Menu
blogid : 1004 postid : 293

अन्‍ना का मिशन इलेक्‍शन

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
  • 101 Posts
  • 218 Comments

राजनीति गन्‍ना है, गंडेरी नहीं, अन्‍ना जी गौर कीजिएगा कि गंडेरी सीधे दांतों में कुचलकर उसके रस का आनंद लिया जाता है। जबकि गन्‍ने के सख्‍त छिलके को पहले छीलना पड़ता है। गन्‍ने को यूं ही उठाकर डण्‍डे के माफिक भी मारा जा सकता है। इसमें खाने वाले को (चबाने वाले को नहीं) चोट लगेगी, मारने में गन्‍ना टूटने पर भी उपयोगिता कम नहीं होती। उसी तरह राजनीति में संभावनाएं सदा जिंदा रहती हैं।

आप चाहे पक्ष के पक्षी हों या विपक्ष के पशु, राजनीति की नीतियां सबका भला करती हैं। लाभ लेने का सबसे सरल तरीका भ्रष्‍टाचार, जिसे देश में रोजाना त्‍यौहार की तरह मनाया जाता है। नेताओं को ऐसे मौके तोहफे में प्रदान किए जाते हैं, जिससे वे घपले और घोटालों को अंजाम देते हैं।

अन्‍ना पहले भ्रष्‍टाचार के पीछे बिना भूख प्‍यास की चिंता किए दौड़े जा रहे थे, उन्‍हें घोड़े की तरह राजनीति के पीछे पेट भर के दौड़ने की चुनौती दी गई है। अन्‍ना को बोध हुआ कि जिसका खात्‍मा करना हो, उसे नज़दीक से जानना बहुत जरूरी होता है। रावण को जानने-मारने के लिए राम ने विभीषण का सहारा लिया।

अन्‍ना पर फूंका गया मंतर मिशन इलेक्‍शन है। इस मंतर के प्रभाव से कई मंत्री बनेंगे, कितने ही संतरियों के दिन फिरेंगे। गन्‍ने के मजबूत छिलके छीलने के बाद ही, संतरों के मुलायम छिलकों को छीलने के अवसर मिलते हैं। बादाम के दाम यूं ही नहीं बढ़ते हैं। छिलके वाले साबुत बादाम के दाम सबसे कम, छिलके रहित बादाम के दाम अधिक और बादामगिरी के दाम आसमान छूते हैं। राजनीति बादामगिरी है। मालूम नहीं क्‍यों फिल्‍म ‘रोटी’ का यह लोकप्रिय गीत राजनीति में ऐसे गठबंधनों की पोल खोलता दिखाई देता है। गीत के बोल हैं – ‘ये जो पब्लिक है सब जानती है, भीतर क्‍या है बाहर क्‍या है, यह सब पहचानती है’। अगर पब्लिक सब जानती होती तो नेताओं की बादामगिरी की अहमियत पर सवाल न उठाती ? पाठकों, आप तो बादामगिरी के सफर को पहचान चुके हैं न।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh