अवनीश आर्य
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ओ शांत सड़क ओ शांत सड़क
क्युँ खामोश भला तु है अबतक|
निर्दय हो संवेदनहीन बना,
बतला जाने लेगा तु कबतक ||
नित आते-जाते पदचिन्हो को
क्या तुमने न पहचाना था|
दुर्घटना के तीखे आहट को,
क्या सच में तूने न जाना था ||
क्यों मौन पड़ा, निस्तब्ध हुआ
क्या है सच आखिर बोलो तुम |
किसने की ये निर्मम हत्या,
क्या राज छिपा है खोलो तुम ||
क्या होगा प्रतिउत्तर तेरा
जब माँ पूछेगी पुत्र कहाँ?
सपने आँखों में लिए पिता,
चित्तकरेगा वो लाल कहाँ?
क्या तेरा ह्रदय न काँपेगा
वेदन भरे स्वरों को सुनकर |
क्या तु, क्या न पछतायेगा,
उन दुखित मनों को छलकर ||
प्रतिदिन ही अपने आँगन में
ये नीच कर्म क्यों करते हो
जिसने तुमको जन्म दिया
उसका ही जीवन हरते हो ||
ओ शांत सड़क ओ शांत सड़क
क्युँ खामोश भला तु है अबतक ||
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