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बाज आएं लक्ष्मी की चमचागीरी से

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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दीपावली भारत का एक प्रमुख त्यौहार है। इसके मनाने के पीछे कई किवदंतियां हैं। एक किंवदंती यह है कि राज्य विस्तार के लिए महाविद्वान लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद राम जब अयोध्या में लौटे तो वहां के लोगों ने राजभक्ति के तहत खुशी में दीपक जलाकर उनका अभिनंदन किया। तबसे दीपावली मनाने की प्रथा प्रचलित हो गई। कई लोग इसे बौद्ध त्यौहार मानते हैं और तथागत बुद्ध को बोधिसत्व प्राप्त होने के दिन से इसका आरम्भ कहते हैं। पुराणपंथियों के अनुसार यह लक्ष्मी को प्रसन्न करने का त्यौहार है। इस दिन लक्ष्मी की अभ्यर्थना में घरों में तेज रोशनी कर उनको निहाल किया जाता है ताकि वे संसार भर की दौलत भक्त के घर में संचय करने का वरदान प्रदान करें।

भारतीय संस्कृति के बारे में पाखंडियों का कहना है कि यह अध्यात्म की संस्कृति है अर्थ की नहीं, लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि विद्या की देवी सरस्वती को लेकर इस संस्कृति में कोई त्यौहार तक नहीं मनाया जाता जबकि धनवर्षा में समर्थ होने के कारण लक्ष्मी को प्रसन्न करने का त्यौहार पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है। रोशनी करने से लेकर आतिशबाजी की गूंज पैदा करने तक अपनी सम्पन्नता का प्रदर्शन करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाती। भारतीय संस्कृति को आडम्बरप्रिय लोग भले ही ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या का उद्घोष करने वाले मानते हों लेकिन सच्चाई यह है कि लौकिक जीवन में भी यह संस्कृति यथार्थ की जितनी आग्रही है उतनी कोई प्राचीन संस्कृति नहीं है। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने अर्थ को भी चार पुरुषार्थों में माना है। अगर आपके अंदर उद्यमिता की प्रतिभा है, आप धन हो जाए तो ज्यादा से ज्यादा फैक्ट्रियां लगवाकर बेहतर प्रोडक्ट दे सकते हैं और अधिकतम लोगों को रोजगार दे सकते हैं। इसके लिए धनार्जन की साधना करना पुरुषार्थ कहा जाएगा और उससे भी आगे पुण्य कहा जाएगा, लेकिन अगर आपके अंदर उद्यमी प्रतिभा नहीं है तो धन आपको पतित कर देगा। आप धन संचय के लिए अनैतिक तरीके अपनाएंगे वह बात तो अलग है लेकिन जब धन का उपयोग करने की कोई कार्ययोजना आपके दिमाग में नहीं है तो आप धन को सोने के रूप में परिवर्तित कर, एफडी बनवाकर ब्लॉक कर देंगे और धन की गतिशीलता को अवरुद्ध करने से ज्यादा सामाजिक और राष्ट्रीय अपराध कोई दूसरा नहीं हो सकता। यह काम आपसे जानेअनजाने में हो जाएगा। इस कारण इस दीपावली के पर्व पर आपको इस पर्व के महत्व और औचित्य के बारे में नये सिरे से विचार करना पड़ेगा।

लक्ष्मी से सरस्वती श्रेष्ठ हैं, यह बात मजबूती से आपको कहनी चाहिए। देवी कोई भी हो श्रद्धेय है, लेकिन अगर हमारे अंदर कोई औद्योगिक महत्वाकांक्षा नहीं है तो हम लक्ष्मी के लिए सारे पलकपांवड़े बिछा दें और सरस्वती की पूजा को सादगी में निपटा दें, यह अक्षम्य है। होना यह चाहिए लक्ष्मी रूठें तो रूठ जाएं पर सरस्वती की कृपा और आशीर्वाद हमको जरूर मिले। यदि हमें लगता है कि लक्ष्मी को प्रसन्न करने की खातिर दीपावली पर भव्यता में हम फिजूलखर्ची कर रहे हैं तो भाड़ में गई लक्ष्मी की प्रसन्नता हम यह न करें। अगर हमारा देश आध्यात्मिक मूल्यों को श्रेष्ठ मानता है तो हमारी प्रतिबद्धता लक्ष्मी के प्रति नहीं सरस्वती के प्रति ही होनी चाहिए और हमें यह विश्वास करना चाहिए कि अगर लक्ष्मी पूजन में हम ज्यादा तामझाम नहीं करेंगे और धन की देवी हमसे रूठ जाएंगीं तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि रचनात्मक बौद्धिकता सर्वोपरि है। धन से बहुत ऊपर है। दीपावली के इस अर्थ पर विचार करने की आवश्यकता है। अगर हम दीपावली पर इसलिए दीप जला रहे हों कि महापंडित रावण के वध की प्रसन्नता हमको रोमांचित और गौरवान्वित कर रही है तो हमें अपनी हरकतों से बाज आना होगा। कम से कम रावण के वध पर कोई जश्न मनाना मानवीयता के नाते कदापि उचित नहीं है। किसी की आस्था को चोट पहुंचाए बिना मेरा यह कहना है कि आप राम के प्रति श्रद्धा रखें, उन्हें आराध्य मानें, कोई समस्या नहीं है, लेकिन यह ध्यान रखें स्वयं राम को रावण के प्रति कोई घृणा नहीं थी। अगर ऐसा होता तो वे रामेश्वरम् में शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा के समय महाविद्वान रावण को भगवान शिव के अभिषेक के लिए क्यों बुलातेहर देवी स्तुत्य है। सरस्वती भी और लक्ष्मी भीलेकिन अगर मायारूपी सम्पदा के लिए लक्ष्मी की आराधना की जानी है तो लक्ष्मी कतई स्तुत्य नहीं हैं। धन से मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक शांति का क्षय होता है। ऐसी देवी बहिष्कृत की जाए। समाज में तभी भला होगा अन्यथा लक्ष्मी भी सरस्वती की तरह मां स्वरूपा हैं और हर मां का पूजनवंदन हमारा कर्तव्य है, इसलिए हम उन्हें पूज रहे हैं। बस यहीं तक बात सीमित रहनी चाहिए।

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