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नौकर(लोक)शाही और “अपने राम” !

अपनेराम की डायरी
अपनेराम की डायरी
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हमारे घर पर करीब २० साल से झाड़ू, पोंछा, बर्तन करने वाली सुमित्रा जब ४ दिन काम पर नहीं आई और अचानक मेरी कमर में दर्द होने लगा तो हमारी डॉक्टर पत्नी जी को पता चला की कुछ गड़बड़ है| उसकी पूछताछ से उकता कर मैंने सही वजह बता दी की ४ दिन पहले मैंने सुमित्रा देवी को डांट लगाई थी उनके देर से आने के लिए| मेरी कमर का दर्द भी घर सफाई और बर्तन धोने से बढ़ गया था, अजी अब वो पहले जैसी बात तो रही नहीं की, गधा मजूरी कर सकें, अब तो एक कुल्हा भी बदलवा लिया है अपन ने| खैर, सुमित्रा देवी के कारण हम पति पत्नी में शीत युद्ध की नौबत आन पड़ी| बात ऐसी है की मेरे पिताजी जो हमारे साथ ही रहते हैं घोर धार्मिक हैं और सुबह ९ बजे तक नहा धो कर पूजापाठ में लीन हो जाते हैं| उनकी पूजा और सुमित्रा देवी का उनके कमरे में झाड़ू लिए घुसना अक्सर एक साथ होता है, और यही कारण बनता है उनकी भुनभुनाहट का| अब इस उम्र में उन्हें भुनभुनाने का कोई कारण हम भले ही न देना चाहें पर सुमित्रा देवी को इस से कोई सरोकार नहीं है| करीब २५/ ५० बार उन्हें जल्दी आने की मिन्नतें करने पर भी सुमित्रा देवी हैं की मानती नहीं| आखिर एक दिन जब हदे-बर्दाश्त हो गई तो अपने राम भी बरस पड़े सुमित्रा देवी पर, और यहीं हो गई आफत| आप कहियेगा की भाई जब आपकी पत्नी घर पर हैं तो आप को नौकरानी से पंगा लेने की क्या जरुरत| अब ये बात आपको समझाना आसान नहीं है, हमारी पत्नी को टाइम नहीं है इन सब फिजूल बातों के लिए, इसीलिए तो घर पर ४/४ नौकर रखे हुए हैं| खैर, मुद्दे की बात ये की सुमित्रा देवी नहीं आईं तो हमने अपने यहाँ काम करने वाले माली को उनके घर भिजवाया| माली के हाथ सुमित्रा देवी का संदेसा आया की” साहब को हमारा काम पसंद नहीं तो हम काम काहे करेंगे|” ये सुनना था कि घर में कोहराम मच गया, हमें तो इतना गुस्सा आया की आस पास की सभी वस्तुएं, व्यक्ति आदि इधर उधर छितरा गए| पत्नी जी हमीं पर नाराज होने लगीं, “तुम तो रांची चले जाओगे और यहाँ हम नौकरी करें की घर संभालें| क्या जरूरत है तुम्हे इन सब झंझटों में पड़ने की, आ तो रही थी न १०.३० बजे ही सही| पिताजी के कमरे की झाड़ू मैं सुबह अस्पताल जाने के पहले लगा देती| तुम तो कुछ समझते नहीं हो बस अपनी मुर्गी की तीन टांगे ले कर बैठे रहो, अब कोई नहीं मिलने वाला काम करने के लिए, बीस साल से कर तो रही थी जैसा भी हो|” पिताजी ने अपने कमरे के टीवी का आवाज तेज कर ये जताया की वो भी खुश नहीं हैं इस परिस्थिति से, जो हमारे कारण, आज आ गयी है|
हम भी ताव में आ गए “ बीस साल से कर रही थी इसीलिए चर्बी चढ़ गयी है, उतारना जरूरी था| बीस सालों में हम लोगों ने क्या कम किया है उसके लिए, कभी कपडे, बर्तन जाने क्या क्या, और तो और, अपना कूलर, गद्दे, पलंग, कुर्सियां, जो भी सामान हमें नहीं चाहिए था, वो बेचा नहीं, उसे दे दिया, तुम उसके सारे परिवार के लिए अस्पताल से दवाईयां ला देती थीं, मुफ्त इलाज करती थी, सब भूल गयी एक दिन में बीस साल का हिसाब, नहीं आती तो ना आये, मेरी बला से, सैकड़ों मिल जाएँगी काम वालियां|”
