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नेता बोलें तो सब ठीक, जनता बोले तो कैरेक्‍टर ढीला है

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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जरा सी सच्‍चाई की पोल क्‍या खोल दी,  अपनी खाल से बाहर ही निकल आए वे। अब बड़े हो दिल्‍ली के गोलघर में बैठते हो तो इसका मतलब यह तो नहीं कि आपकी खाल किसी टैन्‍ट हाऊस का विशाल तिरपाल हो गई। अभिनेता ने जो कहा, वो नेता को बुरा लग गया। अब नेता जो कह रहे हैं उससे अभिनेता को भी तो बुरा लग रहा होगा। शायद नेता और अभिनेता दोनों सच बोल रहे हैं । सच बोलना बिल्‍कुल सरल है, क्‍योंकि सच कड़वा होता है, तीखा होता है, इसके लिए इसमें मसालों को मिलाए जाने की जरूरत भी नहीं है।

आप जहरीले हो, भ्रष्‍ट हो, आपसे आपके वोटर त्रस्‍त हैं, आपके कारनामे जगजाहिर हैं, फिर भी आप खुद को सर्वोपरि समझते हैं, इसलिए ऐसी चीख चिल्‍लाहट मचाना तो स्‍वाभाविक ही है। आप जो हैं और आपको वही कह दिया गया है तो बौरा गए। आप कह रहे हैं पीकर बोल रहा था। आपने खाने के लिए कुछ छोड़ा ही कहां ? क्‍या खाकर आपके खिलाफ कोई बोलेगा। गनीमत कहिए कि पीकर बोल गया।

इसमें क्‍या गलत कहा गया कि वे परीक्षा पास करके संसद में दाखिल हों, इसमें बुरी बात क्‍या है, जो उन्‍हें इसमें भी अपना अपमान लगने लगा है। हर आदमी अपने आदमी की ही परीक्षाओं की तो चिंता करता है। नहीं पूछेंगे, मुश्किल सवाल, एबीसीडी सुन लेंगे, दस तक गिनती लिखवा लेंगे, एकाध जानवरों के चित्र पहचनवा लेंगे। इम्‍तहान तो दें कि डर का भूत सिर पर सवार है, फेल न हो जाएं।  मतलब अपने सिर पर पड़ी तो भारी,  अपनी खाल कटे तो आरी, वैसे कहते हैं कि अवाम ही है माई बाप। जीत कर या हार कर अथवा वोटरों को मार कर यानी किसी भी तरह सत्‍ता हथियाने वाले, संसद में घुस जाने वालों को कोई क्‍या कहे, वे खुद ही बतलायें। उनकी तारीफ में कौन सी उपमाएं गाई जाएं, अलंकार और अनुप्रास लगाए जाएं, वंदनवार सजाए जाएं। आप करें भ्रष्‍टाचार, आम जनता बिल्‍कुल बेबस और लाचार। इसी लाचारी में तो इनकी सफलता के सूत्र छिपे हैं। वे तरह तरह के घोटाले करते हैं, उन्‍हें घोटूं कहें तो कैसा लगेगा जी, ऐसे में शायद लिहाज में अनपढ़ कह लिया गया।

वोट फॉर नोट देख लीजिए, ये भी तो इनके भाई ही हैं, सगे नहीं तो क्‍या हुआ मौसेरे ही सही। इन्‍हें जब नोट दिए जा सकते हैं, ये अपने फायदे के लिए नोट दे भी सकते हैं, मतलब खरीदना और बेचना दोनों जायज। अगर सांसद गाहे बगाहे खुद ही आईना देख लिया करें तो उन्‍हें सच्‍चाई इतनी कड़वी नहीं लगा करेगी और वे सदा मीठा मीठा ही क्‍यों खाते रहना चाहते हैं। इतना मीठा खाओगे तो डायबिटीज हो जाएगी।

अपनी तारीफ तो सभी को भाती है, चाहे वो बिल्‍कुल झूठी ही क्‍यों न हो। तारीफ कर दी होती,समर्थन में बोल दिया होता, तो फूल कर गोल-गप्‍पा हो रहे होते। पूरे देश में मिठाई बंटवा देते। चैनल वाले और मीडिया इन्‍हें सुर्खियों में रखें तो ठीक, तब नहीं पूछते हैं कि सिर्फ हमारी खबरें ही क्‍यों, हम कौन से तीसमारखां हैं, जो हमें ही इतनी फुटेज। जब इन्‍हें इग्‍नोर कर दे, तो उनसे बुरा कोई नहीं है, सबसे बड़े दुश्‍मन। सच में जैसे नोट रखते हैं ये कारे कारे, उसी तरह इनके मन भी हैं कारे कजरारे।

कुल मिलाकर निष्‍कर्ष यही निकलता है कि वे चिल्‍लाएं तो सब ठीक, अवाम बोले तो कैरेक्‍टर ढीला है। जो बोल गए, उनका मामला अब गीला है। फिल्‍म में मुन्‍नी और शीला है। देश में रामलीला है। जिसे जो समझ में आ रहा है, बोले जा रहा है। देखिए हम भी क्‍या क्‍या बोल गए। आप भी हमें टिप्‍पणियों में जो चाहे कह दो जी। यही तो लोकतंत्र है, इसके बाद तो सब षडयंत्र है जी। नहीं क्‍या ?

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