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दिल्ली का दिल

अपनेराम की डायरी
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सन्दर्भ १ – दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम – दिसंबर २०१३

दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद भी दिल्ली का दिल उदास है| बिखरा हुआ चुनाव परिणाम दिल्ली को असमंजस की स्थिति में डाले हुए है| आम आदमी पार्टी एक नए राजनितिक दल के तौर पर उभरा है और राष्ट्रीय दलों को नाकों चने चबवा रहा है| उसके २७ विधायक चुने जा चुके हैं पर पूर्ण बहुमत किसी भी पार्टी को नहीं मिला है| बी जे पी के ३२ विधायक हैं और वो सरकार बनाने से हिचक रही है| ऐसे में दिल्ली की जनता ठगा हुआ महसूस कर रही दिखती है| इसका कोई हल जल्द ही निकलना जरूरी है, पुनः चुनावों में उतरना इसका हल नहीं हो सकता ये निश्चित है, आखिर चुनाव का खर्च तो जनता की गाढ़ी कमाई से ही होता है| इस सन्दर्भ में दोनों दलों को विचार करना चाहिए|हठधर्मिता छोड़ जनता की इच्छा का सम्मान करना चाहिए| क्या हो सकता है इस परिस्थिति में इसका विचार करें तो मुझे एक बहुत आदर्श हल दिखाई पड़ता है|
बी जे पी और ‘आप’ इन दोनों को मिल कर सरकार का गठन करना दिल्ली को इस असमंजस से निकाल सकता है| ‘आप’ जिन मुद्दों को ले कर चुनावों में उतरी है उन मुद्दों को यथार्थ में उतरने का ये एक अच्छा मौका हो सकता है| ‘आप’ राजनीती से भ्रष्टाचार और गन्दगी को हटाने का मन रखती है तो बी जे पी के साथ सरकार में शामिल हो कर बी जे पी की तथाकथित गन्दगी साफ़ कर सकती है| मैं कांग्रेस का साथ लेने के लिए इसलिए नहीं कहूँगा क्यूंकि कांग्रेस की पूरी की पूरी चुनरी ही काली है, बी.जे.पी. की चुनर कुछ तो साफ़ है| अब ‘आप’ के पास ये सिद्ध करने का मौका है की भाई हम तो जो कहते हैं वो ही करते हैं अगर दूसरा दल नहीं सुधरेगा तो जनता उसे सबक सिखलाए| यहाँ बी.जे.पी भी खुद को एक आदर्शवादी पार्टी के तौर पर पुनर्स्थापित कर सकती है, अरे हम नहीं कह रहे की वो अपनी विचारधारा छोड़ कर नई राहें बना ले पर स्वयं को राष्ट्रवादी और राष्ट्रप्रेमी कहने वाली पार्टी राष्ट्र और जनता के हित में स्वयं सुधार के रास्ते पर तो चल ही सकती है| अच्छा, अगर ‘आप’ को आगे कभी भी लगता है कि बी.जे.पी. साझा न्यूनतम कार्यक्रम से भटक रही है तो वो तत्क्षण जनता के बीच जा कर अपनी बात रख सकती है और जनता उसे निश्चित ही हाथों हाथ लेगी|
“आप” भी उसी विचारधारा की बात करती है परन्तु सुर कुछ अलग है|अब साहब अगर एक अच्छी धुन बनानी हो तो सात सुरों के सुन्दर मिलन से ही उसमे मधुरता और रस आता है| वही कुछ प्रयोग दिल्ली के राजनितिक आकाश में भी हो जाये और देखें तो की कैसी सुहानी धुन बनती है| एक कहावत दोनों दलों ने याद रखनी चाहिए कि” आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले ना पूरी पावे|” अतः मेरी दोनों दलों के महानुभावों से नम्र विनती है की वो पहल करें और दिल्ली को खुश कर दें| “आप” को इस पहल से फायदा ही होगा और देश को भी|
साल की शरुआत में एक आशा देश के दिल में जगी थी जब “आप” ने दिल्ली जीत ली थी, लगा था की चलो राजनीती के इस मैदान में एक नया खिलाडी आ गया ,वर्षों से जमें पुराने खिलाडियों को एक चुनौती देने के लिये| दो चार दिन तो ठीक से बीते पर उसके बाद अँधेरी रात ही नसीब हुई| आप भी अपने असली रंग दिखाने लगे| जब आप ने लोगों को टोपियाँ पहनानी प्रारंभ की थीं, तभी ये अंदेशा लग जाना चाहिए था की आप तो सबके बाप हैं| आप ने भी खूब नौटंकी दिखाई आम आदमी बनने की और बसों , ट्रेनों से सफ़र किया, फिर बात आई बंगलों की तो दस पंद्रह कमरों के बंगलों पर आप लट्टू होते दिखे, लम्बी लम्बी गाड़ियों की चाहत मन में आई| अजी गुड खा कर गुलगुलों से भी कोई परहेज करता है क्या, आप ने भी नहीं किया, चलता है साहब| खैर “देर आयद दुरुस्त आयद”| आप के अलग अलग चेहरे अब जनता के सामने आ रहे हैं और हर एक चेहरा विद्रूप ही नजर आ रहा है| आप के कुछ मुंह तो इतने बड़े हैं की उनके बडबोले बोलों से आप का चेहरा ही ढंक जाता है| अजी अभी जुम्मा- जुम्मा दो दिन हुए हैं दिल्ली की तीन टांगो वाली कुर्सी मिले पर आप हैं की इस खुमारी में जैसे विश्व विजेता हो गए हैं| अजी ऐसे ऐसे वचन निकल रहे हैं आप के मुंह से की कहना पड़ रहा है की भाई “आप तो ऐसे ना थे”| कल ही आप का एक मुंह आप को ही चिढाता नजर आया, रणांगन में पैर रखा ही था की चक्रव्यूह की चकरघिन्नी में फंस गए आप| राष्ट्रीय स्तर के दो बड़े खिलाडी मंद मंद मुस्कुरा रहें हैं आप की दशा पर और बाट जोह रहे हैं की कब मौका मिले और “आप” को साफ़ करें|

