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वो मुद्दा कहाँ से लाऊँ…..!

मेरा देश मेरी बात !
मेरा देश मेरी बात !
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बगल के कमरे से जोर जोर से आवाजें आ रहीं थीं| माँ की नींद खुल गई, माँ ने ऑंखें मलते हुए देखा सुबह के सवा तीन बज रहे थे|
अजीब है ये लड़का भी, कई बार समझाया है कि टी वी और लाइटें बंद कर के सोया कर, ये है कि कान पे जूं ही नहीं रेंगती इसके!
बेटे को आवाजें लगाते हुए माँ ने कमरे में प्रवेश किया तो देखा कि बेटा वीडियो गेम खेलने में व्यस्त है उधर टी वी चल रहा है सो अलग|
क्या कर रहे हो बेटा, कितनी बार कहा है टाइम से सो जाया करो, नींद पूरी नहीं होती तो संसद भवन में नींद आती है, देखा नहीं कितनी बातें हो रही हैं|
माँमाँ, बस थोड़ी देर और, देखो गेम में मैंने कितना अच्छा स्कोर बनाया है मैं टॉप करने वाला हूँ बस चंद सेकेण्ड और|
क्या बेटा, यही स्कोर यदि चुनाव में बना लिया होता तो आज ये दिन न देखना पड़ता| सिंह अंकल ने भी तुम्हें कितनी बार समझाया है छोड़ो इन गेमों को और कोई रचनात्मक काम करो| तुम हो कि कुछ सुनने को ही तैयार नहीं|
सभी कहते हैं एक कामयाब मर्द के पीछे एक औरत का हाथ होता है, शादी के नाम पर भी तुम दूर दूर भागते हो|कोई तुम्हारे भी पीछे होती तो स्वयं तुम्हारी खबर लेती| तुम्हारी पत्नी होती तो आज किसी न किसी राज्य की मुख्य मंत्री होती, नहीं तो कहीं न कहीं की राज्यपाल अवश्य होती| कितना रुतबा होता आज तुम्हारा| अच्छा अब जल्दी से सो जाओ सुबह को संसद भी जाना है, वहां फिर नींद आएगी और फिर लोग बातें बनायेंगें|
माँमाँ, संसद जाने को मेरा मन ही नहीं करता, बहुत बोरियत होती है वहां| सिंह अंकल की वजह से पहले तो कभी कभी चला भी जाया करता था अब तो कोई भी नहीं है वहां, अब पहले जैसी इज्जत भी नहीं होती, देखा नहीं पहले कैसे नामी गिरामी नेता राह में निगाहें बिछाये खड़े रहते थे, अब वो बात नहीं| फिर पहले भी मैं कितना संसद जाता था?
पहले की बात कुछ और थी बेटा, तब घर की हकूमत थी| अब वो बात कहाँ, देखा नहीं नई सरकार ने संसद सत्र के दौरान उपस्थित रहना अनिवार्य कर दिया है| नहीं रहोगे तो कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही हो सकती है| और तुम्हें पार्टी और देश को भी तो अपनी उपस्थिति दिखलानी है| वरना आज जो इज्जत है वो भी हाथ से जाती रहेगी| आज कुछ न कुछ सोच कर रखो कि कल, न केवल संसद में उपस्थित ही रहना है, कुछ न कुछ बोलना भी है|
कैसे बोलूं ? माँमाँ, मुझे कुछ बोलने ही नहीं देते|
कुछ भी हो कल तुम चुप नहीं रहोगे, कैसे भी कर के तुम कैमरे के सामने अवश्य आओगे|
ठीक है माँमाँ, कुछ सोचता हूँ |
अगली सुबह माँ ने बेटे को पुकारा, चलो बेटा संसद चलने का वक्त हो गया है, इससे पहले कि बेटा कार के अंदर बैठता, माँ ने पूछ लिया, बेटा कुछ तैयारी की तुमने ?
हाँ माँमाँ, मैंने सोच लिया है, कुछ भी हो आज का आरम्भ हमारे शोरो गुल से ही होगा| मैंने अपने कई साथियों से भी बात कर ली है हम पूरा समय शेम शेम के नारे लगायेंगें| और संसद का काम काज ठप कर के ही दम लेंगें|
परन्तु बेटा क्या शेम शेम के नारों से रोज रोज चला जा सकता है| कुछ और सोचो, आने वाले दिनों के लिए कुछ नया सोचो|
सोच लूंगा माँमाँ, आज का दिन तो यही ठीक रहेगा न?
ठीक है, माँ ने स्वीकृति देते हुए पीठ थपथपाई|
जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ, घर वापिस आते हुए वह बहुत प्रसन्न था, देखा माँ, आज सभी कितने खुश थे| नींद भी नहीं आई आज तो, मंत्रियों के चेहरे देखने लायक थे, अन्य सांसद भी आज हमें हैरत से देख रहे थे, मजा आ गया| कल से, सरकार को हैरान करने के और नए नए तरीके सोच कर जाया करूँगा|
दो दिन बीत गए माँ ने फिर पुछा, बेटा कुछ नया सोचा क्या?
