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जन्नत की बुनियाद ………….

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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इबादत नहीं,
आतंक –
नतमस्तक है,
उलटी गिनती है
सिफर की –
दस्तक है |
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भडक़नें लगी समां
गुल करदो
सब ही कहें,
आफ़ताब की अगवानी है
बेसब्री है,
हलचल है !
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स्वच्छ हो,स्वस्थ हो
दिल भी,
दिमाग भी
घर आँगन,मुल्क में,
खुशहाली है
बरकत है l
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देखने लगी दुनिया
कहने लगी दुनिया
दुनियां तो दिल है
भारत –
धड़कन है I
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आकाश से, मुट्ठी में
भर लाये हम
अमन देखो,
इस जमीं पे
जन्नत की –
बुनियाद हमको रखनी है l
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