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हरिबोल हथकड़ी खोल – आसाराम

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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असली बापू से नकली बापू की मुंहजोरी

महात्‍मा गांधी से आसाराम का रूबरू होना

असली बापू से नकली बापू की मुंहजोरी

नकली : मैं असली बापू अपनी मेहनत से बना हूं।

बापू : मेहनत या कुकृत्‍य।

नकली : कुकृत्‍य में अधिक श्रम करना पड़ता है। शर्म को त्‍यागना पड़ता है।

बापू : फिर खुद को असली कहने की धूर्तता।

नकली : मैं ही नहीं मानूंगा तो सामने वाले कैसे मानेंगे। मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। तू हार गया बापू।

बापू : आश्रमों पर तो तेरे गाज गिर रही है।

नकली : तुझसे तो धरती ही छीन ली गई। गोली मारकर तुझे यहां से ऑलविदा कर दिया गया।

बापू : छीन ली गई।

नकली : गोली मारकर मानना छीनना ही होता है।

बापू : और इज्‍जत का बाजा बजना।

नकली : उस बाजे को मैं बंद कर दूंगा। इतना मुझे विश्‍वास है।

बापू : और करेंसी नोटों पर मेरा चित्र का छपना, मेरे असली होने की पहचान है।

नकली : तू तो नोटों पर छप रहा है और गड्डियों में छिप रहा है। मैं घरों में मंदिरों में जीते जी घुस कर अपनी पूजा करवा रहा हूं।

बापू : मैंने सत्‍य के प्रयोग किए हैं।

नकली : मेरे असत्‍य के प्रयोग चालू हैं और मेरे जीते जी चालू ही रहेंगे।

बापू : मैंने कभी सामान नहीं बेचा। वैसे तू कब तक खैर मनाएगा।

नकली : तेरे बस का ही नहीं था। मेरी चल रही है इसलिए चला रहा हूं। जो चलती में न चलाए वह वेबकूफ और जो न चलती में चलाए वह भी। मेरी छोड़ अपनी खैरियत की चिंता कर और दीवार पर चिपका रह।

बापू : मेरे सद्विचार ही मेरा सामान था। उसी से सबका उद्धार हुआ है। उसी से आजादी मिली है।

नकली : तेरी उसी दी गई आजादी का उपयोग कर रहा हूं मैं।

बापू : उपयोग या दुरुपयोग।

नकली : तू जो चाहे समझ।

बापू : यही सच है।

नकली :  क्‍या फर्क पड़ता है।

बापू : फर्क कैसे नहीं पड़ता

नकली :  महिलाएं पागलपन की हद तक मेरी दीवानी हैं। यह मेरा प्रताप है।

बापू : यह प्रताप नहीं, निरर्थक प्रलाप है।

नकली : तेरी सुनता कौन है। आजकल तो पैसे वालों का बोलवाला है।

बापू : पैसे पर इतना अहंकार।

नकली : अहंकार के साथ नए नए मॉडल की खूब सारी कार मेरे पास हैं।

बापू : पैसा सब लूट का है।

नकली : लूट का सही, इससे क्‍या फर्क पड़ता है। माल तो असली मिलता है।

नकली : हरिबोल।

बापू :  हरिबोल या हथकड़ी बोल।

नकली : हरिबोल हथकड़ी खोल, पर तेरी सुनता कौन है।

बापू : मैं कहूंगा ही नहीं। हर जगह मेरा चित्र ही फबता है।

नकली : नोटों पर छपने और दीवार पर सजने से इतनी खुशी।

बापू : यह सच्‍ची खुशी है।

नकली : मेरी खुशी क्‍या ड्रामेबाजी है। ड्रम भर भर कर धर्म के नाम पर लूट खसोट रहा हूं। कोई और लूटे तो मैं ही क्‍यों न लूट लूं। लुटने वाले ने तो कहीं न कहीं लुटना ही है।

बापू : तू तो असत्‍य के मार्ग पर चल रहा है।

नकली : यही मार्ग मुझे फल रहा है।

बापू : धर्म को बना लिया है तूने धंधा। मुंह से बोलता है सदा ही गंदा। नीयत तेरी साफ नहीं है।

नकली: अपनी करतूतें भूल गया बापू। सत्‍य के प्रयोगों के नाम पर तूने स्‍वयं अपने यौनसब्र के इम्‍तहान लिए हैं।

बापू : और तू दुष्‍कर्मों से अपनी लंबी आयु के रोग की चाह से पीडि़त है।

नकली : जीवन में यही सच है, बाकी सब झूठ है।

बापू : धिक्‍कार है, तेरे भक्‍त कर रहे तेरा तिरस्‍कार हैं।

नकली : नकली बापू के असली भक्‍त तो मर जाएंगे पर ऐसा करने की सोचेंगे भी नहीं।

बापू : यदि यही विजय है तेरी तो तुझ पर थू है। लेकिन मैं बतला दूं कि तेरे दिन पूरे हो गए हैं। कुकर्मियों की आयु कभी लंबी नहीं होती। तू भी भस्‍मासुर सरीखा हो गया है।

बापू : मेरे सामने तो तू भी कुछ नहीं क्‍योंकि तू मानता खुद को भगवान है। तेरे भीतर बसा शैतान बाहर भगवान होने का मुगालता देता है।

और हथकड़ी की झनझनाहट सुनाई दी और मेरे मुंह से निकला ‘हरिबोल’ या ‘हथकड़ी बोल’। पत्‍नी की आवाज आई कि आज आपको बतौर जेलर ज्‍वाइन करना है और सपने में ‘‍हथकड़ी’ का जाप कर रहे हो। नींद खुल चुकी थी, सारी बातचीत कानों में घूम गई। 8 बजे गए थे और मुझे 9 बजे पहुंचना था। सुबह का स्‍वप्‍न।जरूर सच होगा। जेल में पहुंचने पर कुर्सी के पीछे दीवार पर महात्‍मा गांधी का चित्र पहले दिखलाई दिया, मेरे हाथ स्‍वयं उनके सम्‍मान में जुड़ गए। मुड़कर देखा तो आसाराम को अदालत ले जाने के लिए मेरे सामने लाया गया है। मेरे चेहरे पर सख्‍ती आ गई।

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