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प्रोफ़ेसर कृष्णन को अगली क्लास के लिए जाने में अभी कुछ समय शेष था, इसलिए स्टाफ रूम में रखे अख़बार को पलटने लगे। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाते हुए अब उनको 22 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी किसी वैज्ञानिक गतिविधि से जुड़े समाचार को वह बालसुलभ जिज्ञासा से पढ़ते हैं। आज के अख़बार की जिस खबर ने उनका ध्यान खींचा वह थी डार्क मैटर के बारे में। यह वही ऊर्जा, वही पदार्थ है, जो ब्रह्माण्ड के 96 प्रतिशत हिस्से में फैला है, लेकिन किसी भी वैज्ञानिक पहुँच से बाहर है। खबर के अनुसार झारखंड की किसी खदान में लगभग आधा किलोमीटर नीचे इस डार्क मैटर पर शोध करने के लिए कोई प्रयोगशाला बनाने की योजना थी। खबर पूरी पढ़ भी नहीं पाए थे कि चपरासी ने उनका ध्यान भंग किया…
“सर, चेयरमैन साब बुला रहे हैं आपको…”
तनिक झिझकते हुए कृष्णन ने चेयरमैन के कमरे में प्रवेश किया। उनके कुछ कहने से पहले ही चेयरमैन स्वयं बोल पड़े “आओ कृष्णन आओ… तुम्हारे पास एक कैंडीडेट को भेजा था इंटरव्यू के लिए… क्या हुआ उसका?”
“सर उसका पीएचडी नहीं था, नियम के मुताबिक़ अब तक हमने सिर्फ पीएचडी किए लोगों को रखा है… और वो तो सिर्फ बी टेक था…”
“पीएचडी आजकल कैसे मिल जाती है ये तुम भी जानते हो कृष्णन… असल बात तो नॉलेज की है न?”
“सर मैंने उससे कम से कम नहीं तो 10 टेक्निकल सवाल किए, लेकिन वो एक का भी ठीक से जवाब नहीं दे पाया…”
“अरे वो यंग है और ब्राइट भी… सीख लेगा, फिर हमें तो जरूरत है ही…”
“सर लेकिन हमें तो पावर इलेक्ट्राॅनिक्स के लेक्चरार की जरूरत है और वह तो थर्मोडायनामिक्स का बन्दा है…”
चेयरमैन लगभग चीख उठे, “अबे वो राज्य के गृहमंत्री का साला है… तुम्हें बात समझ में क्यों नहीं आती…”
कृष्णन सिर हिलाते हुए बुदबुदाए “जी सर समझ गया….”
चेयरमैन के ऑफिस से निकलकर जाते हुए कृष्णन अभी भी सिर झटक रहे थे। ये कैसी क्वाॅलिफिकेशन है, जो न आदमी की नॉलेज में दिखती है और न ही उसके बायोडेटा में?
एक बार फिर उन्हें डार्क मैटर वाली खबर याद आ रही थी।
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