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गुमशुदा की तलाश है, इक गुमशुदा की तलाश है,
इस मुल्क को रह जो दे सके उस रहनुमाँ की तलाश है |
|| दूध की नदियाँ थी बहती, इस धरा पर भी कभी,
सोने की चिड़िया का शाखों पर था बसेरा भी ‘अवी’,
आज लेकिन रक्त धरती पर बहे जल की तरह,
नोंचता है आदमी को आदमी , गिद्धों की तरह,
था चमन हिन्दोस्तां जो, बन गया शमशान आज,
जिंदगी की आरजू करती है मुर्दों की जमात,
आज इस उजड़े चमन में, कोपलों की तलाश है||१||
गुमशुदा की तलाश……
|| कौम है बीमार बूढी, नौजवां कोई नहीं,
भ्रष्ट हैं आचार सबके, सभ्य अब कोई नहीं,
भर रहे अपनी ही झोली, आम हों या खास हों,
मुल्क की किसको पड़ी है, सोचता कोई नहीं,
रोग ये कैसा भयंकर, और दवा कोई नहीं,
मृत्यु का हो रहा तांडव, जिंदगी कोई नहीं,
दे सके संजीवनी जो, उस चारागर की तलाश है ||२||
गुमशुदा की तलाश ……..
|| मूल्य नैतिक खो गए सब, अनैतिक है अब चलन,
काश ये सब देखने से पहले, बंद होते रे नयन,
लूटने में हैं लगे सब, सोने की इस खान को,
बेच देंगें कौड़ियों के मोल, ‘अवी’ इसकी आन को,
कोई तो होगा कहीं, जिसको कहते हैं विधाता,
घुप अँधेरा हो रहा है, नजर कुछ भी नहीं आता,
इस अँधेरी रात को, उस भोर की तलाश है||३||
गुमशुदा की तलाश है, इक गुमशुदा की तलाश है,
इस मुल्क को राह जो दे सके, उस रहनुमाँ की तलाश है|
– अवी घाणेकर
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