभावशाली हो चूका है। जिसमे आदमियों पर हुकूमत करने के लिए व्यक्तियों का विश्वास प्रेम से जितना पड़ता है और इतने बड़े पैमाने पर सच्चे प्रेम का झूठा अभिनय कर लेना वैसे भी दुर्लभ होता है। सत्ता के लिए जीवित व्यक्तियों का समर्थन लगता है और हर व्यक्ति में जीवन भर असीम सम्भावनाये होती है जो बड़ी मुश्किल से किसी और की सत्ता कबूल करती है। इसीलिए जिस राष्ट्र में सरकार की दखलंदाजी और उसका आकर जितना ही छोटा होता है उस देश में व्यक्तिगत प्रतिभाये उतनी ही ज्यादा फलती-फूलती है। लेकिन छोटा होने के साथ सत्ता का प्रभावशाली होना भी निर्विवादित रूप से आवश्यक है जिससे राष्ट्र हित के विरुद्ध जाने वाली व्यक्तिगत संभावनाओ को नियंत्रित किया जा सके।

      लेकिन परिवारों की तरह राष्ट्र भी टूट रहे है राष्ट्रों के समूह कब के टूट चुके है। राष्ट्रवाद पर लोगों का व्यक्तिवाद हावी होता जा रहा है। सार्वजनिक साम्राज्यवाद के अंत के बाद राष्ट्रों के समूह टूटें और अब कई समूह देशों में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे है। लेकिन उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर इसलिए कुचल दिया जाता है क्योकि उससे राष्ट्र को खतरा है ऐसा राजनीतिज्ञों द्वारा कहा जाता रहा है। जबकि सच ये है की मानवता और किसी देश की सुरक्षा को सबसे ज्यादा खतरा बड़े शक्तिशाली राष्ट्रों से होता है न की छोटे देशों से लेकिन अगर राष्ट्र छोटे-छोटे देशो में टूट जायेंगे तो राजनीति का क्या होगा? भविष्य में जितना खतरा शादी को है उतना ही खतरा राजनीति को भी है। दुनिया के सबसे पुराने व्यवसायों में से एक राजनीति आज जोखिम के चरम से गुजर रहा है ठीक उसी तरह जैसे प्राणी विलुप्त होने से पहले दुर्लभ हो जाया करते है।

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