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‘जम्मू-कश्मीर का दर्जा बदला तो किसी के हाथ में नहीं होगा तिरंगा’ वाह महबूबा, वाह! तुम नहीं समझती कि यह कहकर कि जम्मू-कश्मीर का दर्जा बदला तो किसी हाथ में तिरंगा नहीं होगा. तुमने कितनी संवेदनहीनता का परिचय दिया है. सुविधाओं पर पलते रहने की ख्वाहिश ने तुम्हे राष्ट्रप्रेम से इतना रिक्त कैसे कर दिया समझ में नहीं आता।
पाकिस्तान से खुले व्यापार का आग्रह और अलगाववादियों तथा पाक से वार्ता जारी रखने के आह्वान के पीछे किस मनसा का पोषण और संरक्षण हो रहा है, अत्यंत विचारणीय है. कल्पना कीजिये पूर्ण सुरक्षित संरक्षित कश्मीर की, पुष्पित पल्लवित कश्मीर की, नई पौध, उन्मुक्त बयार, सर्वत्र सौन्दर्य, सर्वत्र बहार, एक ऐसे जम्मू-कश्मीर की, जिसे धरती का स्वर्ग कहकर हम पुकारते हैं. यदि यहां अलगाववाद आतंकवाद न हो तो क्या आपको नहीं लगता कि आपका कुर्सी मोह हमारे राष्ट्रप्रेम को निगल रहा है?
आपको समझना चाहिए कि अलगाववाद-आतंकवाद के दिन तो जा चुके. अमन चैन का माहौल आ रहा है. जिस माहौल में देशविरोधी विचारों का कोई स्थान नहीं. समय जब करने पर उतरता है, तो बड़ी से बड़ी बाधायें, काफूर हो जाती है. आप और हम या किसी अन्य की क्या बिसात जो समय के प्रवाह को रोक ले। रही बात भारत के संविधान के संशोधन की, तो संविधान के साथ सब बंधे हैं. चेतने की बात है, जनता चेत गयी तो ऐसा भी हो सकता है और मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा ही होगा कि कश्मीर की आवाम विशेष दर्जा रूपी इस भिक्षारीपन को ढोना अपना अपमान समझेगी.
‘एक राष्ट्र एक हम’ यही मूल मंत्र होगा. कुर्सी आपको दिखाई देती है, किन्तु आवाम को सम्मान, मूलभूत सुविधायें भी चाहिए. इस पर अपेक्षित कार्य नहीं किया गया. जरा सोचिये निरा अनुदान आश्रित निठल्ला होकर कौन जीना चाहेगा? कश्मीर की जनता चेत गई तो सारी समस्याएं चुटकी बजाते हल होगीं. कश्मीर की जनता अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है. किन्तु कभी अलगावाद, कभी आतंकवाद, कभी आतंरिक राजनीतिक वैमनस्यता, कश्मीर की अवाम को जागने नहीं देती. सौ, दो सौ, पांच सौ के नोट थमाए और पत्थरबाज बना दिया.
इनके कारण हमारी सेनायें दोहरी लड़ाई लड़ रहीं हैं. आतंकियों से निपटना तो सहज है, अपनों से लड़ा नहीं जाता. उन्हें तो हर हाल में बचाना होता है. कुर्सी के प्रति यह जो हमारा स्वाभाविक लगाव है, उससे कहीं अधिक हमारी सेना अपने पत्थरबाजों के प्रति सजग और संवेदनशील है. राष्ट्रप्रेम से हृदय को आलोकित होने दीजिये, पत्थरबाजों को आत्मीयता से समझिये. उनको सही रास्ते पर लाना हमारा दायित्व है. हम रहें या न रहें, तिरंगा तो रहेगा और कश्मीर की सबसे ऊँची चोटी पर शान से लहराएगा. अवाम जागेगी और गायेगी…
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व विजय करके दिखलाये,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा,
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा.
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