अविनाश वाचस्पति
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फोड़े तरह तरह के
जो देते हैं दर्द
वही कहलाते बेदर्द
बेदर्दी से फोड़े की
क्यूं लगता है डर
मार इनकी गहरी
नहीं कोई देहरी
दर्द नहीं देते तो
फोड़े क्यों कहलाते हैं
फुंसियां फूट कर बनती फोड़ा
फोड़े की फुंसी क्यों नहीं बनती
कुछ फूटते हैं इस कदर
बन जाते हैं नासूर
उनका सुर समझते हैं
रोकने वाले डॉक्टर
और
भोगने वाला मरीज
फोड़े और फुंसियों का सुर
या कहें सिर
होता है बेसुरा
लेकिन जो पीता है सुरा
उसे किसी ने नहीं धरा
न उसका है आसमान
जमीन पर भी नहीं गिरा
फोड़े फुंसी होते हैं भाई बहन
पति पत्नी
प्रेमी प्रमिका
मालिक नौकर
दुकानदार खरीददार
या ……..
इतना तो आप ही बतलायें
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