उत्सव
उत्सव
जागरण जंक्शन के पाठकों को आज मैं उस नायाब साहित्य से परीचित करवाने जा रहा हूँ जिस का जन्म आज से लगभग सौ वर्ष या उससे भी पूर्व गुलामी की टीस झेलते हुए राष्ट्रप्रेमियों के दिलों की ज़मीन पर आज़ादी की छटपटाहट की उथल पुथल, क्रांति रूपी खाद और इंक़लाब के जल से सींच सींच कर उगाया गया था l परंतु कहीं ये चिंगारियाँ शोले न बन जाएं, मारे डर के फिरंगी इस साहित्य को जब्त कर के इंग्लैंड भेजते रहे l अब भारत सरकार के प्रयासों से इस साहित्य की माइक्रो फिल्म ब्रिटेन से प्राप्त कर के राष्ट्रीय अभिलेखगार द्वारा पुस्तक रूप में संकलित किया जा रहा है l जब्त किए हुए साहित्य पर राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा ‘आज़ादी के तराने’, ‘देश भक्ति के गीत’, ‘धरती की पुकार’, ‘जंजीरें’ व ‘आशोब’ आदि कुछ पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं| आशोब का प्रकाशन पहली बार 2012 में किया गया था| आशोब का अर्थ है इंक़लाब, उपद्रव व अशांति ये वही इंक़लाब या अशांति है जो आज़ादी से पहले प्रत्येक हिन्दुस्तानी के दिल में थी, अँग्रेज़ों ने जिसे उपद्रव अथवा गदर का नाम दिया और हम जानते हैं कि ये प्राधीनता के खिलाफ हमारा इंक़लाब अथवा क्रांति थे|
“आशोब” बहुत सी, दिल को छू लेने वाली, कविताओं का एक बहुत ही खूबसूरत गुलदस्ता है परंतु आज के लिए मैने मौलवी वजाहत हुसैन ‘ वजाहत’ द्वारा लिखित कविता “हिंदुस्तानियों की होली” का चयन किया है क्योंकि आज हम बड़े ज़ोर शोर से होली मना रहे हैं परंतु होली को लेकर हमारी चिंता आज भी वही है जो लगभग सौ वर्ष पहले ‘वजाहत’ जी द्वारा लिखी इस कविता में दिखलाई पड़ती है| इस कविता के दो भाग हैं आधे भाग में कवि ने होली को मात्र भांग और शराब का नशा करने का उत्सव मानने वालों की सोच पर चिंता जताई है व नशे से दूर रहने की हिदायत दी है और दूसरे भाग में होली के त्यौहार को परिभाषित किया है| उस समय के साहित्य में अधिकतर उर्दू, फ़ारसी, व अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसे समझने में कठिनाई तो होती है परंतु जनाब “हिफजुल कबीर” जी ने ऐसे शब्दों का सरल हिन्दी अनुवाद किया है इसलिए पाठक को समझने में कठिनाई नहीं होती और कविता का पूर्ण आनंद लिया जा सकता है |
आज के इस लेख को उत्सव शीर्षक देने से एक तो मेरा अभिप्राय ये है कि होली वास्तव में ही उत्सवों का राजा है अगर हम सभी देश वासी होली का अर्थ सही सही समझें जैसा जनाब ‘ वजाहत’ जी द्वारा अपनी कविता के माध्यम से सुझाया गया है और दूसरे मैं समझता हूँ कि आज़ादी के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई को भी देश के क्रांतिकारी सिपाहियों ने उत्सव की तरह ही लड़ा था| जेलें भरना, हंसते हंसते फाँसी पर झूल जाना उनके लिए उत्सव जैसा ही होता था तभी तो वे इस कठिन काम को कर पाए यदि बोझ समझते तो शायद आज हम आज़ाद न होते | आवश्यकता थी, तब उन्होंने खून की होली भी खेली, आज आवश्यकता है हम प्यार की होली खेलें और उत्सव मनाएँ यही इस कविता की भी आत्मा है| कविता की चुन्निन्दा पंक्तियाँ अर्थ के साथ आप पाठकों की नज़र कर रहा हूँ| यदि आपका स्नेह मिला तो भविष्य में अन्य कविताओं को भी आपकी नज़र करने का प्रयास करूँगा|
भगवान दास मेहन्दीरत्ता
गुड़गाँव
हिंदुस्तानियों की होली
(उनका ये शेर खास तौर पर तवज्जो देने वाला है)
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अगर इस मुल्क की क़ौमें बहम उल्फ़त नहीं रखतीं|
यह सारी रंग रलियाँ ख़ाक भी वक्अत नहीं रखतीं||
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शराबे इत्तीफ़ाक इसमें पिएं सब यह वह होली है l
निफ़ाक़को बुगज़ की हर इक ने क्यों तलवार तौली है ll
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मुसलमां और हिंदू कैसे भी बदख्वाह हों फिर भी l
यह हिन्दी हैं, इन्होंने हिंद ही में आँख खोली है ll
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फ़लाहे मुल्क वाबस्ता है इन दोनों ही के दम से l
मेरी जो बात है वह देखी भाली जाँची तौली है ll
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अगर हिन्दोस्तां को एक अंगा फ़र्ज़ कर लें हम l
तो हिन्दु इसका दामन है मुसलमां इसकी चोली है ll
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हमें आपस की नाचाक़ी ने मुर्दा कर दिया बिल्कुल l
हमारी पालकी है या किसी मुर्दे की डोली है ll
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खुदा के वास्ते समझो खुदा के वास्ते सोचो l
मय उल्फ़त में तुमने किसलिए अफ़यून घोली है ll
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जो हिन्दी हैं तो सारा काम हिन्दी चाहिए यह क्या l
जत्था यह हिंदुओं का, यह मुसलमानों की टोली है ll
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वतन जब एक है सबका तो फिर ऐसी दोरंगी क्यों l
किसी की कुछ ज़ुबाँ है किसी की कोई बोली है ll
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मुसलमां और हिन्दु सब हैं मुल्के हिंद के बेटे l
कि हर इक क़ौम उनमें देस के पानों की ढोली है ll
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मय हुब्बे वतन अहले वतन अब जौक से पी लें l
कि बोतल उस की हमदर्दी के पानी में झाकोली है ll
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इसे पीकर तरंगें आएँ फिर लुत्फो मुस्सर्रत की l
चलें पिचकारियाँ मैं भी कहूँ क्या खूब होली है ll
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‘वजाहत’ बोल बाला हो हर इक हिन्दु मूसलमां का l
मुआवन हके तआला हो हर इक हिन्दु मूसलमां का ll
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1) बहम उल्फ़त = आपसी प्रेम| 2) वक्अत = ताक़त, साख़| 3) शराबे इत्तीफ़ाक= मेल जोल की मदिरा|
2) 4) निफ़ाक़को बुगज़ = छिपी दुश्मनी| 5)बदख्वाह = बुरा चाहने वाले| 6) फ़लाहे मुल्क = देश की भलाई |
3) 7) एक अंगा = पोशाक| 8) नाचाक़ी = अनबन| 9) अफ़यून = अफ़ीम |10) मय हुब्बे वतन = देश भक्ति की मदिरा|
4) 11) लुत्फो मुस्सर्रत= मज़ा | 12) जौक= मज़ा | 13)मुआवन = मदद्गार| 14)हके तआला = ईश्वर
आप सब पाठकों को होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ
भगवान दास मेहन्दीरत्ता
गुड़गाँव ©
01-03-2015.
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