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ओहदेदार (उतरार्ध भाग)

मेरा देश मेरी बात !
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ओहदेदार (उतरार्ध भाग)
(कहानी ओहदेदार का शेष भाग)

हरिया की मौत के बाद सुहास जैसे अंतर्मुखी हो गई थी l वह पहले भी कम लोगों से बात करती थी l गाँव की औरतों के फूहड़ मज़ाक और ओछी बातें उसे वैसे भी नहीं भाती थीं l अब तो वह हर दम अपने में ही खोई रहती l जैसे जमाने से उसे कोई सरोकार ही न था l बचपन से ही उसे रंग बिरंगी चूड़ियाँ पहनने का शौक था l अब उसे चूड़ियाँ पहननी चाहिएं कि नहीं, उसे इस बात की सुध ही न थी l पति की मृत्यु के एक सप्ताह के अन्दर ही उसने गाँव में चूड़ियाँ बेचने आई बंजारन से नई चूड़ियाँ चढ़वा लीं थीं l तभी से लोग उसे पगली सुहास कहने लगे थे l परंतु गाँव में कोई उसे कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाता था l सभी डरने लगे थे कि कहीं ग़लती से भी उसके मुँह से कोई बद दुआ निकल गई तो उनके लिए श्राप बन जाएगी l
जिस सुबह हरिया की मौत हुई थी उसी शाम गाँव के दूधियों ने शहर से लौटते वक्त खबर दी थी कि शहर से आए ओहदेदारों की जीप दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी l भरतु और जीप का ड्राइवर दुर्घटना में मारे गये थे और गाँव के पटवारी समेत, तीन लोग गंभीर रूप से घायल थे और अस्पताल में भर्ती थे l
भरतु वही लड़का था जिसने सुहास के हाथ से हज़ार का नोट छीना था l भरतु था तो चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी, परंतु उसके वरिष्ठ अधिकारी उसे हवा दे कर रखते थे l प्रत्येक उल्टे सीधे काम में वे भरतु को आगे रखते l शराब हाजिर करने में तो वह एक तरह का जिन्नाद था l समय और स्थान की उस पर कोई सीमा नहीं थी, कभी भी कहीं भी वह शराब पैदा कर सकता था l उस दिन भी उन पाँचो ने रकम वसूली के बाद जम कर शराब पी थी l लेकिन गाँव वालों का मानना था कि ये दुर्घटना, सुहास की बद दुआओं का ही असर था l इसी भय से गाँव वाले सुहास की किसी भी बात में दखल अंदाज़ी नहीं करते थे l
सुहास, एक जोड़ी बैल और एक गाय, घर में अब कुल चार जन थे l गाय बैल ही अब सुहास के सन्गी साथी थे l हँसी मज़ाक भी करती थी तो इन्हीं से और दिल की बात भी इन्हीं से ही कर लिया करती थी l एक बछिया भी हुई तो थी गाय की, पर थोड़े ही दिनों में वह भी नहीं रही l गाय और सुहास, मानों माँ बेटी जैसा रिश्ता हो गया था उनमें l सर्दी के दिनों में गाय और बैलों को धूप में बाँध, अपने लिए चाय बना वह उनके पास आ खड़ी होती l गाय भी स्नेह भरी नज़रों से सुहास की ओर देखने लगती l सुहास भी गाय की भाषा समझती थी l तिरछी नज़र से गाय की ओर देखते हुए बोलती, “ला रही हूँ तेरे लिए भी पानी, आँच पर गुनगुना होने को रखा है, देख नहीं रही कितनी सर्दी है l उतावलेपन में तो तूँ पक्की मेरी सास है l” कह कर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगती l पशुओं की खुराक और हर मौसम में पशुओं को दिए जाने वाले नुस्खे सुहास पहले ही सीख चुकी थी l पशुओं का ख्याल वह घर के सदस्यों सा रखती थी l
सुहास की दिनचर्या अब पूर्णतया बदल गई थी l किसना शहर लौट गया था l सुहास अब दुपट्टे को पगड़ी की तरह पहनती थी l गाँव के लोग जब सो कर उठने की तैयारी में होते वह खेत के अधिकतर काम निपटा चुकी होती l भूख, प्यास और नींद पर मानों उसने विजय पा ली थी l “चार लोगों का काम अकेली कर लेती है” अक्सर लोग आपस में सुहास के बारे में बात किया करते थे l पशुओं की देखभाल और खेत के सिवा गाँव का तालाब भी सुहास का एक ठिकाना था l तालाब की तीन मछलियाँ सुहास की घनिष्ठ मित्र थीं l जब सुहास की मां बीमार थी तब भी सुहास अपने पिता के साथ तालाब की मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाने प्रतिदिन तालाब पर जाया करती थी l ससुराल आने के बाद भी वह कभी कभी गाँव के तालाब पर चली जाया करती थी l परंतु अब तो प्रतिदिन वहाँ जाने लगी थी l जैसे ही वह तालाब पर पहुँचती मछलियाँ भी किनारे आ जातीं मानों वे सुहास के कदमों की आहट पहचानती हों l सुहास भी तीनों को सोनी, सुहानी और सोनाली के नाम से बुलाती थी l सुहास उनसे भी दिल की हर बात किया करती थी l मछलियाँ भी जैसे पानी में बार बार अपने मुँह खोलती, बंद करती तो लगता वे भी सुहास की बातों का उत्तर दे रहीं हों l घंटों वार्तालाप चलता रहता, आज उसने घर पर क्या बनाया, अपनी या गाय की तबीयत के बारे में, और खेती के बारे में भी कि उसने इस बार क्या क्या बीजा, किस तरह की आमदन की उम्मीद थी सब तरह की बातें सखियों के बीच हुआ करतीं l
