संतोष त्रिवेदी
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दिन में सपने देखते ,अब गाँवों के लोग !
नेता रोटी खायेंगे,छोड़ के छप्पन-भोग !!
बुत में परदा डालते,बनते हैं नादान !
सारे अच्छे काम हैं,घूँघट में आसान !!
सबने हाँका दे दिया,चलो गाँव की ओर !
वोट मिलेगी जाति की ,चूसेंगे हर पोर !!
बोरे भर वादे लिए,थैली भर संकल्प !
फिर से छलने आ गए,रहा न पास विकल्प !!
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