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नोट चाहिए तो हाकी की गोद छोड़ो, क्रिकेट की गोद पर कब्‍जा जमाओ – मेरे देश के हाकी खिलाडि़यों

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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हाकी देश में अपने उस सम्‍मान के कारण सुर्खियों में है, जिसे वो अपमान समझ बैठी। पाकिस्‍तान पर जीत हासिल करने पर पुरस्‍कारस्‍वरूप जो नकद राशि विजयी खिलाडि़यों को दी जा रही थी, वो उन्‍हें नागवार गुजरी, जबकि उसमें नाग अथवा सांप जैसा कुछ नहीं था। भारतीय संस्‍कृति में माना जाता है कि इनाम में मिला एक रुपया ही बहुत होता है। शगुन में भी जो महत्‍ता एक रुपये की बतलाई गई है, वो ग्‍यारह हजार और ग्‍यारह लाख की भी नहीं है। पर यह बात उन हाकी खिलाडि़यों को कैसे समझाई जाए जो लकड़ी की हाकी से खेल जीत कर अपने दिमाग को भी लकड़ी का बना हुआ साबित कर चुके हैं।  लेकिन कई बार करतूतें कारनामों से अधिक मुनाफे वाली सिद्ध होती हैं, यही हाकी खिलाडि़यों की करतूत के साथ हआ और उनकी 25 हजार की ठोकर ने छप्‍पर ही फाड़ डाला और खूब सारे नोट बरस पड़े हैं। इसे कहते हैं कूबड़ के लात पड़ी तो कूबड़ ही ठीक हो गया। अब नोट भी खूब मिले हैं और मिली हैं सुर्खियां। तल्खियां बन गईं सुर्खियां जो करोड़ों खर्च करके भी नहीं बनतीं। आज न लिखे जाते इतने ढेर सारे संपादकीय, न खबरें, न चैनल मीडिया पर पब्लिसिटी। जो सिर्फ सिटी ही नहीं, देश भी नहीं, देश से बाहर भी इसको चर्चा में ले आई। न होतीं इतनी चर्चाएं और चिंताएं। चिंताएं तो अब तक थीं पर वे अब चिंतन की ओर मुड़ चुकी हैं।

तुलना करने चले हैं क्रिकेट से। जिसमें बाल फेंकने के लिए भी अलग से माहिर खिलाड़ी होते हैं जिन्‍हें बालर कहा जाता है। हाकी में तो यूं ही बाल को लुढ़का भर दिया जाता है, उसके बाद बाल के पीछे अपनी अपनी हाकी लेकर लुढ़कते फिरो सब और सिर फुटव्‍वल करते रहो। आपस में भी उलझ-उलझा कर गिरो। मतलब हंसी का भरपूर मसाला, कम हो जाए तो हार जाओ, हार कर भी दुनिया को खूब हंसाओ। उसी ठहाके लगाती दुनिया के बाशिंदों ने खुशी से पच्‍चीस हजार देने चाहे तो तुम्‍हें न भाए, कैसे हो गए हाकी वाले इतने खाए अघाए। क्रिकेट में तो बाल पकड़ने के लिए हाथों का उपयोग होता है, हाकी खेलते समय बाल में हाथ लगाओगे तो हार जाओगे, जब यह जानते हो, फिर क्‍यों खुद को क्रिकेट के बराबर चिरकुट मानते हो।  वहां एक बाल के पीछे सब बैट लेकर तो नहीं भागते हैं तुम्‍हारी तरह, बेशर्मों के माफिक, सब एक बाल के पीछे अपनी अपनी हाकियां लेकर दौड़ पड़ते हो, फिर कहते हो हमें भी क्रिकेट के बराबर नोट मिलने चाहिएं। नोट कर लो, ऐसा कभी नहीं होगा। जितना मिल गया, उतने में सब्र कर लो, संतोष धन का कोई मुकाबला नहीं है। एक बार पाकिस्‍तान को क्‍या हरा दिया, खुद को फन्‍ने खां समझ बैठे। इस बार तो तुम्‍हारी जिद को आसमान दे दिया है, अगली बार जमीन भी नहीं मिलेगी।

वैसे इसमें गलती तुम्‍हारी नहीं है हाकीधारकों। दूसरे की आय सदा ही सबसे अधिक दुख देती रही है। दूसरे का सम्‍मान खुद को अपमान लगता है। दूसरे के खर्चे सबसे कम नजर आते हैं। दूसरे विज्ञापन में सबसे अधिक दिखाई देते हैं। पर वे दूसरे नहीं हैं, वे भी हमारे सबके अपने हैं। अपनों की उन्‍नति देखकर नहीं जलना चाहिए। उन्‍हें मिल रहा है तो यह उनकी गलती नहीं है। आपको नहीं मिल रहा है तो यह आपकी खामी है। आपने खुद ही तो हाकी थामी है, क्‍या कोई जबर्दस्‍ती आपको हाकी थमाकर गया कि इसे ही खेलो। अपनी मर्जी से चुनी थी न। फिर क्‍यों बिसूर रहे हो, तब नहीं मालूम था कि क्रिकेट में खूब माल होता है, विज्ञापन भी मिलते हैं, इसी में खिलाड़ी कंपनियों के ब्रांड एंबेसडर बनते हैं, सब मालूम था पर सोचे बैठे थे कि हाकी में झंडे गाड़ेंगे तो डंडे की जरूरत भी नहीं होगी। हाकी पर लगाकर ही फहरा लेंगे। तो फिर फहराओ न, यूं फिजूल में मत शोर मचाओ। अब भी संभल जाओ। छोड़ो हाकी और बैट थाम लो। कम दौड़ो और ज्‍यादा माल लो। न कि हाकी खेलते रहो, भागते रहो, तो धन भी तो तुम्‍हें भागते देखकर तुम्‍हारे से तेज भागेगा ही, इसमें दुख कैसा ?सबको अपना समझो। राम नाम जपना, पराया माल अपना। हाकी खेलते रहोगे, चाहे जीतते ही रहो, फिर भी बना रहेगा सपना। क्रिकेट मे जितनी राजनीति होती है, कभी हाकी में सोची है। होती होगी तब भी अंदर की खबर बाहर तक नहीं आती है। वो तो इस बार तुम्‍हारी नालायकी ही तुम्‍हें लायक बना गई है, पर हर बार ऐसा नहीं होता है। ख्‍यालों के पुलाव सदा सुगंध ही नहीं देते हैं और न पकते ही हैं। कच्‍चे परमल चावलों पर ही रहना पड़ेगा, नहीं तो हाकी छोड़ो, बैट थाम लो। तब भी मन न भरे तो हाथों में जाम लो।

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