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आजकल ये चर्चा आम है कि आम बजट में एक मूर्ति के निर्माण के लिए 200 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है| रेडीओ, टेलीविज़न, प्रिंट मीडिया हो कि सोशल मीडिया सभी माध्यमों की सहायता से 200 करोड़ के खर्च की काफ़ी भर्त्सना की जा रही है| और इस राशि के उचित इस्तेमाल के अनेको अन्य उपाय भी सुझाए जा रहे हैं| ये खर्च, या तो किसी के गले नहीं उतर रहा और या किसी को हजम नहीं हो रहा| खर्च की तुलना सुश्री मायावती जी द्वारा मूर्ति निर्माण पर किए गये खर्च से भी की जा रही है|
सोचता हूँ, इस खर्च को न्यायोचित ठहराना कहीं मायावती जी द्वारा मूर्तियाँ निर्माण पर किए गये खर्च की प्रतिरक्षा करना तो नहीं हो जाएगा? डर इस बात का भी है की इस की आड़ में भविष्य में आने वाली सरकारें अपने अपने पसंदीदा व्यक्तियों की मूर्तियाँ खड़ी करने को अपना अधिकार ही न बना लें| निसंदेह विषय बहुत ही विरोधाभास भरा है| ग़रीब देश के आम बजट में इस तरह के खर्च का पक्ष लेना या तर्कसंगत प्रमाणित करना क्या समझदारी होगी?
लेकिन मेरे विचार में, कुछ अन्य पहलू भी हैं जिन्हे पलट कर देखने की आवश्यकता है| पहली बात तो बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान मूर्ति निर्माण के लिए नहीं, राष्ट्रीय योजना के तहत रखा गया है,जिसे “STATUE OF UNITY “ का नाम दिया गया है|अर्थात “एकता का प्रतीक,” इसे मात्र मूर्ति, पुतला या बुत कहना उचित न होगा, इस प्रतिमा की तुलना किसी साधारण व्यक्ति की मूर्ति से नहीं की जानी चाहिए| ये अमेरिका में बने “STATUE OF LIBERTY”{स्वतंत्रता की देवी} की भाँति एक राष्ट्रीय प्रतीक होगा, जैसे कुतुबमीनार, इंडिया गेट, चारमीनार या अन्य स्मारक स्थल हैं, देश में| ये सभी राष्ट्रीय धरोहर हैं व देश के गौरव हैं| इसी शृंखला में एक और राष्ट्रीय गौरव जोड़ने की इच्छा रही होगी प्रधानमंत्री जी की| ऐसे स्मारक पर्यटन को बढ़ावा देंगे ये बात भी पसंद नहीं की जा रही, जबकि ताज महल विश्व भर में आकर्षण का केंद्र है| भारत को विदेश में ताज वाले देश के नाम से भी जाना जाता है| हालाँकि एक शायर ने तो ताज के लिए भी लिखा है
“…………एक शहनशाह ने हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक,
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से”
फिर भी हर वर्ष हज़ारों पर्यटक ताज को देखने भारत आते हैं|
एक कहावत है “अशरफ़ी लूट, कोयले पर मुहर” हमारे देश ने अनेकों आघात सहे हैं, स्वतंत्रतापूर्व विदेशियों की लूट, स्वतंत्रता पश्चात अपनों की| एक अनुमान के अनुसार 1992 से लेकर आज तक लगभग 80 लाख करोड़ रुपये के घोटाले किए जा चुके हैं, अंग्रेज जो ले गये वो अलग, 200 करोड़ इतनी राशि का 0.0025% होता है| न मैं ये नहीं कह रहा कि इसे भी एक घोटाले की तरह मान लिया जाए, ईश्वर करे, भविष्य में इस तरह की लूट पर रोक लग जाए तो ऐसे अनेकों खर्च देश पर कुर्बान| इस बार के बजट में लगभग 18 लाख करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान है, 200 करोड़ इस राशि का 0.01% होता है| मानता हूँ 200 करोड़ रुपये एक बड़ी रकम होती है परंतु यदि इस राशि को अलग से स्मारक बनाने के लिए न रख कर, मिश्रित खर्चों में रखा जाता तो हमें कुछ पता भी न चलता| सरकार की पारदर्शिता की भी सरहाना की जानी चाहिए|
तीसरे, यदि हम देश को एक परिवार की संज्ञा दें तो, परिवार के मुखिया ही अधिकतर निर्णय लेते हैं, निर्णय कभी ग़लत भी हो सकते हैं, कभी भावनात्मक भी, परंतु कभी कभी हमारी संकुचित सोच निर्णय के आड़े आ जाती है, हम स्वयम् व्यसनों व दिखावे पर हज़ारों फूँक देते हैं, परंतु परिवार के मुखिया की छोटी सी माँग भी हमें अटपटी लगती है| देखा जाए तो हम रोजमर्रा की जिंदगी में जितने भी खर्च करते हैं उसमें से 20% खर्चे व्यर्थ होते हैं, चाहे शादी ब्याह में होने वाले खर्च हों या मकान आदि बनवाने पर किया गया खर्च| प्रतिदिन किए जाने वाले खर्चों में भी बहुत से खर्च ऐसे होते हैं जो फ़िजूल होते हैं|अलबत्ता यदि देश नहीं चाहता कि आम बजट से इस धन राशि को निकाला जाए तो परिवार के मुखिया की भावनाओं का सम्मान करते हुए, अलग से अनुदान भी दिया जा सकता है, मात्र 1 रुपया 60 पैसे प्रति व्यक्ति के हिस्से आते हैं, इतनी राशि शायद बहुत बड़ा बोझ तो न होगी हम सब के लिए|
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