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आज मशीनों का युग है। स्मार्टफोन और उसके तमाम स्मार्ट ऐप का युग है। पूरी दुनिया दौड़ रही है कामयाबी के लिए भारत दौड़ की कहानी और सोच उसी दौड़ का एक हिस्सा है। सरकारी नौकरियां कम हो रही हैं और प्राइवेट नौकरियां बढ़ रही हैं। अगर हम मुंबई ,पुणे, दिल्ली जैसे तेजी से बढ़ रहे महानगरों की बात करें और लोगों की आमदनी और उनके समय का हिसाब लगाएं तो कुछ अटपटे अविश्वसनीय और रोचक तथ्य सामने आते हैं।
भारत के महानगरों की कार्यशील जनसंख्या का 60-70 % हिस्सा 15000 से 25000 ₹ प्रति महीने की नौकरी कर रहा है। यहां तक कि कई मामलों में कई युवा 5000 से 10000 की नौकरी करने के लिए विवश होते हैं। अब अगर मैं अपनी खुद की कहानी बताऊं तो आपको अविश्वसनीय लगेगा।
मैंने उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में पॉलिटेक्निक डिप्लोमा किया। 2014 में मैंने दिल्ली से सटे शहर फरीदाबाद में जॉब शुरू की। आपको हंसी आएगी और मुझे शर्म महसूस हो रही है अपनी सैलरी बताने में। फिर भी मैं बताउंंगा। उस समय यानी 2014 में मेरी सैलरी ₹5000 रुपये हर महीने थी। 2014 से 2019 के अंत तक मेरी सैलरी 5000 से बढ़कर 25000 हुई। इस समय और आमदनी को बांटें तो काफी रोचक तथ्य निकलकर सामने आएंगे।
मैंने इन 5 सालों में 40% समय सोने में 46% समय नौकरी करने में 14% समय खाना बनाने नहाने और कपड़ा धोने में यूज़ किया। इस समय काल के दौरान हुई आमदनी में से 33 परसेंट हिस्सा Accommodation पर, 05 परसेंट हिस्सा Smartphone, 12% हिस्सा शिक्षा पर, 33% हिस्सा बहन की शादी और अन्य मैरिज से रिलेटेड कार्यों में, 11 परसेंट हिस्सा बीमारियों पर खर्च किया और 6 परसेंट हिस्स की सेविंग की।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं। संस्थान का इससे कोई लेना देना नहीं है।
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