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परवरिश कुछ खट्टी कुछ मीठी

From Mother's Heart
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आज की तेज रफ्तार से चलती जिंदगी में बच्चों को उचित परवरिश देना एक चुनौति पूर्ण कार्य हो गया है।बच्चों की परवरिश मै हमें कई तरह के अनुभव होते हैं कुछ खट्टे कुछ मीठे, कुछ हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ बच्चोंजाती है। जब तक बच्चा छोटा होता है आप हर जगह उसे खुद लेकर जाती है थोड़ा बड़ा होने पर वह खुद से जाने लगता है जैसे खेलने के लिए, पार्क में, अपने दोस्तों के घर। इस समय आपको दो किरदार निभाने पढेंगे एक सख्त शिक्षक (टीचर) का और सरल एक माँ का।
इसी उम्र में बच्चे को ना सुनने की और ना कहने कीआदत डालें। अगर बच्चा आपसे कुछ माँग रहा है और आपको लगता है आप किसी भी कारणवश वह वस्तु उसे नहीं दिला सकते हैं तो उसे साफ मना कर दें। आज आपने मना कर दिया कल वह फिर जिद करने लगा आपने उसे दिला दी ऐसी गलती कभी भी नहीं करें वरना वो आपकी कमजोरी पकड़ लेगा और हर बार ना कहने पर जिद करने लगेगा इसी तरह उसे ना कहना भी सिखाएँ अगर बच्चा अपनी कोई वस्तु किसी को ना देना चाहे तो उसे उस समय देने के लिए मजबूर ना करें बाद में उसे प्यार से समझाएं।जहाँ तक हो सके सुबह बस स्टैंड तक छोडने खुद जायें। भले ही आपको 30 मिनट जल्दी जागना पढे बच्चे को आराम से हल्के फुल्के मूड में जगाएं उसे तैयार कर पाँच मिनट जल्दी घर से निकलें उससे बात करते हुए जायें और पूछें की वह दिन में क्या खाना पसंद करेगा साथ जाने से आप बस के ड्राइवर और आया से मिल सकेंगी और दूसरे बच्चों के माता-पिता से मिल कर कई तरह की जानकारी आपको मिलेगी।
दिन में बस से घर तक का रास्ता सुरक्षित हो तो बच्चे को स्वयं ही आने दें जिससे वह आत्मनिर्भर बनेगा। बच्चे घर आते समय दोस्तों के साथ बातें करते हुए आते हैं। अगर वह 5-10 मिनट देर से आता है तो डाँटे नही उसे प्यार से समझाएं की उसके देर से आने पर उन्हें उसकी बहुत चिन्ता हो जाती है।
दिन का खाना उसकी पसंद का बनायें और उसके साथ ही खायें उससे स्कूल की बातें भी पूछती रहें इससे आपको उसका होमवर्क कराने में भी सहायता मिलेगी शाम को होमवर्क कराने के बाद ही उसे बाहर खेलने जाने दें वरना खेल के आने के बाद वह थक जायेगा और होमवर्क करने मै आनाकानी करेगा। शाम का खाना सब लोग साथ खायें और वही बातें बताएं जो हसीं मजाक की हों। वो बातें उस समय ना करें जो वह अपने पापा को बताने से डर रहा हो। बाद में अकेले में उन्हें बतायें और कहें की कभी हल्के मूड में उसे समझाए। इस बात का सदा ध्यान रखें कि अगर कोई एक बच्चे को डाँट रहा है तो दूसरा हस्तक्षेप ना करे।

बच्चों के सामने भूल कर भी लड़ाई ना करें इससे बच्चे के व्यक्तित्व में बुरा प्रभाव पड़ता है इस उम्र में बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं, इसलिए उनके सामने झूठ कभी ना बोलें उसे हर बात प्यार से समझाएं कभी थोड़ी सख्ती से भी काम लें। बच्चों को बहुत कीमती वस्तु ना दिलवाकर उसे छोटी-छोटी जो उनके लिए उपयुक्त हों वो वस्तुएं दिलवायें कभी बाजार जायें तो खुद से ही कुछ नया (पेन्सिल रबर बाॅक्स पैन) इत्यादि दिखे तो लेकर आयें बच्चे छोटी-छोटी वस्तुओं से ही खुश हो जाते हैं। माता-पिता होना आसान नहीं है। अपने कार्यों को व्यवस्थित रखें। खुश रहें बच्चों से भी खुश रह कर बात करें। उन्की छोटी सी बात या खुशी को महत्व दें। परवरिश के दौर को इन्जॉय करें इन खट्टी – मीठी यादों को सहेज कर रखें यही तो जिन्दगी की दौलत है।
अगर मेरा ब्लॉग अच्छा लगा है तो लाइक, शेयर और फाॅलो करें ये मेरे निजी अनुभव व विचार हैं। धन्यवाद।

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