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देश के नीति-निर्धारको से देश की मुख्य व्यवस्थाओं से जुडे ज्वलन्त प्रश्न

भारत स्वाभिमान
भारत स्वाभिमान
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जब हम 90 से 99% बीमारियों को भारतिय योग व आयुर्वेद आदि भारतीय चिकित्सा पध्दतियो से ठीक कर सकते है तो फिर विदेशी चिकित्सा पध्दतियों की गुलामी को राष्ट्रीय चिकित्सा पध्दति के रुप मे स्वीकार्यता क्यों?
जब हम अपने देश के बच्चों को राष्ट्रभाषा हिन्दी व अन्य प्रादेशिक भारतीय भाषाओं- गुजराती, मराठी, बंगला, पंजाबी, उडिया, असमिया, तमिल, तेलगू, कन्नड आदि में शिक्षा देकर डाक्टर, इन्जिनियर, आइ ए एस, आई पी एस व वैज्ञानिक आदि बना सकते है तो फिर विदेशी भाषा व षड्यन्त्रकारी मैकाले की शिक्षा व्यवस्था की गुलामी क्यों? और अपने देश की भाषाओं का अपमान क्यों?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 व 344 के अनुसार देश की भाषा मे शिक्षा, शासन व न्याय व्यवस्था को तुरन्त लागू करके देश के करोडों लोगों के साथ हो रहा अन्याय तुरन्त बन्द होना चाहिए। अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजी में काम करना हमारी मजबूरी थी। आज आजाद देश में हमें भाषा, शिक्षा, स्वास्थ व अर्थव्यवस्था आदि की विदेशी गुलामी से बाहर निकलना चाहिए और सम्पूर्ण आजादी के साथ भारत की शासन, न्याय व समस्त नीतियों को तय करना चाहिए।
देश मे मात्र भाषा के कारण ही समस्त व्यवस्थाओं पर 1% लोंगो का एकाधिकार व 99% लोगों पर अन्याय क्यों?
जब एम एल ए, एम पी व मन्त्री आदि अपने बच्चों को अच्छे स्कूल, कालेज व विश्वविद्यालय में पढाते हैं और बीमार होने पर अपना व अपने परिजनों का इलाज अच्छे अस्पताल मे करवाते हैं, तो फिर देश के आम व गरीब आदमि के लिए अच्छे सरकारी स्कूल तथा अच्छे अस्पताल क्यों नहीं? ब्रिटेन, कनाडा आदि विश्व के अधिकांश सभ्य देशों में वहां के जन-प्रतिनिधि सरकारी स्कूलों में ही अपने बच्चों को पढाते हैं व सरकारी अस्पतालों मे ही इलाज करवाते हैं, अत: वहां की शिक्षा व स्वास्थ की व्यवस्थाएं बहुत ही उन्नत स्तर की हैं, तो फिर यह व्यवस्था हमारे यहाँ क्यों नहीं हो सकती? जब नेता व उच्चाधिकारी इन सरकारी संस्थानों से जुड जायेंगे तो सरकारी स्कूल व हॉस्पीटल एक दिन में ठीक हो जायेंगे और देश के आम नागरिक को शिक्षा व स्वास्थय की श्रेष्ठ व्यवस्थाएं सुलभ हो जायेंगी। एम्स जैसे सरकारी हॉस्पीटल व दिल्ली विश्वविद्यालय आदि में अच्छी स्वास्थ व शिक्षा की सुविधाएं इसलिए हैं क्योंकि वहाँ बडे नेताओं व अधिकारियों का सीधा सम्बन्ध है।
जो 34,735 कानून अंग्रेजों ने अपने शासन काल में हमें लुटने, हमेशा के लिए गुलाम बनाने के लिए तथा हम पर अत्याचार व शोषण करने के लिए बनाए थे, आजादी के बाद भी उन्हीं कानूनों को लागू करके, हम पर अत्याचार तथा हमारा शोषण व लूट क्यों? तथा संविधान के अनुच्छेद 372(क) के अनुसार राष्ट्रहित मे कानून व्यवस्थाओं मे परिवर्तन क्यों नहीं?
जब अनिवार्य मतदान का कानून बनाकर देश के लोकतन्त्र को बचाया जा सकता है और लोकतन्त्र के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार व षड्यन्त्र को पूर्णत: समाप्त किया जा सकता है, तो फिर अनिवार्य मतदान का कानून क्यों नहीं बनाते?
यदि शराब व तम्बाकू बनाने वाली कम्पनियो पर नशा करके बीमार हुए लोगों के उपचार का खर्च वसूलने का कानून बनाकर उन पर अंकुश लगाया जा सकता है तो फिर कुछ चंद लोगों को रोजगार देने व व्यापार करके करोडपति बनाने की एवज मे लाखों लोगों को मौत के मुँह में सुलाने के षड्यन्त्र के खिलाफ कानून क्यों नहीं बनना चाहिए क्योंकि लुभावने विज्ञापन व गलत विचार देकर लोगों के मन मे क्रत्रिम भूख पैदा करके नशों की लत डालने के लिए ये कम्पनियाँ सीधी जिम्मेदार है।
पाँच तरह के अपराधीयों अर्थात भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, आतंकवादी, मिलावटखोर तथा अत्यन्त जहरीला प्रदुषण फैलाकर लाखों-करोडों देशवासियों को टी बी, केन्सर व अन्य प्राणघात बिमारियों व मौत के मुँह मे सुलाने वाले देश व देशवासियों की सुरक्षा खतरे मे डालने वाले इन लोगों को आजीवन कारावास या म्रत्युदण्ड क्यों नहीं?
तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि सरकारों व व्यवस्थाओं को चलाने वाले लोगों की नीतियाँ व नियत ठीक नहीं है और कहीं सरकार व शासन ही तो इन अपराधियों को संरक्षण नहीं दे रहें हैं?
जब मात्र 2% ट्रान्जैक्शन ‘कर’ (टैक्स) लगा करके देश के विकास के लिए 18 लाख 20 हजार करोड रुपये जुटाए जा सकते हैंतो फिर 64 प्रकार के गैर जरुरी कर लगाकर देश के लोगों की मेहनत की कमाई का लगभग 50% हिस्से को लूटने का षड्यन्त्र क्यों?
जब भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म व संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं सर्वश्रेष्ट संस्कृति है और हमारे सांस्कृतिक व आध्यात्मिक चिन्तन में कहीं भी न्यूनता व अपूर्णता नहीं है तो फिर विदेशी संस्कृति, सभ्यता की आवश्यकता व गुलामी क्यों? तथा भारतीय संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन व प्रोत्साहन के लिए प्रतिबध्दता क्यों नहीं?
भारत की बेरोजगारी, गरीबी व भूख को दूर करने के लिए हमें लगभग 50 लाख करोड रुपये की आवश्यकता है। इस धन से हर एक गाँव में एक आदर्श विद्यालय, कुछ लघु उद्योग तथा प्रत्येक जिले में एक औद्योगिक परिसर तथा एक विश्वविद्यालय बनाना चाहिए तथा इस पूरे विकास अर्थात विद्यालय व उद्योग आदि में 50 से 80% सहभागिता (share) गरीबी, मजदूर व किसानों को देना चाहिए तथा इस व्यवस्था से देश में एक भी व्यक्ति बेरोजगार, गरीब व अशिक्षित नहीं रहेगा। ये 50 लाख करोड रुपये प्राप्त करने के निम्न दो मुख्य स्त्रोत हमारे पास हैं
-भ्रष्टाचार करके देश का स्विस बैंकों में जमा 72 लाख 80 हजार करोड रुपये तथा अन्य देशों में जमा स्वदेशी धन वापस लाकर इस देश को एक दिन में बेरोजगारी, गरीबी व भूख से मुक्त किया जा सकता है और प्रत्येक जिले को विकास के लिए 12 हजार 133 करोड 33 लाख रुपये उपलब्ध कराये जा सकते हैं तो विदेशों में जमा अपने देश का यह पैसा देश में लाकर देश को सम्रध्द क्यों नहीं बनाना चाहिये?
प्रतिवर्ष राज्य एवं केन्द्र स्तर पर बनने वाले लगभग 20 लाख करोड रुपये (वर्ष 2008-09 में सरकार का बजट 8 लाख 16 करोड तथा राज्य स्तर का बजट 9 लाख 9 हजार 444 करोड 75 लाख रुपये है) के बजट में से लगभग 10 लाख करोड रुपये भ्रष्टाचार करके कुछ बेईमान नेताओं व कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के द्वारा लूट लिया जाता है। प्रतिवर्ष ईमानदारी से यदि ये 10 लाख करोड रुपये खर्च किये जायें तो देश से मात्र 5 वर्षों में ही गरीबी, बेरोजगारी व भूख को मिटाया जा सकता है।
जब भारतीय रिजर्व बैंक बडे नोटों की प्रिन्टिग बन्द करके तथा 500 व 1000 रुपये के पुराने छपे हुए नोटों को वापस लेकर एक दिन में भ्रष्टाचार, काले भन व नकली करेंसी की समस्या का समाधान कर सकता है तो फिर भ्रष्टाचार को बढाने के लिए बडे नोटों की छपाई क्यों?
जब किसानों को गोबर आदि की अच्छी खाद व सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराकर शुध्द खाद्यान्न, खाद्यतेल, शाक-सब्जियाँ व फलादि पैदा किये जा सकते हैं तो फिर सरकार की ओर से प्रतिवर्ष 1 लाख 18 हजार रुपये से अधिक की सब्सीडी के नाम पर भ्रष्टाचार का षड्यंत्र करके हमारे खेतों में फर्टिलाइजर्स व पैस्टीसाइड का जहर डालकर धरती को बंजर क्यों बनाया जा रहा है और विष भरे आहार एवं शाक-सब्जियों से हमारे लीवर, किडनी व ह्रदय आदि को खराब करके जिन्दगी को टीवी व कैंसर आदि रोगों की तरफ क्यों धकेला जा रहा है?
जब स्वदेशी अर्थव्यव्स्था, जल-प्रबन्धन व ग्रामीण-स्वावलम्बन की नीति अपनाकर हम देश की पूंजी में प्रतिवर्ष 5 से 10 लाख करोड रुपये की व्रध्दि करके देश को आर्थिक रुप से सम्रध्द व शक्तिशाली बना सकते हैं तो फिर ग्रामीण-स्वावलम्बन की उपेक्षा क्यों
आपका धन्यवाद

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