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फर्स्‍ट अप्रैल के दिन मूर्ख बनने से बचने का सिर्फ एक कारगर उपाय

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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मूर्खों को तलाशने की जरूरत नहीं होती। बिना ढ़ूंढे फर्स्‍ट अप्रैल के दिन हिन्‍दुस्‍तान में अंग्रेजी झाड़ते हुए मिल जाते हैं परंतु पूरी तरह नहीं झाड़ पाते और अंग्रेजी रूपी गंदगी उनकी जीभ पर सरस्‍वती बनकर डोलती रहती है जिसमें वे स्‍वाद लेते रहते हैं। मूर्ख दिवस इस मायने में सर्वोत्‍तम है कि आपको जिस की तलाश भी नहीं होती, आप खुद ही कई कई बार वह बन जाते हैं। वैसे बनते तो आप रोजाना हैं परंतु इस दिन आपके ऊपर विशेष फोकस बना रहता है। फोकस से आप मूर्ख दिवस को फोक उत्‍सव मत समझ लीजिएगा। हिंदुस्‍तान का फोक उत्‍सव तो विदूषकी है, बहुरूपियापन है –इस सबको करने वाले कलाकार सम्‍मान पाते हैं, अकादमियों के सर्वोच्‍च हथियाते हैं। लेकिन आजकल कतिपय घटनाओं के कारण इनके अर्थ भी अनर्थ कर दिए गए हैं। जबकि मूर्ख दिवस के दिन अपमान को सम्‍मान समझाने में सफलता हासिल कर ली जाती है। अब यह तय आपको करना है कि जो मूर्ख बना रहा है या जो मूर्ख बन रहा है अथवा मूर्ख बनते देख रहा है और यह भी हो सकता है कि इस त‍थाकथित मूर्खता में मजा लूट रहा है। अब तो यह और उलझन भरी बात हो गई कि मूर्ख का चयन कैसे किया जाए, लुटेरे को मूर्ख नहीं कहा जा सकता और जो जानबूझकर मूर्ख बन रहा है, मूर्ख वह भी नहीं है, न वह मूर्ख है जो मूर्ख बना रहा है, मूर्ख बनाना मूर्ख के लिए तो कतई संभव नहीं है। मूर्ख बनते देखकर अपना समय कोई मूर्ख खराब नहीं करेगा, उतनी देर फेसबुक के सुंदर लावण्‍यमयी चेहरों पर ताक झांक करके टाइमपास करेगा, ज्‍यादा आनंद लेना चाहेगा तो कमेंट भी करेगा और आनंद बांटना चाहेगा तो लाइक का बटन दबाकर एक हजार एक सौ की फर्राटा गति से दौड़ेगा। आप भागकर भी उसे पकड़ने में सफल नहीं हो पाएंगे।

जो अंग्रेजीदां होते हैं, वह फूल का महत्‍व ही नहीं जानते हैं इसलिए फूल कह कह कर डे सेलीब्रेट करते रहते हैं। हिंदी वाले खुद को फूल समझ कर आनंदित होते हैं। उधर का फूल, इधर का फूल – सबने ओढ़ रखा है भाषा का दुकूल, सब दूसरे के दुख में प्रसन्‍न। अब इस शाल अथवा कंबल के बल जो निकालने में सफल रहे। वह फूल खाएगा नहीं, सिर्फ सूंघकर ही खुश हो लेगा। फूल कहकर सूंघने से जिसे फल का स्‍वाद आता है, अब उसे फूल डे का प्रॉडक्‍ट या शिकार माना जाए अथवा सचमुच का मूर्ख, इस पर शोध की बेहद जरूरत महसूसी जा रही है। इस दिन के इस महत्‍वपूर्ण दिवस की उपादेयता साबित करने के लिए शोध करना बहुत जरूरी है कि खुद को अक्‍लधारी समझने वाले, अक्‍लमंदों की भरी पूरी जमात में, शोध करके,निष्‍कर्ष पेश करके सर्वोत्‍तमता का तमगा हासिल करें। सुना है इस बार से मूर्ख दिवस पर डॉक्‍टरेट की मानद उपाधि स्‍थापित करी जा रही है। जिसमें व्‍यावहारिकता लाने के लिए उपाधि के साथ 21 लाख रुपये की राशि का चैक प्रदान किया जाएगा लेकिन इससे किसी का नुकसान न हो, इसलिए चैक की सिर्फ बड़ी अनुकृति ही सम्‍मानित करते समय प्रदान की जाएगी और उसे डॉक्‍टरेट की उपाधि, शाल, कागज अथवा कपड़े के फूलों के हार की तरह स्‍मृति के बतौर सहेज कर रखना अनिवार्य होगा। अब बतलाइए क्‍या इससे साबित नहीं होता कि जिसे डॉक्‍टरेट की मानद उपाधि दी गई, वह सचमुच में इसके सर्वथा योग्‍य रहा।

मूर्ख बनने बनाने के लिए भारत में कतिपय विद्वानों के मन में जो योजना आकार ले रही है, लगे कलम उसका भी खुलासा करता चलूं। इस क्षेत्र में व्‍यवसायिक संभावनाओं को देखकर यूनी‍वर्सिटीज का गठन किया जा रहा है और इसकी स्‍वीकृति के लिए सरकार के पास प्रस्‍ताव विचाराधीन है। जिस दिन भी सरकार चालाकी दिखलाना चाहेगी, इसे स्‍वीकार करके, राजस्‍व पाने का एक रास्‍ता और खोल लेगी। इसमें अपनी अपनी गोटी फिट करने के लिए बेहद होशियार लोग सक्रिय हैं और उन्‍होंने कई आकार की गोटियां मंगवा ली हैं। जिस जगह जो गोटी फिट होगी, उसे वह कर लेंगे और बची गोटियां बाकियों में बांट देंगे जो कि सदा फ्री के जुगाड़ में रहते हैं, उनकी गोटी तो फिट बैठने से रही। बांटी गई सब गोटियां अनफिट की कोटि में से थीं और फिट गोटी तो फिट कर दी गई और उसे तो कोई देख ही नहीं पाया। अब भी जुगाड़ वाले इसमें जुगाड़ लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। विश्‍वस्‍त सूत्रों से मालूम चला है कि इस लेख को जिस जिसने पढ़ा है, वह व्‍यंग्‍यकार का शिकार हो गया है। आप तो इस जानकारी से सहमत नहीं है न ?

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