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बड़ा आसान हैं चुनावी वायदों से मुकरना

avibyakti
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. . चुनावी वादे पुरे नहीं होते.हर पार्टी और नेता जानता है कि जनता को इन वायदों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. जनता मुद्दा पर मतदान नहीं करती है. जनता अपने मान-सम्मान के लिए मतदान करती है. विकाश से मतदान का कुछ लेना देना नहीं है. हाँ सरकार की मज़बूरी होती है जनता के विकाश का काम करना. चूकि अरबों के काम में करोड़ों खर्च करना सरकार से जुड़े लोगों के लिए लाभ की बात है.इस लिए अपने लाभ के लिए सरकार से जुड़े लोग जनता के नाम पर कुछ न कुछ तो करेंगे हीं.हर पार्टी चुनावी घोषणा की औपचरिक्ता पूरी करती है,पर हर पार्टी या नेता अपना चुनावी समीकरण पर ज्यादा ध्यान देते हैं.कोई मुस्लिम+यादव समीकरण बनाता है तो कोई दलित+ब्राह्मन कोई बनिया+लाला+राजपूत समीकरण बनाता है तो कोई नया समीकरण.इस समीकरण प्रणाली में चुनावी वायदे का कोई मतलब नहीं रह जाता. बुद्धिजीवी मतदाता जो विकाश की बात सोचते हैं, पार्टियों के नजर में वोट देने ही नहीं जाते हैं.दो घंटे लाइन लग कर वोट देना बुद्धिजिवियों के वस की बात नहीं है.
.. . देश सेवा की भावना किसी पार्टी या किसी नेता के अन्दर नहीं है. राज करने की इक्षा, देश पर शासन करने की इक्षा से प्रेरित नेता तरह-तरह के तिकड़म से मतदाता को भ्रमित करते रहते हैं.देश सेवा के नाम पर नेता अपने पुरे परिवार के साथ देश को लुटते हैं. भारतीय राजनीती में कई चेहरे दीखते हैं जो अपने बेटे, भाई,पत्नी,बहन,साली,या यों कहिये की अपने पुरे रिश्ते नाते के साथ देश सेवा में रत्त हैं. जनता इस सेवा को भली-भाति जानती है.जनता के शब्दों में इसे यों कहा जा सकता है,कि देश को लुटाने में लगे हैं. ऐसे में जनता के वायदों पर खरा उतरने कि बात का कोई मतलब ही नहीं रह जाता. अगर वाकई इन नेताओं को देश से प्रेम हैं,पुरे परिवार के साथ देश सेवा की इक्षा है,तो उन्हें सेना में जाना चाहिए,परिवार के लोग सेना में भर्ती हो कर देश की सीमा पर दुश्मनों से जंग की तैयारी करनी चाहिए. तब पता चलेगा की देश सेवा की बात में कितनी सच्चाई है. कारगिल युद्ध के दौरान,या देश में किसी भी युद्ध के दौरान मरने वालों में किसी राजनेता का बेटा या परिवार का सदस्य नहीं होता.
… . चुनाव आयोग को इस पर नजर रखनी चाहिए की चुनाव मुद्दा विहीन न हों. और इस बात की भी चुनाव बाद समीक्षा हो कि चुनावी मुद्दों पर पार्टियाँ काम कर रही हैं या नहीं.मुद्दा विहीन भाषण, चुनाव प्रचार के दौरान न हो.जो पार्टियाँ घोषणा-पत्र के आलोक में काम न करें उन्हें अगले चुनाव के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए.प्रत्याशी और पार्टी से आयोग पूछे कि चुनाव लड़ने का मकसद आपका क्या है?और चुनाव बाद आप इस पर अमल करेगें वर्ना आपको अगले चुनाव के लिए अयोग्य माना जायेगा.इस सन्दर्भ में आवश्यक होने पर सपथ पत्र भी लेना चाहिए. एक आशा की दीप भारतीय मतदाताओं के मन में हैं,चुनाव आयोग या अन्य सक्षम तंत्र इसको सफल करने का प्रयास करे.मतदाता जब तक जागरूक नहीं हो जाते चुनाव आयोग को सजग रहना पड़ेगा.

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