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भ्रष्‍टाचार के हौसले का रहस्‍य

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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उसे जब मारा गया तो उसके मुंह से निकलने वाले अंतिम शब्‍द थे – हे रावण, हे रावण, हे रावण। तीन बार जोर से चीखने की आवाज आई और वो ढेर हो गया। रावण के एक पुतले ने यह चीख सुनी और उसे आशीर्वाद दिया कि भ्रष्‍टाचार तू निश्चिंत रह, चाहे एक अन्‍ना अथवा पूरा देश अन्‍ना बन जाए और अपनी संपूर्णता से तुझे मिटाना चाहे, पर इस युग में कामयाबी मुन्‍ना को ही मिलेगी। अन्‍ना हजारे हो, पर कामयाब मुन्‍नाभाई ही रहेगा।  मुन्‍नाभाई को पराजित करने की ताकत और किसी भाई अथवा बहन में नहीं है।

भ्रष्‍टाचार इतनी आसानी से प्राण छोड़ने वाला नहीं था। वो ढेर होने का चतुर अभिनय कर रहा था। इतना सटीक अभिनय कि मौत को भी एक बार अपने होने का मुगालता हो जाए। भ्रष्‍टाचार ने ढेर होने से पहले तुरंत पूछा, क्‍यों, इस पर रावण के पुतले से आवाज आई कि आचार जब दूषित हो जाते हैं तो कोई सर्फ या वाशिंग मशीन उसे धोकर सफेद नहीं कर पाते हैं। आज महंगाई जोरों पर है, लग रहा है कि महंगाई की सरकार है और महंगाई ही साकार है। इसका मुकाबला करने के लिए भ्रष्टाचार ही एकमात्र हथियार है। इस अचार का स्‍वाद जिसके मुंह लग चुका है, वो नहीं छूट सकता, भले ही कुछ समय के लिए इस पर रोक लग जाए पर जिस चटोरेपन की जीभ को लत पड़ चुकी है, वो नहीं छूट सकती।

भ्रष्‍टाचार के सीने पर एकदम आधुनिक हथियार से गोली मारी गई थी। जिससे गोली नहीं, गोलियों की धुंआधार बारिश होती है। पूरा छलनी होने के बाद भी, गोली चलाने वाले से अधिक उसके जीवित रहने के लिए मनसे प्रार्थना करने वाले अधिक ताकतवर हैं, जिससे रावण पूर्व परिचित है।  भ्रष्‍टाचार को संतुष्टि नहीं हुई, उसने फिर जानना चाहा कि देश भर में मेरे खिलाफ, मुझे तहस नहस करने, जड़ से मिटाने-भगाने के लिए रोष व्‍याप्‍त है, जिसकी बानगी रोजाना हो रहे मशाल जुलूसों, प्रदर्शनों में देखी जा सकती है। अपना ऐसा विरोध मैंने अपने जीवनकाल में पहली बार देखा है। तुम डरो मत वत्‍स, रावण ने जब जोर देकर पूरे विश्‍वास से कहा तो भ्रष्‍टाचार को विश्‍वास करना ही पड़ा।

मुझे ही देख लो। मैं मारा गया पर मरा नहीं। पुतला बनकर हर वर्ष जिंदा हो जाता हूं। मेरे पुतले की लंबाई चौड़ाई हर साल बढ़ जाती है। मेरे नाम पर उत्‍सव मनाए जाते हैं। आज बाजार में मेरा सक्रिय योगदान है। तुम नहीं मर सकते। अन्‍ना ने चाहे कितना बड़ा जीवंत समारोह कर लिया। पर तुम नहीं मरोगे। तुम्‍हारे भाग्‍य में पुतला बनना भी नहीं लिखा है। जब तक देश में एक भी नेता है, जब तक देश में लोकतंत्र है, संसद है, तुम्‍हें तनिक भी चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

न तुम्‍हें मारा जा सकता है और न ही तुम्‍हारा पुतला ही जलाया जा सकता है। सबके मन में, जेब में तुम्‍हारा ही वास है। फिर काहे का उपवास है। व्रत करने की जो कहते हैं, वे असल में तुम्‍हें बरतने (व्रत यानी बरत) की चाहत मन में रखते हैं और उसमें सफलता प्राप्‍त करते हैं। चाहे उपवास हो, अनशन हो – इन सबसे तुम्‍हारा कद बढ़ ही रहा है। रावण के पुतले के इन वचनों से भ्रष्‍टाचार फिर से निडर था, उसके हौसले बुलंद हो चुके थे। उसके चेहरे पर नेताओं से अधिक धूर्तता, ढिठाई अपनी निर्लज्‍जता में चमक उठी थी।

भ्रष्‍टाचार मरा नहीं था, मौन हो चुका था। उसके आंखों के सामने रावण के पुतले का दहन किया जा रहा था, पर पुतले के भीतर से बमों की आवाज में रूप में गूंजने वाला अट्टाहस जारी था। वैसे भी जिस देश में रावण के पुतले को हर साल जलाने की जरूरत पड़ती रहेगी, उस देश में भ्रष्‍टाचार पूरी तरह सुरक्षित है, यह भ्रष्‍टाचार की समझ में अच्‍छी तरह आ चुका है।

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