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‘के.पी. सक्‍सेना व्‍यंग्‍य लेखन और पाठन महाविद्यालय’ आरंभ किया जाए # अविनाश वाचस्‍पति

अविनाश वाचस्‍पति
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वनस्‍पति विज्ञान से जन व्यंग्‍य तक का सफलतम सफर भारतीय रेल सेवा में तीन दशक तक यात्रा करके कालिका प्रसाद सक्‍सेना ने जिया और उनको सक्‍सेस ने कभी न नहीं की। इसमें कीर्तिमान तब स्‍थापित हुआ जब उन्‍होंने भारतीय रेल सेवा की चाकरी से स्‍वैच्छिक सेवानिवृति ले ली और उसके बाद अपना पूरा सक्रिय जीवन कैंसर जैसी भयावह बीमारी से गल‍बहियां करते हुए व्‍यंग्‍य लेखन को समर्पित कर दिया। लेखन के प्रति इस समर्पण में धन प्रमुख नहीं रहा अपितु मन समर्पित रहा। मन जो एक सच्‍चे रचनाकार का धन और धर्म दोनों है। दोनों एक एकमेव होकर साकार हो उठते हैं, तब क्रांति का सूत्रपात निश्चित ही जानिए।   13 अप्रैल 1933 को बरेली में जन्‍मे भविष्‍य के सफल व्‍यंग्‍यकार के. पी. वनस्‍पति विज्ञान विषयक 14 पुस्‍तकें और व्‍यंग्‍य की 19 पुस्‍तकें। इसके अतिरिक्‍त व्‍यंग्‍यकार गोपाल चतुर्वेदी ने जानकारी दी है कि उन्‍होंने बाल हास्‍य नाटकों का सृजन करके भी वाह-वाही बटोरी थी, जिनमें प्रमुख चोंचू नवाब, दस पैसे के तानसेन, फकनूस गोज टू स्‍कूल और अपने अपने छक्‍के बेहद मशहूर हैं। उनके खाते में टीवी पर प्रसारित हुए पहले सोप ओपेरा ‘बीवी नातियों वाली’ का मन को मोहने वाला लेखन, लगान, स्‍वदेश, हलचल और जोधा अकबर फीचर फिल्‍म के संवादों ने खूब धूम मचाई।      के.पी. के नाम से प्रख्‍यात कालिका प्रसाद सक्‍सेना को वर्ष 2000 में उनके समग्र लेखन के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। उनके खाते में काका हाथरसी, चकल्‍लस सम्‍मान, बलराज साहनी और नरगिस दत्‍त सम्‍मान, हरियाणा साहित्‍य अकादमी सम्‍मान, थाईलैंड का टीवी सम्‍मान भी शामिल हैं।     एक रचनाकार का गुजरना उनके पाठकों और प्रशंसकों को नि:संदेह दुखी कर देता है। रचनाकार व्‍यंग्‍य लेखक हो तो यह अभाव इसलिए अधिक घेरता है क्‍योंकि एक तो व्‍यंग्‍य को स्‍वतंत्र विधा मानने वालों की कमी है, दूसरा जीवन मूल्‍यों को आत्‍मसात करते हुए इसे लिखने वालों माहिर रचनाकारों की। उस पर व्‍यंग्‍य लेखन और पाठन को पुख्‍ता जमीन मुहैया करवाने वालों में शरद जोशी के साथ उनका योगदान काबिले तारीफ है।     