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अरे ! कुछ तो हो, व्यवस्था का क्रम………..

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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ऊँचे आसन से झरते
कोरे व्याख्यान,
व्यवस्थाओं में पलते
कुत्षित अरमान,
खूखे पत्तों से खड़कते
रूखे स्वर,
शुचिता हरते
बढ़ाते ज्वर,
भ्रमित दिन,
विक्षिप्त रातें ,
सतरंगे अंधेरों की
झिलमिल बारातें,
ब्यर्थ जाता श्रम,
अंतस को भटकाता भ्रम ,
दुरभि संधियां ,
अराजक पाबंदियां,
कहाँ जा रहे हैं हम
अरे !
कुछ तो हो –
व्यवस्था का क्रम.

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