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हर फूल पे भंवरा डोले

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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बेशर्म वेलेंटाइन डे फिर आ धमका है, हगिंग और किसिंग करते हुए। भारतीय वसंत रूपी प्‍यार के पावन संत को पकाने के लिए यह फुल मोड में है। गुलाब को तेजाबित-ग्रहण लग गया है। इससे वसंत दिवस के मौके पर संत बने रहना ही श्रेयस्‍कर जान पड़ता है। उधर आसमान में चौकस इंद्रदेव धरती पर ओले बरसाने की प्‍लानिंग कर रहे हैं। ऐसा करके वे न जाने किनके सिर तोड़ने के मंसूबे बना रहे हैं। ऐसे मौसम में संतों में कुवृत्ति जाग उठी है।
पब्लिक के लिए अच्‍छा वेलेंटाइन वह होता है जिस दिन उस पर कोई कर न लगे, उसके कर खुले रहें, खुले में रहें। 362 करोड़ की इटालियन वासंती छटा हेलीकॉप्‍टर सौदे के खाते में खाते -खाते बदहजमी कर गई है। इस बार सिर्फ मोदी को ही गोदी में बैठाकर वेलेंटाइन मनाने की आजादी मिलनी चाहिए – क्‍या किसी को इस बात पर भी एतराज़ है ? नैनों में सपना और सपने में नहीं, सच में वेलेंटाइन की खुमारी जोरों से मस्‍ती भर रही है। नेताओं का वसंत वोटों का, बयानों का वसंत मीडिया के लिए, क्‍या अब वेलेंटाइन पर इन का ही एकाधिकार कायम रहेगा ?
गैजेट्स का वसंत अब साल भर तारी रहता है, हाथ चाहे हल्‍के हों पर गैजेट हाथ में भारी रहना चाहिए। जो सामने वाले के दिल पर आरी की तरह दौड़ता रहे। मोदी का पीएम बनना वेलेंटाइन डे का बूमरैंग है उनके खुद के लिए और उनके हिमायतियों के लिए । वेलेंटाइन हो या वसंत, इस पर्व पर बरसात जरूर होनी चाहिए, चाहे पानी की न हो, प्‍यार की हो ! प्‍यार की बरसात पर रोक लगाना गैर-कानूनी होना चाहिए। सरकार अपनी शक्ति का प्रदर्शन पानी की बारिश पर रोक लगाकर करे, न कि प्‍यार की बरसात में अवरोध पैदा करने में खुद से ही नूरा-कुश्‍ती लड़ने में मशगूल रहे।
जो संत नगरिया में रहे वह असली संत, उसी के घर आ सके वासंती वसंत। जो वेलेंटाइन मनाए वह महंत। आज लेखक भी महंत हो रहे हैं, फिर संपादक काहे न दिखलाएं महंतगिरी। प्रकाशकों को भी भा रही है ऐसी ही दादागिरी। मैंने अपने वसंत का आधा दिन रचना और आधा दिवस कल्‍पना के साथ वेलेंटाइन जैसी रंगरेलियां मनाते हुए मनाने का निर्णय ले लिया है। वसंत मन में बसता है, वेलेंटाइन तन में गमकता है और लेखकीय रचना तथा कल्‍पना के यथार्थ में जोरों से चकाचौंध करता है। जैसे लेखक दर्जी की तरह रचनाओं में कल्‍पना को सच्‍चाई का पैबंद लगाकर सिलता है।
वेलेंटाइन डे मनाने के लिए सभी लालायित रहते हैं। आखिर साल में एक बार ही आता है। बचपन के शुरूआती बरस में तो इसे मना नहीं सकते। मना तो बुढ़ापे और अधेड़ावस्‍था में भी नहीं सकते पर इस दौर में इतने अनुभवी हो जाते हैं कि दूसरों को मना कर सकते हैं। यूं तो इसके खिलाफ खूब हल्‍ला मचाया जाता है पर मनाने वाले लिहाफ ओढ़कर मना लेते हैं और वेलेंटाइन मान भी जाता है। यही वेलेंटाइन की अदा सबको भाती-लुभाती है।
कितनी बड़ी त्रासदी है कि आप रेप तो कर सकते हैं, फांसी भी दे सकते हैं पर वसंत को वेलेंटाइन कहकर नहीं बुला सकते। इस अवसर को खुलकर सेलीब्रेट नहीं कर सकते। सिर्फ सेलीब्रिटीज़ इसे मनाने के डर से सदा महफूज़ रहते हैं। वे खूब खुलकर मनाते हैं, परदे पर तो उन्‍हें कोई रोक नहीं सकता और सचमुच में वे रुकते नहीं हैं। वेलेंटाइन मनाने की भूमिका और उपयोगिता पर इनामी प्रतियोगिताओं को इस उद्देश्‍य के साथ आयोजित किया जा रहा है ताकि सब इनाम के झांसे में आएं और सरकार को इनके खिलाफ बेईमानी न करनी पड़े।
बतौर इनाम तो कुछ लाख करोड़ खर्च किए जा सकते हैं पर वहां से जीत लें और लिहाफ में एक दूसरे को घसीट लाने पर खर्च करें, खूब कसमसाएं। चूमने और चाटने को के स्‍वाद को खूबसूरत यादों में भर कर वेलेंटाइन हो जाएं, फिर वसंत से संत हो जाएं। गागर को यूं ही छलकाएं, मस्‍ती में गुनगुनाएं, होली से पहले आने वाली फगुनाहट में मन के रंगों के साथ बिखर-निखर जाएं! वसंत हो, फागुन हो या हो वेलेंटाइन डे –नाइन लोग मिलकर वाइन के नशे में धुत्त होकर मनाएं।

लो आया प्‍यार का मौसम, गुले गुलज़ार का मौसम

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