“तुम्हारे लिए तो लाइन लगी हुईं हैं काम वालियों की हैं ना? “भाई साहब(?)” आप सपने देखना बंद करें, अब वो बात नहीं रही की एक ढूंढो और हजार मिल जाएँ, अगर उसने अपनी जमात में कुछ कह दिया तो कोई दूसरी फटकेगी भी नहीं तुम्हारे दरवाजे|” पत्नी का ये सुर सुन कर(भाई साहब ? ) हमारी सारी हवा निकल गयी| ठंडे होते हुए हमने उनसे कोई हल निकालने को कहा| “ अब तो बस उसे बुला कर माफ़ी मांगेंगे की भाई गलती हो गयी, अब कभी साहब तुम्हे कुछ नहीं कहेंगे, तुम्हे जब आना है तो आना और जितना मन करे उतना काम करना|” पत्नी ने कहा| बच्चे, जो अब तक मुझे खूनी नजरों से देख रहे थे, आश्वस्त हो गए की चलो सुमित्रा देवी महान वापस आ जाएँगी और जो थोड़े बहुत हाथ पांव चलाने पड़ते घर की साफ़ सफाई में, उससे तो बचेंगे|
इस सारे घटनाक्रम से मेरे दिमाग में एक अजीब हलचल होने लगी, क्या हाल हो गया है आज हमारा, नौकरों को तनख्वाह भी दीजिये, पांव भी पकडिये, और उनकी मर्जी भी संभालिये, नहीं तो आप से बड़ा नालायक इस संसार में दूसरा कोई नहीं है आपके घरवालों की नजर में| दिमाग की हलचल शांत करने के लिए हमने बाहर जाने की सोची और चल पड़े|
बाहर चुनावों की चर्चा से माहौल गरम था, पाण्डेय जी जोर जोर से अपनी बात कह रहे थे “ अरे ये नेता लोग क्या हैं ये जनता के सेवक हैं, नौकर हैं ये हमारे आपके, वोट दे कर हम ही न इन्हें अधिकार देते हैं हमारे लिए काम करने का, तो अधिकार देने वाला बडा या लेने वाला|” पाण्डेय जी की बात में दम था, और अभी अभी चोट खा कर भुन्नाये हुए अपने राम भी घुस गए चर्चा में| “ बिलकुल ठीक पाण्डेय जी, भाई जनता के सेवक हैं तो सेवक ही बने रहिये पर ये नेता हैं कि चुनाव जीतने के बाद मालिक बन बैठते हैं| इसके लिए जिम्मेदार भी तो हम आप ही हैं, किसी मंत्री, संत्री की चिरौरी भी हम ही करते हैं, हमें ये समझना होगा की ये नेता मंत्री अगर कोई काम करते हैं तो ये उनका कर्त्तव्य है, नौकरी है भाई उनकी ये| इनसे कोई काम करवाने के लिए हमें सिफारिश करने की जरुरत नहीं है, हमें तो आदेश देना है की ये काम होना चाहिए, इसीलिए तुमको रखा है, और तुम्हारे काम में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, काम नहीं करोगे तो निकाल बाहर करेंगे कान पकड़ के| ये रवैया होना चाहिए इन नेताओं से काम कराने का|” हम ये बाते कर ही रहे थे की हमने देखा की सुमित्रा देवी हमारे माली के साथ हमारे घर जा रही हैं, जाते जाते हमारी तरफ देख भी रही हैं| खैर….. हमारे ताव को देख कर मोहल्ले के कई लोग जोश में आ गए, अब तो साहब प्रस्ताव पास होने लगे की इस चुनाव में जीतने वाले को कैसे उसकी औकात दिखानी है| हम जनता मालिक हैं, और वो नौकर है हमारा| अब कोई रुबाब नहीं चलेगा उसका हम पर, जो हम कहेंगे वो करना होगा सौ प्रतिशत|
वाह साहब, मजा आ गया इस चर्चा से, इन्कलाब जिंदाबाद करते हम अपने घर की तरफ निकल पड़े| घर पहुंचे तो देखा की सुमित्रा देवी सोफे पर विराजमान चाय पी रहीं हैं और हमारी पत्नी उनकी चिरौरी करते हुए कह रही हैं “सुमित्रा , साहब की बात का बुरा मत मानो, उन्हें कुछ समझता नहीं है, कुछ भी बक देते हैं| तुम्हे जब समय मिले तब आओ और जितना काम करना हो उतना करो, कोई कुछ नहीं बोलेगा तुम्हे|” आखिरी जुमला पत्नी ने हमें देखते हुए फेंका| सुमित्रा देवी हमें देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहीं थीं, जैसे चिढ़ा रही हों हमें| मोहल्ले की चौपाल पर झाडे हुए सारे शब्द हमारे जेहन में नाचने लगे, हम समझ गए की भैया नौकर ही मालिक होता है और आप हम तो किसी गिनती में ही नहीं हैं| इसलिए ज्यादा सोचने का नहीं, नेता को, मंत्री को, संत्री को और सुमित्रा देवी को, जो सूझे, जैसे सूझे, करने दो| हम समझ गए की ज्यादा होशियार बनोगे तो धोबी के कुत्ते हो जाओगे, न घर के न घाट के|

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