हरिया की मृत्यु हुए पाँच वर्ष बीत गये l किसना की कालेज की पढ़ाई अब पूरी हो गई थी और उसने सरकारी नौकरी के लिए अनेक आवेदन कर रखे थे l एक दिन खबर आई कि किसना प्रदेश के परिवहन विभाग में ओहदेदार हो गया था l
सुहास आज बहुत खुश थी l किसना नौकरी लगने बाद आज पहली बार घर आ रहा था l इतनी बड़ी खुशी की खबर वह सब से पहले अपनी मित्रों से बाँटना चाहती थी l सुहास, सोनी, सुहानी और सोनाली चारों तालाब के किनारे इकट्ठा हो गईं l जितनी उत्सुकता सुहास को मन की बात बताने की थी उससे कहीं ज़्यादा सुहास की सहेलियाँ सुनने को बेताब दिख रहीं थीं l ज़्यादा इंतजार न करवाते हुए सुहास बोली l”ऐ सोनी, सोनाली, एक खुशी की बात है, ऐ सुहानी तू भी सुन ना, बाद में खा लियो आटे की गोलियाँ मैं बहुत सारी लाई हूँ l तुम शौक से खाती नहीं हो वरना आज तो मैं तुम्हारे लिए मिठाइयाँ लाने वाली थी, मेरा किसना अब बड़ा ओहदेदार हो गया है और नौकरी लगने के बाद से आज पहली बार घर आ रहा है l बस अब तो एक ही तम्मना है कि जल्द से जल्द उसे दूल्हा बने देखूं l देखना अपने किसना के लिए मैं ऐसी चाँद सी दुल्हन लाऊंगी, सारा गाँव देखता रह जाएगा l आँखें तो बिल्कुल तुम्हारे जैसी होंगी, बताए देती हूँ हाँ ,” आज वह खुद को रोके नहीं रोक पा रही थी l सहेलियों के बीच देर तक बातें होती रहीं l किसना के घर आने का वक्त हो गया था l किसना गाँव में आने के बाद अपने दोस्तों से मिलने चला गया l घर आते आते उसे देर हो गई l सुहास ने बेटे के लिए खाना परोसा लेकिन किसना से बातें नहीं हो पाई क्योंकि किसना थका हुआ था और उसे नींद भी आ रही थी l किसना सोने चला गया l सुहास लेटे लेटे सुबह होने का इंतजार करने लगी l
अपनी आदत के अनुसार, सुहास सुबह तड़के ही उठ गई l पशुओं का चारा पानी करने के बाद सुहास ने कपड़े धोने की तैयारी कर ली l किसना को अगले दिन सुबह मुँह अंधेरे काम के लिए निकलना था l कपड़े भिगोने से पहले सुहास किसना की जेबें खाली करने लगी l ये क्या, सुहास जिस भी जेब में हाथ डालती उसी में से मैले कुचैले और मुड़े तुड़े नोट निकल रहे थे l किसना तो पैसे की इतनी बेकद्री कभी नहीं करता था l वह तो रुपयों को बड़े सलीके से सहज कर रखता था l वह नोटों को जेबों में तकिये में भरी रूई की तरह देख कर दंग रह गई l अभी तो उसे पहला वेतन भी नहीं मिला होगा, वह बता रहा था पहला वेतन आने में समय लगता है l हैरानी की हालत में कमीज़ की जेब टटोलने लगी l कमीज़ की सामने की जेब से एक, हज़ार का नोट सामने आया l सौ प्रतिशत ये वही नोट था जो पाँच वर्ष पूर्व भरतु ने सुहास के हाथों से छीन लिया था l सुहास उस नोट को अच्छी तरह पहचानती थी l राय साहब ने इस नोट पर काली स्याही से महात्मा गाँधी की नोक दार मूच्छें बना रखीं थीं, ठीक अपनी मूच्छों की तरह l हज़ारों हाथों से होता हुआ वही नोट आज फिर सुहास के हाथों में लौट आया था l साथ ही साथ सुहास को भी न जाने क्या हुआ था l मानो उसकी चेतना भी लौट आई हो l सुहास के चेहरे के हाव भाव बदलने लगे l पाँच वर्ष पूर्व का दृश्य सुहास की आँखों के सामने उभर आया l कोई उसके हाथों से हज़ार का नोट छीन रहा था l लेकिन इस बार छीनने वाला भरतु नहीं किसना था l हाँ किसना ही था, उसका अपना बेटा l उधर दर्जनों बैलगाड़ियों पर अनेकों हरिया उसकी नज़र के सामने दम तोड़ रहे थे l अनायास चीख पड़ी l “तेरा बापू मर गया रे किसना, तेरी मां विधवा हो गई रे….”
किसना के आने से पहले ही सुहास पछाड़ खा कर गिर पड़ी l चूड़ियाँ टूट कर बिखर गईं l गाँव के लोग मिल कर दाह संस्कार की तैयारी करने लगे l

यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है| पात्रों अथवा घटनाओं का किसी से मेल खा जाना महज एक इत्तफाक होगा l सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं| ©
लेखक { भगवान दास मेहन्दीरत्ता, गुड़गाँव} Email : b.dass1@gmail.कॉम

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