प्रकृति की गोद में हम, आप और आपके पूर्वज सदियों से खेलते और रहते आ रहे है, और आने वाली पीढियाँ भी यहाँ सदियों तक रहेगी । इस सदियों के जिंदगी के सफर में कुछ-एक लोग ही ऐसे हुये है जिनका परमात्मा से साक्षात्कार हुआ है, और वे आनंद को उपलब्ध हुये है । लेकिन आज हर किसी की जिन्दगी ऐसी हो गयी है जैसे एक चिडियाँ, सुबह पौ फटने से पहले ही अपने घोसलों से निकल कर अपने और अपने बच्चों के पेट के लिये पूरे दिन इधर-उधर भटकती रहती है। इस पेट को भरने के दौरान इन्हें अपनी जान हथेली पर रखकर घूमना पडता है और कभी-कभी तो अपने जान से भी हाथ धोना पडता है और उनके बच्चें अपने घोसले मे कभी न खत्म होने वाला इंतजार अपने माँ के लिये करती रहती है……
जिन्दगी में पेट भरने और एक-दूसरे से आगे निकलने की आपा-धापी मे परमात्मा हमसे कही दूर चला गया है। परमात्मा के नाम पर अगर रह गया है तो बस कुछ ढकोसले, जिसे कुछ लोग शौक से तो कुछ लोग किसी तरह निभाते और घसीटते चले जा रहे है।
वैसे परमात्मा हमसे कभी दूर जाने वाला नही है। बस हमने अपनी आँखों के ऊपर ऐसा पर्दा लगा लिया है कि परमात्मा हमारे पास होकर भी हमें दिखाई नही देता, हमें उसका कोई भी आभास ऐसे नही होता जैसे कि कढाई मे रखे स्वादिष्ट व्यंजन उसमे रखे चम्मच से पूरी तरह लिपटी होती है लेकिन उस चम्मच को व्यंजन के स्वाद का कुछ पता नही होता। जबकि उस व्यंजन का स्वाद शरीर के सबसे छोटे और मुलायम अंग- जीभ सब कुछ बयान कर देता है।
परमात्मा हमारे चारों तरफ अभिन्न रूपों एवं रंगों में फैला हुआ है। और हमें बिल्कुल भी दिखाई नही देता। ऐसा नही कि ये बात मैं पहली बार आपसे कह रहा हूँ। हमारे शास्त्रों में, पुराणों मे बडे-बडे विद्वानों ने छोटी-छोटी लाइनों में बडी-बडी बात समझा गये है लेकिन फिर भी इस परमात्मा को ढूँढ्नें के लिये हम कहाँ-कहाँ नही जाते, क्या-क्या नहीं करते, गिनती नही। इस धरती से आसमान तक, सूरज, चाँद, सितारे, फूल, खुशबू, धूल, मिट्टी, जल, वायु, पेड-पौधे, इत्यादि। सभी में परमात्मा अलग-अलग रूपों और रंगों में समाया हुआ है। सवाल सिर्फ हमारे मानने के लिये राजी होने का है जो कि हम हो नही पाते और ………………
हमारे चारो तरफ परमात्मा रग-रग में फैला हुआ है और हम भटक रहे है। हमारे ऊपर आनंद की घनघोर बारिश हो रही है और हम छाता लगाये दुखी मन से इधर-उधर तलाश रहे है, भाग रहे है – एक पल के आनंद के लिये। क्यों…………………..?
क्योंकि हमलोगों ने यहाँ अपने लिये जीना शुरू कर दिया है, जबकि हम अच्छी तरह जानते है कि यहाँ की हरेक चीज नश्वर है, क्षणिक है, फिर भी हम उसे अपना मान बैठते है, उससे मोह लगा लेते है । ये मोह हमारे दुःख का सबसे बडा कारण है । आप यहाँ मोह नही बल्कि प्रेम करें।
आप ऐसे जीये जैसे परमात्मा जी रहा हो, खाना ऐसे खाये जैसे परमात्मा खा रहा हो, कुछ पाया तो परमात्मा ने पाया, कुछ खोया तो परमात्मा ने खोया। अगर बीमार है तो परमात्मा बीमार है, अगर दर्द है तो परमात्मा को है आप यहाँ के होने वाले सभी घटनाओं से अछूते है। आपको सिर्फ इतना करना है कि ये सब जो घटनायें घट रही है उन सभी घटनाओ का पल-पल आनंद लेना है, कुछ छूट न जाये, कुछ ऐसी बात न रह जाये जिसका आनंद आप न ले सके, ऐसा न हो। हमारे देश में एक संत थे- स्वामी राम, जिन्हें प्यास लगती थी तो वे कहते थे – “अरे राम को प्यास लगी है, कोई इसे पानी पिला दे” अगर उन्हें कोई भला-बुरा कहता या गाली देता तो वे हँसते थे और कह्ते थे- “आज राम को खूब गालियाँ पडी और मैं हँस रहा था और उसे समझा रहा था कि देखो अच्छा काम करोगे तो कभी-कभी गालियाँ भी पडेगी” ।
आप किसी से दोस्ती भी करते है तो उसमें भी बहुत सोचते है कि इससे मुझे कितना फायदा होगा, ये मेरी बिरादरी का है कि नही, और भी बहुत सारी बातें…। अगर वो किसी दुसरे जाति-धर्म या बिरादरी का है तो उसे देखते भी ऐसे है जैसे किसी दुश्मन को देख रहे हो, क्यों………………?
इतना तो आप जानते है कि हम सभी एक ही परमात्मा के पुत्र है, फिर ये बात हम क्यों भूल जाते है…?
आइये…….. अगर परमात्मा से साक्षात्कार करना है तो हम सभी एक-दूसरे से बिना किसी ऊँच-नीच, जाति-धर्म का भेद-भाव किये, प्रेम करें । हम एक-दूसरे को ऐसे देखे जैसे किसी परमात्मा को देख रहे हो, किसी चीज को प्रेम में भरकर देखे या चाहे, मोह या व्यापारिक आँखो से न देखे, न चाहे । इसे आप कुछ दिन करके देखे आपको एक असीम आनंद की अनुभूति होगी जिससे आप मद-मस्त हो जायेंगे । अगर आप एक फूल को भी अगर प्रेम से थोडी देर ध्यान से देखेंगे तो आपको उस फूल की खिलखिलाहट भरी हंसी सुनाई देगी। अपनी आँखों को प्रेम से लबालब भरकर कुछ दिन जीकर देखे, अगर आपको चारो तरफ परमात्मा का आभास न हुआ, अगर आपकी जिंदगी आनंद से न भर जाये तो आप मुझसे अपने होने वाले अनुभवो से जरूर बताईयेगा जिससे मैं भी ये पता लगाने की कोशिश करूँ कि आपने कहाँ गलती की……….।
पल-पल जीयें………….. आनंद में जीये……………….. मस्ती में जीये………………….. प्रकृति में डूबकर जीये…………………… परमात्मा में जीये……………. परमात्मा के लिये जीये…………… प्रेम में जीये……………. ।
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