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विवेकपूर्ण राजनैतिक समझ

Sonu
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अपना पंचवर्षीय कार्यकाल पूरा करने के बाद और अधिक सीटों पर जीतकर दोगुने उत्साह के साथ भारतीय जनता पार्टी (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) पुनः सत्ता पर काबिज हुई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा कम ही होता है जब सत्ताधारी पार्टी पहले से अधिक मजबूती के साथ सत्ता में वापसी करे। तात्कालिक सत्ता में रहते हुए अपनी योजनाओं व कार्यनीतियों के प्रति सरकार की जवाबदेही के कारण पहले से कम सीटों पर जीत हासिल करना ही मुमकिन हो पाता है। चुनाव से पहले मीडिया में हो रही चर्चाओं में तमाम पत्रकार व राजनैतिक विश्लेषकों के द्वारा मोदी सरकार के लिए भी ऐसा ही अनुमान लगाया जा रहा था कि इसे भी पिछली सीटों से यानि 282 से कम सीटें मिलेगी। लेकिन उन तमाम परिकल्पनाओं व सम्भावनाओं को नकारते हुए भाजपा ने प्रबल जीत हासिल किया।

यह कोई जादू नहीं हो सकता बल्कि यह संगठन के संतुलन का परिणाम है। मोदी सरकार के नोटबंदी और जी.एस.टी जैसे सख्त नए प्रयोगों के बाद भी पार्टी स्थिर रही। संतुलन और सजगता ऐसी थी कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने में कामयाब रही। इस सरकार ने अपने कार्यों से जनता में नया विश्वास जगाया। पूर्व की सरकारों से अधिक सतर्कता का ही परिणाम था कि पी. एम. ओ. से लेकर विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री जिसमें विदेश, रेल, सड़क व अन्य सोशल मीडिया पर तैनात रहे व एक संदेश मिलते ही जनता के समस्या का समाधान करने में सजग चौकीदार की भूमिका का निर्वाह करते रहे।

तेल एवं पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का सक्षम जनता से निवेदन कर सब्सिडी छोड़ने के लिए कहना भी एक अच्छी पहल थी जो कि पूर्व की सरकार में ऐसी नई व साझेदार सोच देखने में नहीं आयी। योजनाओं की घोषणा केवल अधिकारियों के भरोसे सीमित न रखकर सरकार ने खुद ही जमीनी स्तर पर बिना किसी भेदभाव के उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सम्भाली। यही सब कारण है कि सत्ताधारियों पर जनता का विश्वास बना और जनता ने दुबारा मोदी सरकार को और मजबूती प्रदान की।

अब नए सरकार की बात करें तो अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के मना करने के बाद जहां दो प्रमुख मंत्रालयों के खाली हो जाने से एक तरफ मंत्री मण्डल गठित करने वाली टीम को थोड़ी जगह मिल गई वहीं इनके स्थान पर योग्य व्यक्ति का चयन करना एक चुनौती भी थी। पर मोदी सरकार के चाणक्य अमित शाह ने अपनी सूझ – बुझ का परिचय देते हुए बड़ी ही संतुलित मंत्रालय का गठन किया है। यह सही है कि उन्होंने दूसरे नंबर का विभाग कहे जाने वाले गृह मंत्रालय जैसा प्रमुख पद खुद के लिए चुना वहीं सभी को संतुष्ट भी किया। ऐसा नहीं था कि तीन सौ तीन सीट जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी अभिमानित होकर सहयोगी दलों को दरकिनार कर दिया हो। पार्टी ने जहां सभी को साथ लेकर चलने की पूरी कोशिश की है वहीं पदों के बंटवारे में मनमानी या किसी की जिद भी नहीं चलने दी है। सुब्रह्मण्यम जयशंकर को विदेश मंत्री बनाना मंत्री मंडल गठन का सबसे विवेकपूर्ण निर्णय रहा। पार्टी का यह निर्णय भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध को सुधारने और मजबूती प्रदान करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। ऐसे समय में जब मंत्री बनने के लिए सभी सांसद दाव-पेंच लगाते हों यह निर्णय युक्तिपूर्ण है। एस जयशंकर, सोलह माह पूर्व ही अवकाश प्राप्त हुए हैं, वैसे तो इनका कार्यकाल पहले ही पूरा हो गया था पर इनकी कार्यशैली को देखते हुए इनके कार्यकाल को विस्तार दिया गया। वे अमेरिका व चीन में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं। डोकलाम विवाद जो भारत व चीन के मध्य बेहद तनावपूर्ण मुद्दा बना हुआ था उसे सहजता से सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में चीन गए थे तभी उनकी मुलाकात एस जयशंकर से पहली बार हुई थी। वे उस समय चीन में भारत के राजदूत थे तभी से नरेंद्र मोदी जी इनकी क्षमता से परिचित हो गए थे। यही कारण था कि मोदी सरकार ने जनवरी 2015 में इन्हें विदेश मंत्रालय के सचिव का पद भार संभालने के लिए दिया। यह सत्य है कि किसी गैर राजनीतिक व्यक्ति को इतना महत्त्वपूर्ण पद देना पहली बार नहीं है कांग्रेस ने भी मनमोहन सिंह को इसी तरह वित्तमंत्री बनाया था। अब भाजपा के लिए इन्हें  छह माह के भीतर राज्यसभा या लोकसभा का सदस्य बनाना होगा। इन्हें विदेश मंत्री बनाना अमित शाह और इनकी “थिंकटैंक” का महत्वपूर्ण निर्णय रहा है। निश्चय ही एस. जयशंकर भारत के साथ विदेशी संबंधों को बहुत आगे ले जाएंगे क्योंकि ऐसे कार्यों में एक राजनेता से अच्छी समझ एक राजनयिक रखता है। अब राजनयिक ही एक राजनेता के रूप में विदेश मंत्री होगा।
साथ ही उडीसा के मोदी के नाम से मशहूर बेहद ही सरल स्वभाव एवं जमीन से जुड़े व्यक्ति को मंत्रालय में शामिल करना भी जनता में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ाना है। ऐसे समय में जब राजनेताओ में मंत्री बनने की होड़ हो तो एक संतुलित व तार्किक निर्णय लेना निश्चय ही विवेकपूर्ण कार्य है। उम्मीद है कि नई सरकार अच्छी कार्यपालिका के रूप में अपनी भूमिका निर्वाह करेगी और मोदी के नारे “सबका साथ सबका विकास व सबका विश्वास” जीतने में कामयाब रहेगी।

कालीशंकर मिश्र
डॉक्टोरल फ़ेलो (NCERT)
शोध-छात्र
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली

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