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बाबे दी फुल किरपा

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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किरपा करना किरपाण चलाने से जनहितकारी, सुंदर और नेक कार्य है तथा सरकार को कर चुकाना, सरकार पर भी किरपा करने के बरोबर है। सब चाहते हैं कि उस पर किरपा हो, किरपा करना कोई नहीं चाहता। अब ऐसे में एक बाबा आए और खूब किरपा बरसाई, किरपाण भी नहीं चलाई, गवर्नमेंट को कर भी चुकाया। फिर लोग दुखी क्‍यों हैं, टी वी चैनल वालों पर भी खूब किरपा बरसी। मालामाल थे और चकाचक मालामाल हो गए। फिर जब इतना सा डिस्‍क्‍लेमर लगाकर छुटकारा मिल जाता है कि ‘इन चमत्‍कारों के लिए चैनल वाले उत्‍तरदायी नहीं हैं’, फिर भला चैनल वाले बाबा की किरपा से क्‍यों वंचित रहना चाहेंगे, किरयाने की दुकान क्‍या चलेगी जो किरपा करने की दुकान फुल स्‍पीड से दौड़ रही है। क्‍यों नहीं दौड़ायेंगे। जबकि बाबा चैनल के जरिए किरपा ही कर रहे हैं, सब पर किरपा बरस रही है। आप यह क्‍यों नहीं समझ रहे हैं कि बाबा तो सिर्फ 2000 रुपये में किरपा कर रहे हैं। जबकि चैनल वाले लाखों लेकर किरपा करवा रहे हैं। वैसे मैं भी किरपा करने की फ्रेंचाइजी लेने की जुगाड़ में हूं और सभी व्‍यंग्‍यकारों को अपने यहां मुलाजिम रख लूंगा, व्‍यंग्‍यकार जो किरपा अपने तानों में बरसाते हैं, वही किरपा बाबा अपने मुखारबिन्‍द से बरसा रहे हैं। तुलना करने पर मैं समझ गया हूं कि किरपा करना व्‍यंग्‍य करने से इतर कार्य नहीं है। एक जैसे काम ही हैं दोनों परंतु जितना माल किरपा करने में है, उतना सत्‍तर जनम तक व्‍यंग्‍य लिखकर अखबारों में छपवाने अथवा किताबें निकलवाने में नहीं है।

अगर बाबा लालची होते तो सब धन समेट अमेरिका चले गए होते। न चैनल वालों को देते, न सरकार को टैक्‍स चुकाते। फिर देश की बैंकों में ही क्‍यों जमा करवाते, विदेशी बैंकों में नहीं जमा करवाते। एक प्रकार से समझा जाए तो पब्लिक से किरपा करने के लिए इकट्ठे हुए माल असबाब में हिस्‍सेधारी बंटाने के लिए चैनल वाले सक्रिय हैं और एक दो नहीं बीसियों चैनल। ऐसे में अगर मैं फ्रेंचाइजी के जुगाड़ में लगा हूं तो मैं कोई पापी तो नहीं हुआ। राजेश खन्‍ना अभिनीत फिल्‍म ‘रोटी’ का फेमस गीत याद आ रहा है … पहला पत्‍थर वो मारे जिसने पाप न किया हो … तो झूठ तो सब बोल रहे हैं लेकिन अगर किसी के झूठ से दुनिया को फायदा हो रहा है, तो किसी को मिर्ची क्‍यों लग रही है। अब एक दो चैनल तो बाबा पर आफत आते देख पल्‍ला झाड़कर निकल लिए। जबकि बाबा ने कभी चैनल वालों का उधार नहीं रखा, एक भी शिकायत संज्ञान में आई हो तो बतलाएं और न जिन पर किरपा की, उनसे उधार किया। नकद का इतना शानदार और चोखा धंधा बल्कि इसे बिजनेस कहना चाहिए, भला इस कलयुग में और कौन सा हो सकता है। कोई चोरी चकारी नहीं, लूट खसोट नहीं, किरपा के लिए थोड़ा सा धन, लेकिन बदले में ‘बाबे दी फुल किरपा’।

किरपा मतलब कर पा, कर के पाना कोई पाप नहीं है। चुराकर खाना पाप हो सकता है। जितना बाबा कर पा रहे हैं, खूब कर रहे हैं। कोई भेद भाव नहीं, दो साल का बच्‍चा हो या 30 साल का युवा अथवा 50 साल का अधेड़ या फिर 80 साल का बुजुर्ग, षोडसी कन्‍या हो, कम उम्र बतलाने वाली महिला हो, तालियां चटकाने वाले किन्‍नर हों – किरपा करने में कोई लाग लपेट नहीं। सबकी फीस सिर्फ 2000 नकद। अब यह शोर मचाना कितना जायज है कि बाबा पहले दुकान चलाते थे या ठेकेदारी करते थे और सफलता नहीं मिली। अब यह किसने कहा है कि एक बिजनेस न चले तो दूसरा काम नहीं किया जा सकता। लोग तो लूटने में भी शर्म नहीं करते हैं। सबको आजादी है कि वह किसी भी धंधे में किस्‍मत आजमा सकता है। अब अगर बाबा की किस्‍मत चमक गई है और वह देशवासियों की किस्‍मत चमकाने में जुट गए हैं तो इसमें इतना परेशान होने की क्‍या बात है।

किस्‍मत की चमक निराली होती है। जब जिसकी चमक जाती है तो वो दूसरे की चमकाना नहीं चाहता बल्कि सारी चमक खुद ही बटोरना चाहता है। बाबा इस मामले में सिर्फ नाम के ही नहीं, मन के भी निर्मल हैं और वे चमक को बांट रहे हैं, क्‍या हुआ जो इसके बदले में ‘सब धन धूरि समान’ के अंश को भरपूर सम्‍मान दे रहे हैं, आप इसमें इतना अपमान क्‍यों महसूस कर रहे हैं, जलते हैं न बाबा पर हुई किरपा से और बाबा जो कर रहे हैं, उस किरपा को पाना चाहते हैं। मेरी मानिए तो खूब पेट-मुंह भर भर कर चिंता कीजिए और बुद्धिमान बनिए, एक हालिया शोध तो यही कह रहा है।

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