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शेयर बाजार बेपेंदी की लुटिया है

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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शेयर बाजार एक लोटा है। लोटा वही जो लुढ़क लुढ़क जाए। ऐसा लगता है इसकी पेंदी अमेरिका है। पेंदी हटी लुटिया डूबी। डूबने से पहले लुढ़केगी, लुढ़केगी नहीं तो डूबेगी भी नहीं, इसलिए लुटिया के डूबने के लिए लुढ़कना एक अनिवार्य शर्त है। लोटा वही जिसका पेंदा मजबूत हो। बिना पेंदे के लोटे को लुटिया ही कहा जाता है। बेपेंदी का तो बैंगन होता है। बैंगन लोटा नहीं होता, फिर भी थाली में बैठ जाए तो बैठ नहीं पाता है। इधर उधर हिलता हिलहिलाता है। लुटिया लूटती भी है फिर लुढ़कती भी है। लुटिया लुढ़कती है और लोग लुटते हैं।

सेंसेक्‍स एक लोटा था। पर अब लुटिया हो गया है। लुढ़कने से कुछ न कुछ तो बाहर गिर ही जाता है। सदा हरा भरा, भरा भरा नहीं रहता है लोटा। इसकी हरकतें देखकर बिल्‍ली बंदर की पुरानी कथा बंदरबांट वाली याद हो आई, जिसमें बंदर ने पूरी रोटी खाई है। सेंसेक्‍स में भी यही हो रहा है। पर इस नई लोटा कथा में न तराजू है, न बिल्‍ली है, न बंदर है पर जब बंदरबांट हो रही है तो मानना पड़ेगा कि मौजूद होते हुए भी नहीं दिखलाई पड़ रहे हैं ये सब। बंदरबांट सिर्फ सेंसेक्‍स में ही नहीं, सेक्‍स में भी चलती है क्‍योंकि होती है। जितने फर्जी बिल बनते हैं उनमें बांट होती है, उन्‍हें बांटने वाले उन बिलों को बनाने-देने वाले होते हैं। मुझे भी पिछले दिनों एक त‍थाकथित फर्जी झोला छाप होम्‍योपैथ डॉक्‍टर ने ऐसा ही फर्जी बिल थमाया था। कंप्‍यूटर पर छाप कर, मोहर लगाकर टिका दिया। सरकार को भी चूना और सरकार की आम जनता को लोकल दवाईयां बेच बेचकर चूना, बेचने के लिए मदद भी नामी ग्रामी अखबारों और टीवी चैनलों को विज्ञापन बेचने के नाम पर खरीदकर।

शेयर बाजारों में खूब सारे लोटे और लुटियाएं हैं जो कन्‍याओं की तरह लूट रही हैं आम निवेशक को, लुढ़क लुढ़क कर लूट रही हैं। पर जैसे फूटता है घड़ा, इस बार लोटा फूटा है अमेरिका का। घड़ा तो मिट्टी का होता है इसलिए रोज फूटता है, फूट भी रहा है पर लोटा भी फूटेगा यह न किसी ने सोचा क्‍योंकि लोटा धातु का बना होता है। इसलिए कयास यही लगते हैं कि वो लुढ़केगा तो जरूर, पर फूटेगा नहीं। लेकिन इस बार तो लोटा भी फूट गया है, पर अमेरिका का कहना है कि टूटा फूटा नहीं है, पिचका कह सकते हो, पर हम मानेंगे नहीं कि हम पिचके भी हैं। अजीब गरूर है। अमेरिका अपनी इस खामोख्‍याली के लिए मजबूर है। वैसे झंडे हम अपनी मजबूजियत के फहरा रहे हैं, बहाना जो मिल गया है। अमेरिका को अंगूठा दिखाने का, कभी ऊंगली तक न उठा पाए, फिर अंगूठा दिखाने का अवसर कैसे छोड़ सकते हैं।

घड़ों का निर्माण जितनी तेजी से होता है और वे सस्‍ते मिलते हैं, ऐसा लोटों के मामले में नहीं है। लोटा बनाना, मिट्टटी को गूंथना नहीं है। वहां पर जिस धातु का लोटा बनाना है उस धातु को गलाना – फिर उसके लिए बनाई गई डाई (सांचे) में उसको ढालना आवश्‍यक प्रक्रिया है। पर क्‍या अमेरिका ने लोटे का निर्माण करते समय इतनी बारीकियों पर गौर किया होगा ?

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