संख्‍या में कम होते हुए भी व्‍यंग्‍य अपनी विविधता के जरिए जादुई असर छोड़ता है। इससे न लेखक, न इनके पाठक और न ही अन्‍य पाठकवर्ग को इंकार होगा। पं. गोपाल प्रसाद व्‍यास, श्री शरद जोशी, श्रीलाल शुक्‍ल सरीखे लेखकों ने व्‍यंग्‍य स्‍तंभ लेखन को दैनिक समाचार पत्रों में निरंतरता के साथ नए तेवर के साथ एक विशिष्‍ट पहचान दी है। व्‍यंग्‍य के जलवे निखारने में के. पी. सक्‍सेना के अप्रतिम योगदान उल्‍लेखनीय है। के. पी. अनेक दशक से अपनी रेलवे सेवा के साथ व्‍यंग्‍य लेखन के नेक क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निबाहते रहे हैं। वह रेलवे से जरूर रिटायर हो गए थे पर व्‍यंग्‍य लेखन का उनका काल अब भी युवा ही है। उनके व्‍यंग्‍यों को उनके पाठक और व्‍यंग्‍य लेखक चटखारे लेकर पढ़ते हैं, उनके तंज की तीखी मार महसूस करते हैं और सी … सी … करते हुए भी उनकी आगामी रचना का इंतजार करते रहते हैं।    एक आम का पेड़ हो या कड़वे करेले की पौध – जिस प्रकार इनकी विविध किस्‍में पाई जाती हैं। जिनमें अलग अलग वैरायटियों के फल और फूल उगते हैं, इनमें से कुछ स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपयोगी होते हैं और कुछ सुगंध बिखेरते हैं। उसी प्रकार व्‍यंग्‍य लेखन है और बल्कि साहित्‍य की प्रत्‍येक विधा में ऐसा ही है। प्रकृति का यह सर्वमान्‍य नियम लेखन में भी लागू होता है, इससे न तो मुझे इंकार है और न ही साहित्‍य के सुधी पाठकों को ही होगा। व्‍यंग्‍यकार की सर्वमान्‍य पहचान है कि वह मामूली सी बात को लफ्ज़ों के जादुई असर से ऐसा लवरेज करता है कि पढ़ने वाले के मानस में मंथन की प्रक्रिया हिलोंरें मारने लगती है। व्‍यंग्‍यकारों व पाठकों के मध्‍य के.पी. के नाम से प्रख्‍यात इनका सदाबहार लेखन व्‍यंग्‍यकारिता की नायाब मिसाल है। इनके व्‍यंग्‍य सामयिकता के साथ सनातन सच्‍चाइयों का अद्भुत मिश्रण हैं, जिन्‍हें जब चाहे पढ़कर मन को आनंद से सरोबार किया जा सकता है। के. पी. के व्‍यंग्‍य लेखन में रेलों के सफर और उन पर आधारित अनुभव गहरी और तीखी सामाजिक विसंगतियों और कुरीतियों का कच्‍चा चिट्ठा खोलते हैं। इंटरनेट का प्रादुर्भाव अभी दशक भर पहले हुआ है पर चुनिंदा व्‍यंग्‍य लेखकों ने ही व्‍यंग्‍य लेखन जगत में जो तहलका मचा रखा था, उसका कोई सानी नहीं है। अपनी अनूठी शैली, शिल्‍प और कटोक्तियों के लिए पहचाने जाने वाले के. पी. सक्‍सेना जैसे व्‍यंग्‍यकार अपनी रचनाओं के जरिए सदैव के लिए अमर हो जाते हैं। व्‍यंग्‍य को विधा के रूप में मान्‍यता अब मिलनी शुरू हुई है, जबकि व्‍यंग्‍य साहित्‍य की प्रत्‍येक विधा में मौजूद रहता है। कहानी, उपन्‍यास, नाटक, कविता, एकांकी यानी साहित्‍य को पानी मानें तो व्‍यंग्‍य उसमें दूध सरीखा है। जो इन रचनाओं को अमृत बनाता है। अमृत वही जो बुराइयों का नाश करे और अच्‍छाइयों को विस्‍तार दे। लेखन में बसी उपयोगिता से सबको रूबरू कराता चले। यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें मिलावट भी समाजोपयोगी है। यही रचनाकार और उनकी रचनाओं की सफलता