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शीला की जवानी से अधिक आज प्याजो की जवानी गजब ढा रही है। उसकी संगी सब्जियां उसकी जवानी देखकर इतरा रही हैं। सब्जियों पर जवानी का यह चस्का जिसने भी लगाया हो परंतु इससे नफा या नुकसान सबसे अधिक नेताओं को ही होता है। ऐसा भी नहीं है कि प्याज के रेट बढ़ने से बाकी सब्जियों के रेट गिरने या बढ़ने लग जाते हों। टमाटर के रेट बढ़ने में प्याज की कोई मिलीभगत नहीं है। नफा या नुकसान नेताओं को तो होता है पर उससे अधिक आम पब्लिक का रस निकल जाता है। प्याज को खरीदने के लिए जब सरकार उन्हें सरकारी दुकानों पर बेचने की घोषणा कर देती है तो लोग लाईन में लगने के लिए अपने परिवार के साथ मौजूद हो जाते हैं। एक ही परिवार के जब सात लोग लाईन में लग जायेंगे और एक व्यक्ति को एक किलो प्याज दी जाती है तो सात किलो तो वे अकेले ही ले जायेंगे । अब सात किलो एक परिवार में तो एक साथ प्याज खाई नहीं जा सकती, इसलिए वे इससे मुनाफाखोरी करेंगे। प्याज आलू नहीं है कि सब्जियों में आलू की तरह इस्तेमाल हो। सरकार की नीतियों का मखौल आम पब्लिक यूं उड़ा देती है। सरकार सोचती है कि वो बेहद अक्लधारी है। पर पब्लिक उस पर पड़ती भारी है।इधर शीला की जवानी का हल्ला मचा हुआ है। कितनी ही शीलाएं परेशान हैं वे अपने घर में मुंह छिपा रही हैं। बाहर जाती हैं तो जितने सुशील हैं, वे उनके पीछे पड़ जाते हैं, सीटियां बजाते हैं, गाना गाते हैं। फिल्म में गाना शीला ने गाया है जबकि असलियत में शीला को देखकर सुशील गाना गा रहे हैं। अब पुलिस भी क्या करे, जब कोई शीला पुलिस में जाकर शिकायत करती है, तो सुशील कहता है कि वो तो फिल्म का गाना गा रहा है। पुलिस वाला भी सुशील का ही पक्ष लेता है और एफ आई आर लिखने से मना कर देता हूं क्योंकि उस पुलिस वाले सिपाही का नाम भी सुशील ही है। अब पुलिस में भर्ती होकर, वो कितना सुशील रह गया है, यह तो उसका यह कारनामा ही बतला रहा है। जब से शीला की जवानी गानों में गूंज रही है, सुशील खुश हैं और सिर्फ सुशील नहीं विनोद, सतीश, अनिल भी खूब लुत्फ उठा रहे हैं। जब मुन्नी बदनाम हुई थी तो झंडू बाम वाले परेशान हो गए थे, परेशान वे इसलिए नहीं थे कि मुन्नी झंडू बाम क्यों हो गई बल्कि वे इसलिए दिक्कत महसूस कर रहे थे क्योंकि उनके दूसरे उत्पाद मुन्ना से मेल खाते थे परंतु किसी गीतकार ने मुन्ना बदनाम हुआ है या मुन्ना ने नाम किया अथवा मुन्ना करता है तक ता ता धिन्ना – करके उनके किसी उत्पाद के वारे-न्यारे नहीं किए। अभी अभी खबर मिली है कि रिश्वत के तौर पर भी प्याज का प्रचलन होने लगा है।
प्याजरानी की जवानी नेताओं की देन है और प्याजो बदनाम भी नेताओं के कारनामों के कारण ही हो रही है। प्याज का उत्पादक किसान के यहां पर तो सूखा है, सूखा ही रहेगा, वो इसे पालता-पोसता रहेगा और इसकी जवानी का फायदा नेताचंद उठाते रहेंगे।
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