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बनने बनाने का सत्‍यमेव जयते

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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जो इच्‍छा की जाती है, वह पूरी होती नहीं है फिर भी कितने सारे तो पीएम बनने की कतार में टोकरियां और ट्रक भर-भर इच्‍छा लेकर खड़े हैं और आज उम्‍मीद से डबल राष्‍ट्रपति बनने के लिए तैयार हैं। वैसे इससे कम में समझौता करने वाले भी खूब सारे हैं। जिनका जीवन ध्‍येय सदा यह रहता है कि भागते भूत की लंगोटी भी न छोड़ी जाए जबकि इस रहस्‍य से कोई परिचित नहीं है कि भूत लंगोटी नहीं पहनता। लंगोटी जो पहनेगा उसकी पूंछ नहीं होगी। लंगोटी बांधने में पूंछ के होने से बहुत मुश्किल होती है। उस पर लंगोटी सुखाने के लिए लटकाओ तो वह भी उड़-गिर जाती है। भूत जो दिखाई ही नहीं दे रहा है वह लंगोटी पहनकर भी क्‍या छिपाएगा, छिपाने की कोशिश तो तब की जाए जब या तो कुछ हो अथवा दिख जाने का डर हो। जबकि कुछ लोग छिपाना बहुत कुछ चाहते हैं पर उन्‍हें लंगोटी भी मयस्‍सर नहीं होती और वह भूत भी नहीं होते हैं। इससे तो ऐसा लगता है कि सारी लंगोटियों पर भूतों का कब्‍जा हो गया है। कुछ दिखाने में ही यकीन रखते हैं। बिना दर्शन-प्रदर्शन के उनका नाश्‍ता, खाना और डिनर तक हजम नहीं होता है।भूत से अधिक इंसान को वर्तमान में जीना चाहिए। भविष्‍य के सपनों में भी काम भर ही खोना चाहिए। यह नहीं कि पूरे सपनों में ही गोता लगा गए। अतीत और भविष्‍य में डूबना अकर्मण्‍यता का कारक है। कर्मशील बने रहने के लिए वर्तमान ही सबसे बेहतर है। बहुत से लोगों का यह मानना है कि राष्‍ट्रपति बनने के लिए कोशिश करेंगे तो पार्षद बनने का नंबर तो हासिल कर ही लेंगे। इतनी अधिक बार्गेनिंग सफलता का सूचक नहीं, लालच का परिचायक है। लालच बुरी बला है फिर भी उसी से गला मिला रहे हैं। कुछ धुनी जीवन भर राष्‍ट्रपति बनने की कोशिशों में ही जीवन धुन बदल लेते हैं। बिना धुन के भी पीएम बना जा सकता है लेकिन उसके लिए जिस धुन की जरूरत होती है उसे बतलाने की जरूरत मैं महसूस नहीं कर रहा हूं। आप सबको इसका अहसास पहले से ही है।कुछ बनना नहीं चाहते लेकिन उन्‍हें बनाने वाले बिना बनाये नहीं छोड़ते और बार बार गरियाते रहते हैं कि कैसे नहीं बनोगे, हम तो बनाकर ही रहेंगे। हमने न जाने किन किनको बना दिया। जो बनना नहीं चाहते हैं, हम उन्‍हें बनाने में ही माहिर हैं। जो बनना चाहते हैं, उन्‍हें धकियाने में माहिर भी और कोई नहीं हम ही हैं। हम सर्वगुणसंपन्‍न हैं और सर्वबुराईसंपन्‍न भी हम ही हैं। अब भला अच्‍छाई और बुराई साथ साथ नहीं रहेंगी तो क्‍या देश विदेश जितनी दूरी पर रहेंगी जो एक से दूसरे को मिलने के लिए पासपोर्ट और वीजा की जरूरत ही बनी रहे। जब तक एक का दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता है, इसमें से किसी का भी भाव नहीं बढ़ता है। फिर भी हैरानी देखिए कि महंगाई नहीं रूकती है, उसका तो भाव खूब तेजी से चढ़ता है। आज महंगाई नंगाई की रफ्तार से बढ़ती जा रही है।

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