अविनाश वाचस्पति
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लगा कर घात किया आघात
देख ली पाक तेरी औकात
घुसपैठियों की तू लाया बारात
हिंद ने दे दी फिर भी मात।
करतूत तेरी चुभो गई शूल
बोता है दिन रात बबूल
पिछली मार गया क्यों भूल
जब चटाई थी हमने धूल।
कटा कर के तू अपनी नाक
कश्मीर में रहा क्यों ताक
हैं नापाक इरादे तेरे पाक
कर ली अपनी इज्जत खाक।
पकड़ी बेशर्मी की राह
तुझको क्यों है हमसे डाह
दिल की तेरे मिली न थाह
शांति की है हमको चाह।
खामोशी को समझे कायरता
डर से भी तू ज्यादा डरता
लालच जो इतना न करता
मर कर बार बार न मरता।
अमल में लाता जो तू शरीयत
बिगड़ती कभी न तेरी तबीयत
सब दे रहे हैं रोज नसीहत
खूब हो रही तेरी फजीहत।
मैल पालते नहीं अशराफ
भारत कर देगा अब भी माफ
पाक कर ले नीयत जो साफ
अवाम को करने दे इंसाफ।
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