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कभी – कभी मैं सोचती थी मैं कौन हूँ, मेरा क्या अस्तित्व है। ये विचार आते में उदास हो जाती थी। एक दिन मेरे अन्दर से किसी ने जोर से मेरे मन में दस्तक दी मुझसे कहा ” तू नारी है”।
तब मुझे महसूस हुआ कि मैं एक नारी हूँ, ” हाँ मैं एक नारी हूँ। आज में उसी आवाज से आपको रुबरु कराती हूँ।
हाँ मैं एक नारी हूँ, वैसे तो बेटी, बहन, पत्नी, माँ ऐसे कई रुप हैं, पर मैं किसी पहचान की मौहताज नहीं हूँ मैं स्वयं अपनी पहचान हूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
हाँ मैं तन से नाजुक हूँ, मन से कोमल हूँ, पर मैं अबला नहीं हूँ, मैं सर्वपापनाशिनी दुर्गा हूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
मैं घर में सबको खुश रखती हूँ, सबके इशारों पर घूमती हूँ, ये मेरा घर है, पर मैं नौकरानी नहीं हूँ, मैं इस घर की स्वामिनी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ
मैं निश्छल हूँ, निर्मल हूँ, ममता की मूरत हूँ, पर मैं कमजोर नहीं हूँ, अवाहन पर रणचंडी का अवतार हूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
ये घर परिवार मेरा संसार है, ये रिश्ते मेरी दौलत हैं, पर मैं डरपोक नहीं हूँ, जिस राह निकल जाँऊ उसी पर अपनी छाप सुगंध छोड दूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
मैं कभी अपना अस्तित्व छोड नवनिर्माण करती हूँ, मैं सृजनशील हूँ, पर मैं स्वार्थी नहीं हूँ, क्योंकि मैं एक माँ हूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
मैं जीवनसंगिनी हूँ, सहपथगामिनी हूँ, पर मैं दासी नहीं हूँ, मैं अर्धांगिनी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ।
मेरी भी एक पहचान है, मेरा भी स्वाभिमान है, पर मैं दया की पात्र नहीं, मैं सम्मान की आकांक्षी हुँ, हाँ मैं नारी हूँ।
मुझे गर्व है मैं एक नारी हूँ। दूसरों को सम्मान देने से पहले अपना सम्मान करना सीखें तभी दूसरे लोग हमें सम्मान देगें। ये मेरे निजी विचार हैं। धन्यवाद।
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