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कुदरत की फटकार

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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कुदरत से पूछा आपने खराब आदमीयों को क्यों बनाया ? दिन रात काले कारनामे करते है ।

कुदरत ने कहा ” मुझ से हिसाब मत पूछ, हजार बार तूझे कह चुका हुं मैने तो मानव को प्राणी बना के छोड दिया है । तूम मानव प्राणीयों को अच्छे इन्सान बनने का शौक जगा था । और इस लिए ही राज्य और धर्म की स्थापना की थी । तूम मानव प्राणीओ ने अपने आप को कन्ट्रोल कर लिया, धर्म के नियम से, राज्य के कानून से । प्राणी से इन्सान बने, जंगली कातिल से शरीफ और दयावान बने । चोर से शाहुकार बने, जो हाथ अपने मुह की और मुडता था वो हाथ दूसरे के मुह तक जाने लगा, खाना खिलाने के लिए । मुझे अच्छा लगा था, कम से कम मेरा बनाया एक प्राणी थोडा अलग से जीवन जी रहा है ।”

मैने कहा “हमारी कहां भूल हुई, जो अब सब बदल रहा है, इन्सान वापस प्राणी बन रहा है ।”

कुदरत ने कहा ” अब शायद तूम कानून और धर्म से उब चूके हो । कानून और धर्म से इन्कार कर रहे हो । कोइ फिल्टर नही रहा तुम्हारे पास । कौन सी चीज मन को साफ करेगी ? कैसे कंट्रोल करोगे अपने आप को ? बिना लगाम तो अंदर का जानवर उठेगा ही । “

मैने कहा ” आप मानव मनमें जानवर ही क्यों डालते हो ? शरीफ इन्सान की तरह क्यों नही पैदा करते ? ”
कुदरतने डांटते हुए कहा ” मुझे तूमसे सिखना पडेगा मुझे क्या करना है ? इतना बडा ब्रह्मांड मेरे सामने है । हजारों आकाश गंगाएं, अरबों सुर्य, खरबों ग्रह उपग्रह चलते हैं मेरे ही बनाये नियम से । कहीं से कोइ फरियाद नही । तुम्हारी पृथ्वि तो कण भी नही मेरे लिए, और उस पर बसे तूम । मेरे नियम बदलवाना चाहते हो ? ”

मेरे सब नियम सेट है । बदलाव नही हो सकता । तूम भी अपने जीने के नियम सेट कर लो, धर्म और राज्य के कानून से । उसे कमजोर मत होने दो ।

मेरे इस सवाल पर मुझे कुदरत की वो डांट पडी की आगे कोइ सवाल नही सोच पाया ।

कुदरत की इस फटकार से दो बात सिखने को मिली । एक, हमारी सारी शिक्षा, सारे संस्कार, हमारे धर्मों को भूल कर वापस कुदरत के शरण में चले जाओ और वापस जंगली प्राणी जैसे मानव प्राणी बन जाओ । जीओ या मरो किसी को कोइ फरक नही पडेगा । और दो, हमारे धर्मों को बराबर से पकड लो, इस का विकास करो, इस का अनुसरण करो ।

आधुनिक शिक्षाने नास्तिकों की फौज तैयार कर ली है । ईश्वर को ही नकार दिया है । विधर्मियों की फौज तो पहले से ही तैयार बैठी है चोट पहुंचाने के लीए । माना की ईश्वर कहीं नही । तो ? क्या करना है ? नास्तिक को पता नही है उस के अंदर के संस्कार उस के मापबाप के दिये हुए संस्कार है । इस लिए शरीफ बना घुम रहा है । उस के बच्चे, फिर उस के बच्चे तो जंगली हो जाएंगे ।

आदमी कपडा इस लिए नही पहनता की किसी की बूरी नजरों से बचना है, बल्की इसलिए पहनता है की खूद की नंगाई जाहिर ना हो जाये । कमसे कम इश्वर को कपडा ही समज लो, अपनी आत्मा को पहनने दो, आपकी अंदर अगर बूरी आत्मा निवास करती है तो बाहर नही आ पायेगी ।

विधर्मियों को पता होना चाहिए की इश्वर-रूपी ये कपडा कोइ वाहन नही है जो स्वर्ग या जन्नतमें ले जाये । ये आत्मा का कपडा है, आत्मा के कंट्रोल के लिए है । दुनिया की जनता के एक बडे हिस्सेने अपने अपने मनपसंद कपडा पहन लिया है । उसे निकाल कर अपना कपडा पहनाने की कोशीश बेकार है ।

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