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बीहड़ का नाम सुनकर जेहन में कुछ कौंधता है तो डाकू और बंदूकों की आवाज। इसके अलावा डरे-सहमे चेहरे। इसी बीहड़ में आबाद एक गांव का नाम है ‘ब्यौना राजा।’ नाम से लगता है कि गांव का नाता किसी राजवंश से होगा और तस्वीर भी उजली होगी। उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के इस गांव में अब कुछ-कुछ ऐसा दिखता भी है, लेकिन डेढ़ दशक पहले तक इस गांव में लोग साहूकारी, दासता और भुखमरी से जकड़े हुए थे। बीते कुछ ही वर्र्षों में यहां की बुंदेली महिलाओं ने वह कर दिखाया जो बीते कई बरस में मर्द नहीं कर सके थे। आज इन महिलाओं ने अनाज, बीज बैंक के साथ ही आपदा कोष, किशोरी मंडल आदि का गठन कर गांव की तस्वीर और तकदीर ही बदल दी है।
15 साल पहले गांव के लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना मुश्किल था। ऐसे में पेट की तपिश को ठंडा करने के लिए मजबूर लोगों को दबंगों और साहूकारों के आगे अन्न के लिए हाथ फैलाना पड़ता थे। एवज में सामंतों के खेतों में कटाई-मड़ाई ही नहीं, घर के काम भी अघोषित बंधुआ मजदूर की तरह करने पड़ते थे। वक्त बदला और यहां पदार्पण हुआ ‘समर्पण’ का। इस संस्था के कार्यकर्ताओं ने बेबस और लाचार महिलाओं की चेतना को झकझोरा तो हौले-हौले हालात भी बदलने लगे। ‘आधी आबादी’ के लिए 11 समूह गठित हुए और मवेशी पालन के जरिए आर्थिक खस्ताहाली से निकालने की पहल शुरू हुई। खास बात यह है कि सभी समूहों की अध्यक्ष महिलाएं ही हैं।
शुरू से ही परिवर्तन क्रांति से जुड़ीं बिंदेश्वरी बताती हैं कि अब उनके यहां के अनाज बैंक में 139 क्विंटल अनाज है और 123 क्विंटल बीज भी। साथ ही भूसा बैंक भी गठित है, जिससे पशुओं के चारे के लिए बारह महीने दिक्कत नहीं होती। उन्होंने बताया कि जरूरत पडऩे पर अनाज लोग लेते हैं और उसका सवाया फसल पर जमा कर देते हैं। जिनकी स्थिति ज्यादा खराब है, उनसे अतिरिक्त अनाज नहीं लिया जाता। गिरिजा देवी ने बताया कि अब समूह से जुड़ी महिलाएं हर माह 20-20 रुपए जमा करती हैं, जिससे आपदा कोष में 18 हजार रुपए जमा हो गए हैं जो जरूरत पडऩे पर लिए-दिए जाते हैं। इन महिलाओं में बदलाव की दृढ़ इच्छाशक्ति ने यहां की टीलेनुमा 567 हेक्टेयर जमीन को भी उपजाऊ कर दिया है। मेड़बंदी का काम भी हुआ है। रेखा तो नेत्र ज्योति गंवा चुकी है, फिर भी समूह के लिए काम करती है। फूला, सिया समेत कई महिलाओं का कहना है कि प्रशासन का सहयोग नहीं मिलता, इसलिए विकास की रफ्तार धीमी है। उन्होंने बताया कि करीब छह किलोमीटर गूल उन्होंने श्रमदान से खोदी थी ताकि सिंचाई के लिए नहर से पानी असिंचित खेतों तक पहुंचाया जा सके। समर्पण संस्था के सचिव राधेकृष्ण कहते हैं कि इस गांव में उनकी संस्था सिर्फ जरिया बनी है, बदलाव का श्रेय सिर्फ स्थानीय महिलाओं के खाते में जाना चाहिए।
विशेष बात यह है कि ब्यौना में परिवर्तन क्रांति का ही परिणाम है कि एसडीएम के यहां धरने पर महिलाओं के बैठने से गांव के स्कूल में अध्यापक हर रोज पढ़ाने आने लगे हैं। इसी तरह के प्रयास अब आसपास के करीब 25-30 गांवों में हो रहे हैं जिससे गरीबों, शोषितों के दिन बदल रहे हैं।
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