कुछ नया सूझ ही नहीं रहा माँमाँ, कोशिश तो बहुत कर रहा हूँ| पिछले कई घंटों से गूगल पर सर्च कर रहा हूँ उम्मीद है कोई न कोई मुद्दा या स्लोगन अवश्य मिल जायेगा|
उसी रात माँ ने देखा बेटा फिर आधी रात तक जाग रहा था, सोचा इसे तो वीडियो गेम की लत लग गई है| गुस्से से कमरे में दाखिल होते हुए देखा वह तो कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था|
ये क्या बेटा वीडियो गेम छोड़ी तो अब ये कंप्यूटर? छोड़ो इन सब चीजों को, देखो अब तो तारीख भी बदल चुकी है, सो जाओ अब, सुबह कोई न कोई हल निकालेंगे| मैं रमेश अंकल की ड्यूटी लगाती हूँ, वो मुद्दे तलाशने में तुम्हारी मदद करेंगे|
रात के दो बजे कमरे से जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें आने लगीं| यूरेका, यूरेका, यूरेका, मिल गया, मिल गया, कहते हुए वह बरामदे तक आ गया| शोर सुन घर का कुत्ता भी भौंकने लगा, आवाज सुन माँ भी अपने कमरे से बाहर आ गई|
अरे क्या मिल गया, बहुत उत्साहित दिख रहे हो तुम तो ?
हाँ, मैं बहुत खुश हूँ माँमाँ, कल के लिय मुझे मुद्दा मिल गया है| कल हम साम्प्रदायिकता पर चर्चा करने की बात करेंगे| उसका समय तो निर्धारित है नहीं, वे चर्चा के लिय तैयार नहीं होंगे, हम वी वांट जस्टिस, वी वांट जस्टिस के नारे लगाएंगे| बस हो गया तय| कल का दिन भी अच्छा जायेगा|
वो तो ठीक है बेटा, पर परसों क्या करोगे?
परसों हम बीमा बिल का विरोध करेंगे|
बीमा बिल का विरोध! पर बेटा वो तो हमारा अपना लाया हुआ बिल है उसका विरोध कैसे करोगे तुम?
हम विरोध करेंगे बस, मैंने ठान ली है, कुछ भी हो संसद का काम काज ठप करवा कर ही मानेंगे हम||
देखो बेटा सिंह अंकल ने आज फिर कहलवा भेजा है कि इस तरह से बात नहीं बनने वाली, कुछ सारगर्भित मुद्दे तलाश करो| कुछ नया सोचो, कुछ रचनात्मक करो| संसद में सवाल पूछो, देश से सम्बंधित मुद्दे उठाओ| और नहीं तो सुनीता कोरी की ही खबर ले ली होती तुमने तो एक बार मुड़ के भी नहीं देखा, वो मीडिया में लोगों को सारा वृतांत सुना रही है, गाँव वाले उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं सो अलग|
माँमाँ, गूगल पर घंटों सर्च कर चुका हूँ कोई सही मुद्दा मिलता ही नहीं, जो मैं पूछना चाहता हूँ उसे कोई और सांसद पहले ही पूछ चुका होता है| मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता, ज्यादा करोगे तो मैं संसद जाना ही छोड़ दूंगा|
जैसे तैसे कुछ दिन और निकाल लो बेटा ,फिर तुम्हारी दीदी तुम्हारे साथ हो जाएगी| तब तुम्हारे लिए बहुत आसान हो जायेगा|
ये दीदी भी न बस, मान क्यों नहीं जाती? कब से तो पार्टी के लोग बुला रहे हैं| उसे मेरा तो जरा भी ख्याल नहीं|
ऐसा नहीं है बेटा, इतनी आसानी से मान जाना सही नहीं होगा, याद है जब मेरी राजनीती में आने की बात चल रही थी और मैं मान ही नहीं रही थी, मुझे तो तब से अनुभव है, पार्टी के दिग्गज नेताओं ने बार बार आ आ कर मिन्नतें की थीं तब कहीं मानी थी मैं, देखा नहीं कितनी इज्जत है आज अपनी| अब भी पार्टी के कुछ लोग वातावरण बनाने पर लगे हुए हैं, ज़मीन तैयार होते ही, वह भी हमें ज्वाइन कर लेंगी| तू किसी बात की चिंता मत कर और जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही करता जा|
ठीक है माँमाँ, कल सुबह के लिए कोई मुद्दा तलाश करने में जुट जाता हूँ, आप डिस्टर्ब करने मत आना, जैसे ही मिल जायेगा मैं सो जाऊंगा|
तभी फिजां में एक गीत उभर आया
वो मुद्दा कहाँ से लाऊँ , मुझे जीत जो दिला दे|
मुझे छोड़ जाने वाले, कोई रास्ता बता दे ……..
भगवान दास मेहँदीरत्ता

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