सन्दर्भ २ – लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद – १०० दिन सरकार के – सितम्बर १४

तो साहब, “आप” और कांग्रेस ने मिल कर बनाई सरकार केजरीवाल जी के इस्तीफे के साथ गिर पड़ी और दिल्ली फिर उदास हो गई| इस बीच लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई परन्तु दिल्ली की विधानसभा भंग कर नए चुनावों का कोई चर्चा नहीं हुआ| संविद सरकार ने सोचा होगा की लोकसभा चुनावों को जीतने के बाद दिल्ली फतह कर लेंगे जुगाड़ से| लोकसभा चुनावों में सारी पार्टियों के सपनों को रौंदते हुए श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में बी.जे.पी.(राजग बोलना चाहिए) अभूतपूर्व बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही| दिल्ली में नरेन्द्र मोदी जी सत्तासीन तो हुए पर दिल्ली की गद्दी अभी भी अपने बैठने वाले का इन्तजार कर रही थी| डॉ. हर्षवर्धन केन्द्रीय सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बन कर दिल्ली की राजनीती से हट गए| दिल्ली में बवंडर मचाने वाले केजरीवाल वापस गाजियाबाद को सिधार गए| शीला जी को तो विधानसभा चुनावों के बाद राज्यपाल बना कर कांग्रेस ने पहले ही दरकिनार कर दिया था| अब बचा ही कौन दिल्ली का ह्रदय सम्राट बनने वाला?
लोकसभा चुनावों के परिणामों की खुमारी में दिल्ली के दिल का हाल जानने की जरूरत किसी ने नहीं समझी| बी.जे.पी. हाथ आई सत्ता को सजाने संवारने में लग गई, और बाकि पार्टियाँ तो सूपड़ा साफ़ होने के बाद, अपनी जमीन ही तलाश रही हैं| दिल्ली का दिल उदास है और अब तो मायूस भी|
अचानक एक दिन खबरों में फिर दिल्ली छा गई, किसी खोजी पत्रकार ने दिल्ली में सरकार बनाने की कवायद की खबर चलाई और दिल्ली का दिल फिर धड़कने लगा| अभी तक शांत बैठे कई पुराने खिलाडी फिर मैदान में उतरने को हाथ पांव मारने लगे| शुरू हो गया तोहमतों, आरोपों का दौर, खरीद फरोख्त और बोलियों का ज़ोर| सभी हारे हुए जुआरी एक स्वर में बी.जे.पी. को नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे| अरे भैया जी, इस देश में कोई भी, हाँ कोई भी नैतिकता का रोना रोए, ये बात कुछ हजम नहीं होती| इन सारे कुर्ताधारी नेताओं को कोई ये भी तो नहीं कह सकता की “बाबू” अपनी गिरेबां में झांक लो| इनके कुर्तों में गिरेबान ही कहाँ पाई जाती है(यहाँ इस बात का जिक्र जरूरी है की माननीय मोदी जी गिरेबान वाला कुरता पहनते हैं)| खैर……. मुद्दा ये की दिल्ली के होठों पर हंसी की एक लकीर दिखने ही जा रही थी, कि ये सारी तोहमतों का दौर चल पड़ा|
दिल्ली मौन है और देख रही है ध्रितराष्ट्र की तरह हस्तिनापुर का महाभारत| इसमे पांडव कौन और कौरव कौन, कहना मुश्किल है, सभी स्वयं को धर्मराज साबित करने में लगे हैं| इस महाभारत में “मोदी जी” कृष्ण की भूमिका निभाएंगे या मामा शकुनी की, ये देखना अभी बाकी है|
दिल्ली का दिल तो कहता है की उसका दिलरुबा उसी तरह मिले, जैसे देश को मिला है| बिना किसी उठापटक, जोड़तोड़ के|
दिल्ली की तरफ से मैं माननीय प्रधानमंत्री(सेवक) से अपील करता हूँ की दिल्ली का दिल दुखी हो ऐसा कोई काम उनसे न हो, और दिल्ली को हक़ हो अपना दिलरुबा अपने हिसाब से चुनने का|


– अवी घाणेकर
३०१०, सेक्टर ४/सी,
बोकारो स्टील सिटी

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