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अमीरों को खुश करेगी अब सरकार

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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उनका दिमाग अम्‍बर है, जाने क्‍या-क्‍या बसा दिमाग के अंदर है, मन उनका हिमालय है, विचार उनके बंदर हैं, जो उछलते कूदते सिकंदर हैं। जी हां, अब वे कह रहे हैं कि हमने गरीबों की संख्‍या में कमी लाकर, अमीरों की संख्‍या बेइंतहा बढ़ा दी है इसलिए अमीरों से ज्‍यादा कर वसूलने का प्‍लान है। अब अमीर झक मार कर, ज्‍यादा कर तो देंगे बल्कि देना ही पड़ेगा परंतु फिर आपको काला धन नहीं मिलेगा, यह पहले सोच लो। उसी के बूते आप कुर्सी पर टिके हो, यह अमीरों ने जाहिर कर दिया है। एक खाते में ही तो खाओगे या तो टैक्‍स वसूल लो या काला मनी, सपना अपना तो हनी हनी यानी शहद शहद, नुकसान उसको ही होगा जिसको डायबिटिज होगी।

आपका ही मजबूत मन है जो आपके और हमारे बीच एक मजबूत पुल का काम करता है। टैक्‍स ज्‍यादा देंगे तो काला धन नहीं देंगे। फिर इन घपले घोटालों में भी कमी आएगी, इतना विशाल जाल नहीं बिछा रहेगा, जो जी का जंजाल बन जाए। हम तो देने वाले हैं, हमारी मजबूरी है पर आपके लेने के लिए तरीके पर आपकी और आपके साथियों की रजामंदी जरूरी है। काला धन संबंधों को सफेद करता है, टैक्‍स काला करेगा।

काला धन लुंज पुंज होता है और कर में जो मिलता है वो होता है मजबूत और सरकार को देता है मजबूती। गर यह पहले ही सोच विचार लिया गया होता तो नेताओं को जूते-सैंडल क्‍यों खाने पड़ते। क्‍यों चुभती रहती उन्‍हें उलाहनों की कील, क्‍यों ढूंढते रहते सदा वे बचने के लिए काबिल वकील। फिर कील से अधिक दुखी करती है फांस, जो लेने नहीं देती है कभी चैन की भी सांस। होती है जरा सी पर करती है पूरे शरीर का सत्‍यानास। जब तक निकाल न दो। नहीं आता चेहरे पर निखार। हम तो नित नेताओं के खाते भर रहे हैं। आपकी तरह नहीं किसी को देने से डर रहे हैं।

आपका क्‍या है, कल को आप कहेंगे कि देश को चलाने के लिए स्‍पांसरशिप चाहिए, वो भी मिल जाएगी। आखिर अंबानी, टाटा, बिरला, अमिताभ बच्‍चन, सचिन तेंदुलकर जैसे सज्‍जन देश में मौजूद हैं अमीरी के दिग्‍गज हैं वे, देश को डूबने नहीं देंगे, चाहे खुद डूब जाएं या आपको डुबो दें। वैसे आप तो अपने कारनामों से ही डूब रहे हैं। आपकी चलती रहेगी तो अमीरी के स्‍लैब बना लिए जाएंगे। जितना अमीर उसको उतने अधिक रेट पर वस्‍तुएं बेची जाएंगी बल्कि वे अपनी खुशी से अधिक भुगतान करेंगे। दस हजार महीने की इंकम है तो पेट्रोल 20 रुपये लीटर, पचास हजार है तो 50 रुपये लीटर, एक लाख है तो 150 रुपये और 5 लाख है तो 500 रुपये लीटर मिलेगा। इसी प्रकार गेहूं, आटा, दाल, गैस, चावल और अन्‍य वस्‍तुएं– देखते हैं कि देश का गारंटिड विकास कैसे नहीं होता है।  आखिर जो अमीर हैं उन्‍हें उनके अमीरपने का भी भरपूर अहसास कराया जाना जरूरी है। जरूरी हो तो इसके लिए भी कानून बना लिया जाए। यह क्‍या कि जो मजदूर 100 रुपये रोज कमा रहा है और टाटा, बिरला, अंबानी, अमिताभ 25 लाख रुपये रोज, दोनों को ही पेट्रोल 70 रुपये लीटर मिले। इस प्रकार का अत्‍याचार नहीं होना चाहिए, इससे देश का विकास बाधित होता है। आखिर अमीरों की भी तो जिम्‍मेदारी बनती है कि जिस देश के वे नागरिक हैं, देश के प्रति अपना अमीरधर्म निभायें। गरीबों को छूट और अमीरों को लूटने की छूट – वो अधिक वाली राशि सरकार के खाते में जानी चाहिए, सरकार ही लुटेरी कहलाई जानी चाहिए। जो इस कानून को न माने, वो देशद्रोही। अभिनेताओं, नेताओं को पेट्रोल 5000 रुपये लीटर मिलना शुरू हो ही जाना चाहिए। आप देखेंगे देश जिन समस्‍याओं से जूझ रहा है, सब पीड़ाएं एक ही झटके में छू-मंतर हो जाएंगी। है न जादू की छड़ी का कमाल।

इसी प्रकार दूध 10 रुपये लीटर से शुरू होकर 10,000 रुपये लीटर तक बिकना चाहिए। आप कहेंगे, यह भेदभाव है तो इसमें क्‍या तकलीफ है, किसी को क्‍या आपत्ति है और क्‍यों आपत्ति है। मेरी मानें तो सब चीजें ऊंची बोली लगाकर बिकनी चाहिएं और अगर गरीब हैं तो उन्‍हें रियायती दरों पर सब्सिडी के साथ मिलनी चाहिएं।

भगवान भी यही चाहता है, अगर न चाहता तो किसी को काला गोरा क्‍यों बनाता। जैसे सब बंदर एक जैसे, जैसे सारी बिल्लियां एक जैसी, सारे सूअर, कुत्‍ते, गिलहरियां, चीटियां – वैसे ही क्‍यों नहीं इंसान एक जैसे ही बनाता। ऐसे ऐसे नायाब आइडिए न जाने क्‍यों इंसान को ही देर से सूझते हैं और सूझने के बाद भी अपनाने में देरी और लापरवाही, देश के विकास को अवरुद्ध करती है। अब तो क्रांति की अलख जग ही जानी चाहिए। देश का बेड़ा गर्क होने से बचाने के लिए अमीरों को सामने आना ही होगा। सरकार तो घुटनों को बिछाकर उन पर बैठ गई है।

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