BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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काँटों भरी है जिन्दगी, जरा धीरे चलना
ढ़ल रही है शाम अब, जरा धीरे चलना
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पी लिया है फ़लसफ़ा, हर ज़ाम में उसने
बहकने लगे है कदम, जरा धीरे चलना
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जा रहे हो ढ़ूँढ़ने, ईकतारा लेकर
वीरान है उसकी गली, जरा धीरे चलना
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मज़हब यहाँ पर बन चुके है, अब खिलौने
पिचकारियों से है रौंदते, जरा धीरे चलना
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छाई हुई है सूबे मे, एक फ़रेब-ए-हलचल
कुछ घोंसलों में हैं परिन्दे, जरा धीरे चलना
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फूस का घर है मेरा, कारवां-ए-पील उनका
रहबर मेरे हरेक से कहना, जरा धीरे चलना
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होश इतना भी रहे, कि खुद उठ सको
इतना समझकर ऐ ‘शजर’, जरा धीरे चलना
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