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प्राइम टाइम – अरनब गोस्वामी बनाम अन्नू कपूर
मैं एक बात पहले ही साफ़ कर दूं कि मुझे इस बात की कोई गलतफहमी नहीं है कि मैं टेलीविजन के प्रोग्राम की टी आर पी बना या बिगाड़ सकता हूँ|
शाम नौ से दस का समय टेलीविजन के लिहाज से प्राइम टाइम कहलाता है क्योंकि भारतीय जनमानस उस दौरान टेलीविजन देखने के अलावा कोई और भला काम नहीं करता है | (वे भद्र जन जो इसके अपवाद हैं कृपया मुझे माफ करेंगे)
जैसा कि मैंने कहा कि मैं रात नौ बजे से दस बजे का समय खाने और टेलीविजन की भेंट चढ़ाने वाला नाचीज हूँ और कुछ समय पहले राष्ट्रीय घटनाक्रम पर नजर रखने का शौक चढ़ गया | अब हम शरीफ लोग देश के लिए करते-धरते तो कुछ हैं नहीं तो क्या अब उसके विषय में चिंता भी न करें ? इसी चिंता ने मुझे बच्चों से उनका कार्टून नेटवर्क और बीवी से उसका प्रिय सीरियल छुड़वा कर प्राइम टाइम में समाचार चैनलों की और प्रेरित किया| पता चला कि प्राइम टाइम में सबसे लोकप्रिय प्रोग्राम श्री अरनब गोस्वामी का है| हमारे मित्र ने उसकी व्याख्या करते हुए समझाया “ई अरनाबवा किसी को नहीं छोड़ता, सबकी बैंड बजाता है …”
फिर क्या था हम भी अरनब के साथ हो लिए – रोज ही प्राइम टाइम पर श्री अरनब गोस्वामी किसी नेता, अभिनेता या समाजसेवी के पीछे पड़ा मिलता | सॉलिड चिल्लाता है बॉस! हालांकि यह नहीं समझ में आता कि वह इतना नाराज रहता क्यों है ? कोई उसे जादू की झप्पी क्यों नहीं देता है ? (वो अलग बात है कि तमाम लोग उसे और बहुत कुछ देना चाहते हैं)| फिर एक दिन एहसास हुआ कि उसके शो में रहते तो सात आठ लोग हैं पर कोई कुछ बोल ही नहीं पाता है| बीच में जब अरनब को सांस लेनी होती है या शायद पानी पीना होता है तो वह तमाम विशेषज्ञों में से किसी-किसी को कुछ बोलने का मौक़ा दे देता है|
मन कुछ खट्टा सा हो गया तो मैंने सोचा कि कोई दूसरा चैनल ट्राई करते हैं – लेकिन दूसरे चैनलों पर भी वैसा ही हाल; अरनब जैसा ही कोई दूसरा चिल्ला रहा होता बस उनके नाम अंजना ओम कश्यप, अभिसार, राहुल कँवल, राजदीप या ऐसे ही कुछ और होते| ऐसा क्यों है की हम बी. बी. सी., सी. एन. एन. या एन. बी. सी. से ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर ले लेते हैं, टेक्नोलॉजी ले लेते हैं पर उनका प्रोफेशनलिज्म फेंक देते हैं| पक्का करने की गरज से मैं दोबारा सी.एन.एन. और बी.बी.सी. चैनलों पर गया – वहां तो बहुत ही शिष्ट तरीके से इंटरव्यू लिए जा रहे हैं एंकर टोकता भी नहीं है चिल्लाता भी नहीं है और बड़े-बड़े मसलों पर बात हो जाती है| हमारे न्यूज चैनल दिखते तो उन्ही के जैसे हैं पर बहस मुबाहिसा एकदम सड़क छाप| टी वी का वॉल्यूम भी कम करके देख लिया लेकिन सिवाय शोर के कुछ पल्ले पड़ा नहीं| फार्मूला जो समझ में आया कि एक बवाली विषय लो, चार पाँच विशेषज्ञ या पार्टी के प्रवक्ता लो और बस चीखते चिल्लाते रहो| विज्ञापनों से पैसा कमाओ, राजनीतिक दलों से पैसा बनाओ, झूठे सर्वे कराओ और अपने आकाओं की मदद करो – यही है हमारे न्यूज चैनलों का संविधान|
इस बीच एक बदलाव घरेलू स्तर पर हो गया – जो प्राइम टाइम पहले परिवार के साथ बीतता था अब एकाकी टाइम बन गया क्योंकि मैं अकेला न्यूज चैनल देखता था जबकि बाकी परिवार ने उस शोर-शराबे की बजाय सो लेना बेहतर समझा|
टेलीशापिंग नेटवर्क की तर्ज पर – मैं बड़ा परेशान रहने लगा, रात को नींद ठीक से नहीं आती थी, जल्दी चिड़चिड़ाने लगा था | वैज्ञानिक कहते हैं कि रात सोने से पहले जिस तरह के माहौल में रहो उसी तरह के सपने आते हैं| बात बिल्कुल सत्य है क्योंकि रात नींद कुछ ठीक से नहीं आती थी, बुरे-बुरे सपने आने लगे| (देश के घटनाक्रम पर नजर रखने की यह कीमत कुछ ज्यादा लगी) और तब फिर किसी ने अन्नू कपूर के बारे में बताया| वो प्राइम टाइम में पुराने सुरीले गाने सुनवाते हैं और फिल्मों से जुड़े किस्से भी| बस फिर क्या था मैंने अरनब को छोड़कर अन्नू जी की शरण ली और अब मैं ठीक से सो पाता हूँ और मेरा परिवार फिर से खुशहाल हो गया है|
इति श्री |
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