है। एक व्‍यंग्‍यकार का जाना, उनके पाठकों का इतना निजी नुकसान होता है, मानो उनके परिवार के दुख-सुख का कोई साथी चला गया हो। पर ऐसे में उनकी रचनाएं बतौर स्‍मृति उनके जाने की भरपाई करती हैं। समाज को यह भी लगता है कि इनकी जगह किसी अन्‍य लेखक की रचनाएं पढ़ कर उनके जाने की कमी को भुलाया जा सकता है। जबकि ऐसा बिल्‍कुल नहीं है। किसी रचनाकार के खाली स्‍थान की पूर्ति किसी भी तरह से संभव नहीं है। के. पी. जिस हुनर के धनी रहे, वह रेलों की लोकप्रियता के मानिंद रहा है। वह पान की दुकान और रेलवे स्‍टेशन की चौपाल (स्‍टेशन) से जुड़े रहे और भावों को शब्‍दों, मुहावरों, देसी प्रयोगों के साथ लखनवी अंदाज में बेहद खूबसूरती से अपने धारदार व्‍यंग्‍यों को पिरोकर माला सा कुशलतापूर्वक गूंथने के अपने अंदाज में विशिष्‍ट बने रहे। जिससे उनकी व्‍यंग्‍य रचनाओं में विसंगतियों को उनके पैनेपन के साथ उजागर करने में इस कदर सफल रहे कि उनके व्‍यंग्‍य आज भी समस्‍याओं के आलोक में सामयिक बने हुए हैं। यही वह तत्‍व है जो रचना में सकारात्‍मक असर तय करते हुए लेखन को विशिष्‍टता प्रदान करता है। अट्टहास व्‍यंग्‍य की मासिक पत्रिका के संपादक अनूप श्रीवास्‍तव के अनुसार के.पी. सक्‍सेना उनके प्रत्‍येक कार्यक्रम में शिरकत करते रहे हैं।  जब तक कोई विशेष विवशता न रही हो, उन्‍होंने इन कार्यक्रमों में गारंटिड भागीदारी की है। भारतीय रेलें लोकप्रियता के जिस मुकाम पर हैं उनसे कम लोकप्रिय नहीं हैं के.पी. और उनके रचे गए व्‍यंग्‍य। आदरणीय के.पी. सक्‍सेना जी से मेरी दो-तीन मुलाकातें राजधानी दिल्‍ली में सांस्‍कृतिक समारोहों में हुई हैं पर इन मुलाकातों में मैं जान गया कि एक सफल रचनाकार होने के लिए आम आदमी बने रहना और उसकी अनुभूतियों से जुड़े रहना पहली शर्त है और के. पी. इस नियम का ताजिंदगी पालन करते रहे। उनके व्‍यंग्‍य की पाठन शैली का मैं मुरीद रहा हूं। यह वह आवश्‍यक तत्‍व है जो प्रत्‍येक पाठक एवं श्रोता अपने मन में संजो लेता है और पूरी ईमानदारी तथा इंसानियत के जीवन मूल्‍यों के साथ जुड़े रहकर लेखन में रत् रहता है। इनकी मौजूदगी लेखक की सफलता को सुनिश्चित करती है। 13 तारीख को आए के पी इस संख्‍या को उलटकर 31 को अपनी देह और ईश्‍वर की धरा को यहीं छोड़कर लंबे सफर पर कूच कर गए। वह अपने व्‍यंग्‍य और लेखन को विरासत की भांति हमें सौंप गए हैं, जिन्‍हें संभालने और प्रचारित-प्रसारित करने की जिम्‍मेदारी सरकार और हम सबकी है। मेरा सुझाव है कि ‘के.पी. सक्‍सेना व्‍यंग्‍य लेखन और पाठन महाविद्यालय’ आरंभ किया जाना चाहिए और वही सच्‍ची और नेक श्रद्धासुमन के.पी. के प्रति हो सकते हैं।

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