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बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हड़कंप निवृत्ति है

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हडकंप निवृत्ति है। बम जान लेता है पर उसकी मौजूदगी जनता जान नहीं पाती है। भूकंप नहीं जाना जाता, पर वो जान नहीं ले जाता। मकान भी नहीं गिराता। बशर्ते कि वो घनघोर रूप से क्रोधित न हो। क्रोधित होने पर वो ऐसा तांडव मचाता है, जितना सृष्टि पर मौजूद सभी बम एक साथ मिलकर भी नहीं मचा सकते हैं। कह सकते हैं कि बम नीयत है और भूकंप नियति है। बम पंप है, जिसे आतंकवादी हवा देते हैं और जनता के प्राण हवा हो जाते हैं। भूकंप प्रकृति का जंप है पर वो रैम्‍प नहीं है। जिसके पधारते ही सब सतर्क और सावधान हो जाते हैं। ऐसे निहारते हैं मानो दिखलाई दे रहा हो। जबकि आभास होता है, दिखती उसकी विनाशलीला ही है। भूकंप जोरदार है जबकि बम कमजोरों का हथियार है। भूकंप को बुलाया नहीं जाता और बम को ले जाकर सजाया जाता है। जिससे निरपराध अवश्‍य ही सजा पाते हैं। स्‍थल कोर्ट हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता, जरूरी नहीं है। पृथ्‍वी को शरीर मान लें तो बम उस पर फुंसी, फोड़े और नासूर हैं। भूकंप प्रकृति की गर्मी है जो पृथ्‍वी खुद ही हिल हिलाकर निष्‍कासित कर देती है।

सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट कितनी भी हाई हो या वाई फाई हो। पर बम की मार से नहीं बची रह सकती। ताजा मिसाल देखिए, मिसाइल की तरह घाव दे गई जो रिसते रहेंगे। जब अमेरिका के ट्विन टॉवर नहीं बचे, आतंक की मार से, बमों के प्रहार से, हवाई दुलार से, तो कच्‍चे बम की ललकार से हम ही कैसे बच जाते, इसलिए मर गए और घायल हो गए। बम चाहे कच्‍चा था, कच्‍चा था इसलिए ही तो फट गया। पक्‍का होता तो नहीं फटता। कई पके हुए बम पब्लिक ने नहीं खाए हैं। बम चाहे कच्‍चा हो पर कितनी भी हाई सुरक्षा हो, कोर्ट हो या रिक्‍शा हो, सबको भेद देता है, पर अपना भेद नहीं देता है। सारे सुरक्षा चक्र तोड़ देता है। इंसानी जीवन को गुब्‍बारे के माफिक फोड़ देता है। बम की जद में जो आया है, इससे नहीं बच पाया है। या तो बम पक्‍का होगा, कच्‍चा होगा तो जरूर चलेगा और जब बम चलता है तो बाकी सब रुक जाते हैं। बम की रफ्तार के आगे, सबके पीछे तार बंध जाते हैं और सब अपनी गति गंवाते हैं और दुर्गति को पाते हैं, स्‍लो हो जाते हैं। बम का कोलेब्रेशन सीधे यमराज से है। सब एक साथ हमला बोल देते हैं, सबको सुननी पड़ती है बम की दहाड़। खूब बजाते हैं पायल और इंसान गिरते जाते हैं हो होकर घायल।

बम के लिए कोई दीवार हाई नहीं है, खाई कितनी भी गहरी हो, इसके लिए बेखाई नहीं रहती है। चबाता नहीं है, पीता नहीं है फिर भी इसके चंगुल में जो आता है, वो जीता नहीं है। न जीना चढ़ पाता है, न जीवन से लड़ पाता है। अस्‍पताल पहुंच जाए तब भी ढेर हो जाता है। कह सकते हैं बम के काम आता है। बम में है दम चाहे कच्‍चा हो, पक्‍का हो, रास्‍ता हो, पगडंडी हो, खुली सड़क हो, बंद आसमां अथवा तारों की छांव हो।

स्‍टेशन कोई भी हो, जहाज हवाई हो, रेल दौड़ रही हो, जहाज तैर रहा हो, बस घूम रही हो, कार खड़ी हो, स्‍कूटर स्‍टार्ट हो – बम कहीं भी सक्रिय हो उठता है, उसके सक्रिय होते ही, बाकी सब निष्क्रिय हो जाते हैं। इसलिए ही तो बम है। जिसके सामने निकलता बड़े बड़े छप्‍पनमारखांओं और सरकारों का दम है। सरकारें निढाल हो जाती हैं। कोई कितना भी फन्‍ने खां हो, तुर्रम खां या शेख चिल्‍ली हो, बम से भीग भीग जाते हैं और भीगी बिल्‍ली तथा सहमे कबूतर नजर आते हैं। बम के आगे चल नहीं पाई पार है, चाहे कितनी भी ताकतवर सरकार है। अमेरिका ने जरूर किया बंटाढार, पर उसकी भी बज गई खड़ताल। लहक गई उसकी चाल। अब उससे चला भी नहीं जा रहा है। घिसट घिसट कर आगे बढ़ रहा है, जितना आगे बढ़ता है, उससे तेजी से पीछे फिसलता है। इतनी शक्ति नहीं पाई है इंसान ने कि धरती को धकेल दे या दे दे सिर्फ एक जोरदार धक्‍का, चाहे खाएं हो खूब सारे मुनक्‍का अथवा मक्‍का। समझ लीजिए बिल्‍कुल बतला रहा हूं पक्‍का। संशय मत पालिए इसके पीछे किसी की शै भी मत जानिए।

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