गहरे पानी पैठ
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जहाँ –
मरुथल की शांति हो,
नीरवता भी .
उमंग ,उत्साह ,आह्लाद,
आमोद की निर्झरणी भी .
अंतस की बगिया में
फूल खिले हों,
झरनें झरते हों,
कोयल कूकती हो ,पपीहा पुकारते हों ,
देखनें वाला
खुद को भी देखता हो,
विराट को भी .
आंखें बंद करके भी, खोल करके भी .
ध्यान से भीतर,
प्रेम से बाहर .
जहां
बसंत भी हो,
फागुन भी .
उत्सव भी आनंद भी ,
अनुग्रह भी, धन्यवाद भी .
न त्याग, न भोग
दोनों का अतिक्रमड़ .
गुजर भी जाएं छुएं भी न .
तैयारी हो-
जीवन के महारास में-
उतरनें की ?
तो आजाओ !
स्वागत है ,बुलावा है ,निमंत्रण है !!
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