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नारद जी , महादेव के दरबार में पहुंचे और नज़रें झुकाकर चुपचाप एक ओर खड़े हो गए , यह देखकर महादेव के मुख पर हलकी सी मुस्कान आ गयी , लेकिन माता पार्वती कुछ विचलित दिखायी दी नारद से बोली , पुत्र , नारद , आज किस चिंता में डूबे हो , सदैव की भांति नारायण नारायण का उच्चारण भी नहीं सुनायी दिया ,.
नारद जी बोले ,माते , भूलोक पर हो रहे अनर्थ से मेरा मन व्यथित है , कल मैं महादेव की नगरी काशी में गया था , वहाँ मैंने सदैव हर हर महादेव का उद्घोष सुना था , परन्तु माते ,हर हर महादेव के स्थान पर किसी अन्य मानव के महिमा मंडन का उद्घोष सुनकर मुझे आश्चर्य के साथ असीम दुःख हुआ ,
पार्वती यह सुनकर मुस्करायी और विनम्रता से बोली ,वत्स , तनिक भी व्यथित ना हो , यही भूल रावण से भी हुयी थी स्वयं को ईश्वर समझने की और उसने अपने ही बंधू बांधवों के साथ स्वयं का भी नाश करवा लिया था,,
माता पार्वती के यह वचन सुनकर नारद के मुख पर चमक आ गयी और उनके मुख से पुनः नारायण नारायण का चिर परिचित उद्घोष सुनायी दिया————विनोद भगत
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