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chhath puja : छ्ठ व्रत कथा

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महाभारत (Mahabharata): छठ व्रत के संबंध में कई पौराणिक धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से एक कथा अनुसार कहा जाता है कि महाभारत के समय जब पांडव अपना सर्वत्र जुए में हार जाते हैं और उन्हें बहुत ही कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है. तब द्रौपदी इन सभी संकटों से मुक्ति के लिए छठ व्रत को करती हैं और इस वर्त को करने से उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं व पांडवों को उनका राजपाट एवं सम्मान पुन: प्राप्त होता है.

रामायण (Ramayana): एक अन्य कथा अनुसार लंका विजय के पश्चात जब भगवान श्री राम अयोध्या वापस लौटे तो चारों ओर खुशी व उत्सव का समा होता है. इस उपलक्ष्य में दीपावली मनाई जाती है तथा राम का राज्याभिषेक होने पर, श्री राम और सीता जी ने सूर्य षष्ठी के दिन तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना की थी. इसके अतिरिक्त यह एक कथा यह भी है कि सूर्य षष्ठी के दिन ही गायत्री माता का जन्म हुआ था इसी दिन ऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र का उच्चारण हुआ था. एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तो ऋषि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने को कहा तथा उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर खाने को दी जिस कारण उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है. किंतु बालक मृत पैदा हुआ जिस कारण राजा प्रियवद पुत्र वियोग से व्याकुल हो उठे व प्राण त्यागने लगे. उसी क्षण भगवान की मानस कन्या देवसेना वहां प्रकट होती हैं और राजा से कहती हैं कि वह षष्ठी हैं अत: तुम मेरा पूजन करो जिस कारण तुम्हें इस शोक से मुक्ति प्राप्त होगी और राजा ने देवी के कथन अनुसार पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया जिस कारण उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है मान्यता है कि यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन हुई थी जिस कारण यह महत्वपूर्ण थी.

छ्ठ पूजा विधि

इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं fनयम निष्ठा के साथ मनाया जाता है. इस त्यौहार की यहां बड़ी मान्यता है. इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं. व्रत चर दिनो का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं यानी शुद्ध आहार लेते हैं. पंचमी के दिन नहा खा होता है यानी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्रह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को प्रसाद के तर पर खाते हैं. षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं. संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों में भरकर जलाशय के निकट यानी नदी, तालाब, सरोवर पर ले जाया जाता है. इन जलाशयों में ईख का घर बनाकर उनपर दीया जालाया जाता है. व्रत करने वाले जल में स्नान कर इन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं. सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने अपने घर वापस आ जाते हैं. रात भर जागरण किया जाता है. सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं. व्रत करने वाले सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं. अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है. कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने अपने घर लट आते हैं. व्रत करने वाले इस दिन परायण करते हैं. इस पर्व के विषय में मान्यता यह है कि जो भी षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन मांगा जाता है वह मुराद पूरी होती है. इस अवसर पर मुराद पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं. सूर्य को दंडवत प्रणाम करने का व्रत बहुत ही कठिन होता है, लोग अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड देते हुए जाते हैं. दंड की प्रक्रिया इस प्रकार से है पहले सीघे खडे होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से ज़मीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खींची जाती है. यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार बार दुहरायी जाती है.

छठ पूजा का महत्त्व

ऐसी आस्था है कि सच्चे मन से की गई इस पूजा से मनुष्य को मनवांछितफल मिलता है. छठ पूजा का विशेष महत्व है. माताएं अपने बच्चों व पूरे परिवार की सुख-समृद्धि, शांति व लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं.यह व्रत काफी कठिन होता है और व्रत संबंधी छोटे-छोटे कार्य के लिए भी विशेष शुद्धता बरती जाती है. वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की पूजा या जल देना लाभदायक माना जाता है. भारत के अधिकतर राज्यों में लोग मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन सूर्य को जल चढाते हैं, लेकिन इस पूजा का विशेष महत्व है. इस पूजा में व्रतियोंको कठिन साधना से गुजरना पडता है.

साभार: भारतीय संस्कृति

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